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शून्यवाद और स्याद्वाद
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स्याद्वादी और शून्यवादी दोनों ने यह स्वीकार किया है कि यदि एक ही भाव का परमार्थ स्वरूप समझ लिया जाये तो सभी भावों का परमार्थ स्वरूप समझ लिया गया ऐसा मानना चाहिए ।
आचारांग में कहा है
अन्यत्र यह भी कहा है
“एको भावः सर्वथा येन दृष्ट, सर्वे भावाः सर्वथा तेन दृष्टाः । सर्वे भावाः सर्वथा येन दृष्टाः, एको भावः सर्वथा तेन दृष्टः ॥
"जे एगं जाणइ से सव्वं जाणइ, जे सव्वं जाणइ से एगं जाणइ "
ऐसा ही निरूपण चन्द्रकीर्ति ने भी अनेक उद्धरण देकर किया है। भावस्यैकस्य यो द्रष्टा द्रष्टा सर्वस्य स स्मृतः । एकस्य शून्यतायैव सैव सर्वस्य शुन्यता ॥ इत्यादि
- मध्य० वृ० पृ० ५०
दोनों ने व्यवहार और परमार्थ सत्यों को स्वीकार किया है । शून्यवादी संवृति और परमार्थ सत्य से वही बात कहता है जो-जैन ने व्यवहार और निश्चयनय बतला कर की है ।
नाना प्रकार के एकान्तवादों को लेकर शून्यवादी चर्चा करता है और इस नतीजे पर आता है कि वस्तु शाश्वत नहीं, उच्छिन्न नहीं, एक नहीं, अनेक नहीं, भाव नहीं, अभाव नहीं । - इत्यादि यहाँ नहीं पक्ष का स्वीकार है । जब कि स्याद्वादी के मन में उन एकान्तों के विषय में अभिप्राय है कि वस्तु शाश्वत भी है, अशाश्वत भी है, एक भी है, अनेक भी है, भाव भी है, अभाव भी हैइस प्रकार शून्यवाद और स्याद्वाद में नहीं और भी को लेकर विवाद है, जबकि एकान्तवादी ही को स्वीकार करते हैं ।
(१)
(२)
मध्यान्त विभाग ग्रन्थ ( ५- २३ - २६ ) में पन्द्रह प्रकार के अन्त युगलों की चर्चा करके उन सभी का अस्वीकार करके मध्यमप्रतिपत् का — निर्विकल्पक ज्ञान को स्वीकार किया गया है उनमें से कुछ ये हैं-
(३)
(४)
( ५ )
– ३, ४, १.
- स्याद्वाद मं० पृ० ११५ —यथोक्तम्
शरीर ही आत्मा है यह एक अन्त और शरीर से भिन्न आत्मा है यह दूसरा अन्त; रूप नित्य है यह एक अन्त और अनित्य है - यह दूसरा । भूतों को नित्य मानने वाले तीर्थिक हैं और अनित्य मानने वाले श्रावकयानवाले हैं ।
आत्मा है यह एक अन्त और नैरात्म्य है—यह दूसरा अन्त ।
धर्म - चित्त भूत-सत् है यह एक अन्त और अभूत है यह दूसरा अन्त ।
अकुशल धर्म को संक्लेश कहना यह विपक्षान्त है और कुशल धर्मों को व्यवदान कहना यह प्रतिपक्षान्त है ।
(६) पुद्गल - आत्मा और धर्म को अस्ति कहना यह शाश्वतान्त है, और उन्हें नास्ति कहना यह उच्छेदान्त है ।
(७) अविद्यादि ग्राह्य ग्राहक हैं
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यह एक अन्त और उसका प्रतिपक्ष विद्यादि ग्राह्य
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ग्राहक हैं यह दूसरा अन्त । इत्यादि ।
आयार्यप्रवर अभिनंदन आआनन्द अन्य
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