________________ संलेखना : एक श्रेष्ठ मृत्युकला | 415 000000000000 000000000000 1 आचारांग 1 / 4 / 2 2 गीता 2 / 12 3 भगवती सूत्र 137 4 तत्त्वार्थराजवार्तिक 2022 5 गीता 2 / 27 6 सूत्रकृतांग 2013 आचारांग 11412 8 आतुर प्रात्याख्यान 63 6 (क) संसारासक्तचित्तानां मृत्युीत्यै भवेन्नृणाम् / मोदायते पुनः सोऽपि ज्ञान-वैराग्यवासिनाम् ॥-मृत्यु महोत्सव 17 (ख) संचित तपोधन न नित्यं व्रतनियम संयमरतानाम् / उत्सव भूतं मन्ये मरणमनपराधवृत्तीनाम् ।।--वाचक उमास्वाति (अभिधान राजेन्द्र, भाग 6, पृ० 117) 10 भगवती शतक 21, उद्देशक ? 11 बालाणं अकामं तु मरणं असई भवे / पंडियाणं सकामं तु उक्कोसेण सई भवे / / उत्तरा० 5 / 3-4 12 मरण विभक्ति प्रकरण 10 // 245 13 भक्त परिज्ञा 217 (अमि० रा० भाग 6, पृ० 1127) 14 उत्त० पाइय टीका, आ०५ 15 स्थानांग 3, पृ० 4 16 स्थानांग 2 / 3 / 4 17 भगवती 211 18 उत्त० पाईय टीका, अ०५, गा० 225 16 आचारांग 818 / 4 20 जस्सणं भिक्खुस्स एवं भवइ, से गिलामि च खुल अहं, इमंसि समये इमं सरीरगं अणुपुब्वेण परिवहित्तए, से अणु पुत्वेण आहारं संवटिज्जा / 'कसाये पयणु किच्चा, समाहियच्चे फलगावयट्ठी उट्ठाय भिक्खू अभिनिब्बुडे / --आचारांग, विमोक्ष अध्ययन उद्दे० 6, सूत्र 221 21 स्थानांग 2, उ०२ वृत्ति 22 ज्ञाता 111 / वृति 23 प्रवचन सारोहदार 135 24 पंचाशक विवरण 1 25 इत्तरिय मरण कालाय अणसणा दुविहा भवे / इत्तरिया सावकंखा निरवकंखा उ बिइज्जिया ।।--उत्तरा० 30 / 6 26 जीवियासंसप्पओगि वोच्छिदित्ता जीवे आहारमंतरेण न संकिलिस्सेइ / -उत्तरा० 26 / 35 27 प्रवचन सारोद्धार 134 द्वार 28 द्वादश वार्षिकीमुत्कृष्टां संलेखनां कृत्वा गिरिकन्दरं गत्वा उपलक्षणमेतद् अन्यदपि षट् कायोपमई रहितं विविक्तं स्थानं गत्वा पादपोपगमनं वा शब्दाद् भक्त परिज्ञामिङ्गिनी मरणं च प्रपद्यते / -प्रवचन० द्वार 134 (अभि० रा० भाग 6, पृ० 217) 26 व्यवहार भाष्य 203. जार Wwww.jairnelibrary.or :'.Burk/ -: