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श्रवणबेलगोला के अभिलेखों में वर्णित बँकिंग प्रणाली
बैंकिंग प्रणाली प्राचीन भारत में अज्ञात नहीं थी। बैंकिंग प्रणाली की स्थापना भारतवर्ष मे प्राचीन काल में ही हो गई थी किन्तु यह प्रणाली वर्तमान पाश्चात्य प्रणालियों से भिन्न थी। प्राचीन समय में श्रेणी तथा निगम बैंक का कार्य करते थे। देश की आर्थिक नीति श्रेणी के हाथों में थी । वर्तमान काल के 'भारतीय चैम्बर आफ कामर्स' से इसकी तुलना कर सकते हैं। पश्चिम भारत के क्षत्रप नहपान के दामाद ऋषभदत्त ने धार्मिक कार्यों के लिए तंतुवाय श्रेणी के पास तीन हजार कार्षापण जमा किए थे। उसमें से दो हजार कार्षापण एक कार्षापण प्रति सैंकड़ा वार्षिक ब्याज की दर से जमा किए तथा एक हजार कार्षापण पर ब्याज की दर तीन चौथाई पण ( कार्षापण का अतालिसव भाग ) थी। इसी प्रकार के सन्दर्भ अन्य श्रेणी, जैसे तैलिक श्रेणी आदि के वर्णनों में भी मिलते हैं । जमाकर्ता कुछ धन जमा करके उसके ब्याज के बदले वस्तु प्राप्त करता रहता था ।
इसी प्रकार के उल्लेख श्रवणबेलगोला के अभिलेखों में भी मिलते हैं । दाता कुछ धन या भूमि आदि का दान कर देता था, जिसके ब्याज स्वरूप प्राप्त होने वाली आय से अष्टविध पूजन, वार्षिक पाद पूजा, पुष्प प ूजा, गोम्मटेश्वर प्रतिमा के स्नान हेतु दुग्ध की प्राप्ति, मन्दिरों का जीर्णोद्धार, मुनि संघों के लिए आहार का प्रबन्ध आदि प्रयोजनों की सिद्धि होती थी। इस प्रकार इन अभिलेखों के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता हैं कि दसवीं शताब्दी के आसपास बैंकिंग प्रणाली पूर्ण विकसित हो चुकी थी। आलोच्य अभिलेखों में जमा करने की विभिन्न पद्धतियां परिलक्षित होती हैं । गोम्मटेश्वर द्वार के दायीं ओर एक पाषाण खण्ड पर उत्कीर्ण एक अभिलेख के नुसार' कल्लय्य ने कुछ धन इस प्रयोजन से जमा करवाया था कि इसके ब्याज से छह पुष्प मालाएँ प्रतिदिन प्राप्त होती रहें। इसके अतिरिक्त आलोच्य अभिलेखों में धन की चार इकाइयों वरह, गद्याग, होन, हग के उल्लेख मिलते हैं। शक संवत् १७४८ के एक अभिलेख' में वर्णन आता है कि देवराज अरसु ने गोम्मट स्वामी की पादपूजा के लिए एक सौ वरह का दान दिया। यह धन किसी महाजन या श्रेणी के पास जमा करवा दिया जाता था तथा इसके ब्याज से पाद पूजा के निमित्त उपयोग में आने वाली वस्तुएं खरीदी जाती थीं । तीर्थंकर सुत्तालय में उत्कीर्ण एक लेख में वर्णन आता है कि गोम्मट सेट्टि ने गोम्मटेश्वर की पूजा के लिए बारह गद्याण का दान दिया । पूजा के अतिरिक्त अभिषेकादि के प्रयोजन से भी धन जमा करवाया जाता था। इस धन पर मिलने वाले ब्याज से नित्याभिषेक के लिए दूध लिया जाता था। एक प्रतिज्ञा पत्र में वर्णन मिलता कि सोवण ने आदिदेव के नित्याभिषेक के लिए पांच गद्याण का दान दिया, जिसके ब्याज से प्रतिदिन एक 'बल्ल' (सम्भवत: दो सेर से बड़ी माप की इकाई होती थी) दूध दिया जा सके। विन्ध्यगिरि पर्वत एक अभिलेख के अनुसार आदियण्ण ने गोम्मट देव के नित्याभिषेक के लिए चार गद्याण का दान दिया । इस राशि के एक 'होन' (गद्याण से छोटा कोई प्रचलित सिक्का) पर एक 'हाग' मासिक ब्याज की दर से एक 'बल्ल' दूध प्रतिदिन दिया जाता था । यहीं के एक अन्य अभिलेख के अनुसार गोम्मट देव के अभिषेकार्थ तीन मान ( अर्थात् छह सेर) दूध प्रतिदिन देने के लिए चार गद्याण का दान दिया गया । अन्य अभिलेख में वर्णन मिलता है कि केति सेट्टि ने गोम्मट देव के नित्याभिषेक के लिए तीन गद्यान का दान दिया, जिसके
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१.
ए० ई० भाग ८, नासिक लेख ।
२. जे० शि० सं० भाग एक, ले० सं ९३ ।
३. जं०शि० सं०, भाग एक, ले० सं० ९८ ।
४.
वही ले० सं० ८१ ।
५.
७.
८.
४२
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वही-ल० सं० १३१ ।
-बही - ले० सं० १७ ।
वही ले० सं० ९४ ।
वही ल े० सं १५ ।
श्री विशनस्वरूप रुस्तगी
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आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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