________________ सुन्दर जी भी थे। एक बार सम्राट की विद्वद् सभा साधु और पंचानन महात्मा को लेकर धर्म प्रचार में किसी दार्शनिक विद्वान ने जैनागमों के 'एगस्स हेतु कठिन पदयात्रा करके गए। मंत्रीश्वर कर्म-कार सुत्तस्स अनन्तो अत्थो' अर्थात् एक सूत्र के अनन्त चन्द्रादि भी साथ थे। काश्मीर में जीव रक्षा, अर्थ होते हैं वाक्य पर व्यंग्य कसा। उससे मर्माहत तालाब के मत्स्यों को अभयदान के फरमान मिले। होकर कवि समयसुन्दरजी ने जैन शासनसु की रक्षा, वापस आने पर सम्राट ने सूरि जो को युगप्रधान प्रभावना और आगम वाक्यों की अक्षुण्णता रखने पद, महिमराज जी को आचार्य पद, जयसोम व के लिए सम्राट से कुछ समय मांगकर जैनागमों के रत्ननिधान को उपाध्याय पद एवं समयसुन्दर व कथन को सत्य प्रमाणित करने का प्रस्ताव रखा। गुण विनय को वाचक पद से अलंकृत कराया। कविवर ने 'रा जा नो द दते सौ ख्यं' इन आठ अक्षरों मंत्रीश्वर ने बड़ा भारी उत्सव किया। तीर्थरक्षा पर आठ लाख अर्थों की संरचना की। इस ग्रन्थ खंभात की खाड़ी के जलचर जीवों के रक्षार्थ तथा का नाम अर्थ रत्नावली रखा / वस्तुतः इन्होंने दस आषाढी अष्टाह्निका के फरमान निकलवाए। लाख से भी ऊपर अर्थ किए थे पर छद्मस्थ दोष शाह सलीम के मूल नक्षत्र प्रथम पाद में पुत्री से पुनरुक्ति आदि परिमार्जनार्थ पूर्त्यर्थ केवल आठ होने पर अष्टोत्तरी स्नात्र कराने में तपागच्छ बरलाख सुरक्षित अर्थों वाली अष्ट लक्षी प्रसिद्ध तरगच्छ के साधुओं का निर्देश व मंत्री कर्मचन्द्र की किया। प्रधानता थी। और भी एक बार अष्टोत्तरी स्नात्र सं. 1646 श्रावण सदि 13 को सायं को लाहौर कराया जिसका कर्मचन्द्र मंत्री वंश प्रबन्ध में वर्णन नगर के बाहर कश्मीर विजय के हेत प्रस्थान करके है। आरती में उपस्थित होकर दस हजार भेंट राजश्री रामदास की वाटिका में प्रथम प्रवास किया करने व भगवान् का स्नात्र-जल शाही अन्तःपुर में और वहाँ समस्त राजाओं, सामन्तों और विद्वानों ले जाकर शान्ति विधि का वर्णन बड़ा ही प्रभावो- " की परिषद में पूज्य आचार्य श्री जिनचन्द्र सरिजी त्पादक है। जयसोम उपाध्याय ने इस विधि के फY को शिष्यों सहित आशीर्वाद प्राप्त्यर्थ बुलाया / इस ग्रन्थ की रचना की थी। अवसर पर कविवर ने सबके सामने वह ग्रन्थ सना जिनप्रभ सूरि आदि विद्वानों की अनेक रचकर जिनागम की सत्यता प्रमाणित करते हुए कहा नाएँ फारसी भाषा में भी उपलब्ध हैं। समयसुन्दर कि मेरे जैसा साधारण व्यक्ति भो एक अक्षर का जी के प्रशिष्य राजसोम का भी फारसी भाषा में आठ लाख अर्थ कर सकता है तो सर्वज्ञ की वाणी स्तोत्र पाया जाता है। इन सब कामों से पारस्पमें अनन्त अर्थ क्यों न होंगे ? इस बात से चमत्कृत रिक प्रेम सौहार्द की वृद्धि हुई। होकर सभी विद्वानों के सन्मुख सम्राट ने इस ग्रन्थ प्रस्तावित विषय पर यह केवल जैन साहित्यको प्रमाणित ठहराते हुए अपने हाथ में लेकर कवि- परक अभिव्यक्ति है / शाही दरबार में हिन्दू समाज वर को समर्पित किया और कहा कि इसकी नकलें के भिन्न-भिन्न समुदायों से सम्बन्धित अनेक विद्वान, / कराके सर्वत्र प्रचारित किया जाय / ब्राह्मण पण्डितादि भी धार्मिक, साहित्यिक चर्चा में पर्याप्त भाग लेते थे। उनकी मध्यस्थता से शास्त्रासम्राट के समक्ष खरतरगच्छीय उ० शिव र्थादि होते थे अतः संस्कृत साहित्य और मुस्लिम निधान के गुरु हर्षसार के मिलन और शास्त्रार्थ से शासकों के विषय में शोधपूर्ण तथ्य प्रकाश में आना कीर्ति प्राप्त करने के तथा जयसोम उपाध्याय के आवश्यक है। देश की ऐक्यता में यह भी महत्वपूर्ण शाही सभा में विद्वान से शास्त्रार्थ में विजय प्राप्त कदम होगा। करने का उल्लेख पाया जाता है। 4, जगमोहन मल्लिक लेन सम्राट के साथ महिमराज वाचक हर्षविशाल कलकत्ता-७००००७ 356 चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम 2 0 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ desk66 Jain Edw international PRGate & Personal use only www.jainelibrary