________________ आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ __ षट्खंडागम के सूत्र का अर्थ करने पर किसी ने शंका की यह कैसे जाना जाता है, उसके उत्तर में श्री वीरसेन आचार्य ने कहा कि जिन भगवान के मुंह से निकले हुए वचन से जाना जाता है / "कधमेदे णव्वदे ? जिणवयण विणि गयवयणादों।" इससे जाना जाता है कि षट्खंडागम के सूत्र द्वादशांग के सूत्र हैं / धवल, पु. 7, पृ. 541 पर एक शंका के उत्तर में कहा है कि 'इस शंका का उत्तर गौतम से पूछना चाहिये / ' इससे अभिप्राय है यह सूत्र गौतम गणधर द्वारा रचित हैं। अतः प्रत्येक जैन को धवल-ग्रंथ की स्वाध्याय करनी चाहिये क्योंकि वर्तमान में इससे महान ग्रंथ अन्य नहीं है / जिन भट्टारक महाराज ने इनकी रक्षा की वे भी धन्य के पात्र हैं। यदि वे रक्षा न करते. तो ऐसे महान् ग्रंथ के दर्शन असम्भव थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org