________________ षित किया गया है। चामुण्डराय अपनी सत्यप्रियता और धर्मनिष्ठाके कारण "सत्य युधिष्ठिर" भी कहे जाते थे। इनकी जैनधर्म में अनुपमेय निष्ठा होने के कारण जैन ग्रन्थकारोंने भी इन्हें सम्यक्त्वरत्नाकर, गुणरत्नभूषण, शौचाभरण आदि विशेषणों (उपाधियों) द्वारा उल्लेखित किया है / इन्हीं चामुण्डरायने गोम्पटेश्वरकी महामूर्तिकी प्रतिष्ठा 23 मार्च ई० सन् 1028 में कराई थी, जैसाकि इस मूर्तिपर उत्कीर्ण लेखसे विदित है / महामस्तकाभिषेक इस मूतिका महामस्तकाभिषेक बड़े समारोहके साथ सम्पन्न होता है / ऐतिहासिक दृष्टिसे इसके महामस्तकाभिषेकका वर्णन ई० सन् 1500, 1598, 1612, 1677, 1825 और 1827 के उत्कीर्ण शिलालेखोंमें मिलता है, जिनमें अभिषेक करानेवाले आचार्य, गृहस्थ, शिल्पकार, बढ़ई, दुध, दही आदिका व्यौरा मिलता है। इनमें कई मस्तकाभिषेक मैसूर-नरेशों और उनके मन्त्रियोंने स्वयं कराये है / सन् 1909 में भी मस्तकाभिषेक हुआ था, उसके बाद मार्च 1925 में भी वह हुआ, जिसे मैसूर नरेश महाराज कृष्णराज बहादुरने अपनी तरफसे कराया था और अभिषेकके लिए पांच हजार रुपये प्रदान किये थे तथा स्वयं पूजा भी की थी। इसके अनन्तर सन् 1940 में भी गोम्मटेश्वरकी इस मूर्तिका महामस्तकाभिक हुआ था। उसके पश्चात् 5 मार्च 1953 में महामस्तकाभिषेक किया गया था, उस समय भारतके कोने-कोनेसे लाखों जैन इस अभिषेकमें सम्मिलित हुए थे। इस अवसरपर वहाँ दर्जनों पत्रकार, फोटोग्राफर और रेडियोवाले भी पहुँचे थे। विश्वके अनेक विद्वान दर्शक भी उसमें शामिल हुए थे। ___ समारोह 21 फरवरी 1981 में जो महामस्तकाभिषेक हुआ, वह सहस्राब्धि-महामस्तकाभिषेक महोत्सव था। इस महोत्सवका महत्त्व पिछले महोत्सवोंसे बहुत अधिक रहा। कर्नाटक राज्यके माननीय मुख्यमन्त्री गुडुराव और उनके सहयोगी अनेक मन्त्रियोंने इस महोत्सवको राज्यीय महोत्सव माना और राज्यकी ओरसे उसकी सारी तैयारियां की गयीं। प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरागांधी और अनेक केन्द्रीय मन्त्रिगण भी उक्त अवसर पर पहुँचे थे। लाखों जैनोंके सिवाय लाखों अन्य भाई और बहनें भी इस उत्सवमें सम्मिलित हए। विश्वधर्मके प्रेरक एलाचार्य मुनि विद्यानन्दके प्रभावक तत्त्वावधान में यह सम्पन्न हुआ, जिनके मार्गदर्शनमें भगवान महावीरका 2500 वाँ निर्वाण महोत्सव सारे राष्ट्रने व्यापक तौरपर 1974 में मनाया। ___ भारतीय प्राचीन संस्कृति एवं त्याग और तपस्याकी महान् स्मारक यह गोम्मटेश्वरकी महामूर्ति युग-युगों तक विश्वको अहिंसा और त्यागकी शिक्षा देती रहेगी। -482 - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org