SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४ / विशिष्ट निबन्ध : २९३ इस तरह जीवद्रव्य संसारी और मुक्त दो प्रकारोंमें विभाजित होकर भी मूल स्वभावसे समान गुण और समानशक्तिवाला है । पुद्गल द्रव्य 'पुद्गल' द्रव्यका सामान्य लक्षण' है-रूप, रस, गन्ध और स्पर्श से युक्त होना । जो द्रव्य स्कन्ध अवस्थामें पूरण अर्थात् अन्य अन्य परमाणुओंसे मिलना और गलन अर्थात् कुछ परमाणुओंका बिछुड़ना, इस तरह उपचय और अपचयको प्राप्त होता है, वह 'पुद्गल' कहलाता है । समस्त दृश्य जगत् इस 'पुद्गल' काही विस्तार है । मूल दृष्टिसे पुद्गलद्रव्य परमाणुरूप ही है । अनेक परमाणुओंसे मिलकर जो स्कन्ध बनता है, वह संयुक्तद्रव्य ( अनेकद्रव्य ) है । स्कन्धपर्याय स्कन्धान्तर्गत सभी पुद्गल - परमाणुओं की संयुक्त पर्याय है । वे पुद्गल - परमाणु जब तक अपनी बंधशक्तिसे शिथिल या निबिड़रूप में एक-दूसरेसे जुटे रहते हैं, तब तक स्कन्ध कहे जाते हैं । इन स्कन्धोंका बनाव और बिगाड़ परमाणुओं की बंधशक्ति और भेदशक्ति के कारण होता है । प्रत्येक २ परमाणु में स्वभावसे एक रस, एक रूप, एक गन्ध और दो स्पर्श होते हैं । लाल, पीला, नीला, सफेद और काला इन पाँच रूपोंमेंसे कोई एक रूप परमाणु में होता है जो बदलता भी रहता है । तीता, कडुवा, कषायला, खट्टा और मीठा इन पाँच रसोंमेंसे कोई एक रस परमाणु में होता है, जो परिवर्तित भी होता रहता है । सुगन्ध और दुर्गन्ध इन दो गन्धों में से कोई एक गन्ध परमाणु में अवश्य होती है। शीत और उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष, इन दो युगलोंमेंसे कोई एक-एक स्पर्श अर्थात् शीत और उष्णमेंसे एक और स्निग्ध तथा रूक्षमेंसे एक, इस तरह दो स्पर्श प्रत्येक परमाणु में अवश्य होते हैं । बाकी मृदु, कर्कश, गुरु और लघु ये चार स्पर्श स्कन्ध-अवस्थाके हैं । परमाणु-अवस्था में ये नहीं होते । यह एकप्रदेशी होता है । यह स्कन्धोंका कारण भी है और स्कन्धोंके भेदसे उत्पन्न होनेके कारण उनका कार्य भी है। पुद्गलकी परमाणु- अवस्था स्वाभाविक पर्याय है, और स्कन्ध-अवस्था विभाव-पर्याय है । स्कन्धों के भेद -- स्कन्ध अपने परिणमनोंकी अपेक्षा छह प्रकारके होते हैं (१) अतिस्थूल - स्थूल ( बादर - बादर ) — जो स्कन्ध छिन्न-भिन्न होनेपर स्वयं न मिल सकें, वे लकड़ी, पत्थर, पर्वत, पृथ्वी आदि अतिस्थूल-स्थूल हैं । (२) स्थूल ( बादर ) - जो स्कन्ध छिन्न-भिन्न होनेपर स्वयं आपस में मिल जायँ, वे स्थूल स्कन्ध हैं। जैसे कि दूध, घी, तेल, पानी आदि । (३) स्थूल सूक्ष्म ( बादर - सूक्ष्म ) - जो स्कन्ध दिखने में तो स्थूल हों, लेकिन छेदने - भेदने और ग्रहण करने में न आयें, वे छाया, प्रकाश, अन्धकार, चाँदनी आदि स्थूल सूक्ष्म स्कन्ध हैं । (४) सूक्ष्म-स्थूल ( सूक्ष्म-बादर ) - जो सूक्ष्म होकरके भी स्थूल रूप में दिखें, वे पाँचों इन्द्रियोंके विषय -- स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण और शब्द सूक्ष्म स्थूल स्कन्ध हैं । १. २. ३. 'स्पर्श' रसगन्धवर्णवन्तः पुद्गलाः " तत्त्वार्थसू० ५।२३ । "एयरसवण्णगंधं दो फासं सद्दकारणमसदं ।" “अइथूलथूलथूलं थूलं सुहुमं च सुहुमथूलं च । सुमं अइसुमं इति धरादिगं होइ छन्भेयं ॥ " Jain Education International -- पंचास्तिकाय गा० ८१ । - नियमसार गा० २१-२४ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.212088
Book TitleShaddravya Vivechan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZ_Mahendrakumar_Jain_Nyayacharya_Smruti_Granth_012005.pdf
Publication Year
Total Pages29
LanguageHindi
ClassificationArticle & Six Substances
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy