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________________ अम्बिका स्तुति : आम्रगुच्छ करां सारां नेमीश्वर क्रमाब्जिनीम्, मंगलोच्चार मुखराम्बिका देव्यै (नम:) स्वाहा। श्री अमरसिन्धुर गणिकृत : श्री अम्बिका गीतम् देशी - गरबानी मां अंबाई, तो दरसण थी अडसिध नवनिध पाई, माई...1 माई रेवंतगिरि ऊपरमाल्हे, माई गहिर गुणै नितप्रति गाजै माई छत अधिक ओपम छाजै। माई...2 माइनेमीसरनाचरण नमे माई दोषी जननै तुरत दर्मे। माई गहिरा दुख वै तुरत दमै... माई 3 माई चिन्तापिण मननीचूरै, माई प्रेम अधिक लक्षमी पूरै। माई चरण नमे उदये सूरै... माई 4 माई आराध्यांततखिण आवै, पेखी निजसेवक सुख पावै। माई गोरंगी मिलगुण गावै... माई 5 निज दास नी आसा तुरत पूरै, देवी नयणा नंदचढते नूरै। माई अधिकै पुण्य ने अंकूरै... माई 6 माई नेह निजर भर निरखीजै माई वंछित सुख मुझ ने दीजै। __माई कारज एतोहिव कीजै... माई 7 वरसुजसत्रंबाल जगत बाजै, सबली सिंघ असवारी छाजै। भावठ भय तो दरसै भाजै... माई 8 बड वखती वीनती अवधारो, इक सबल भरोसो छै थारो। अवलवेसर आपद थी तारो... माई -9 आतंक अरी अलगा हरिजो, देवी सुख संपत वहिला दीजो। “अमरेश" आपणड़ा जाणीजे... माई 10 // इति अंबिका गीतम् // गिरनारजी तीर्थ में जो अम्बिका मन्दिर-शिखर पर वर्तमान है वह वस्तुपाल तेजपाल द्वारा निर्मापित है उसकी सुकृत कीर्ति कल्लोलिनी आदि वस्तुपाल प्रशस्तिसंग्रह में इस प्रकार प्रकाशित है। अम्बिका स्तोत्रम् : पुण्ये गिरीश शिरसि प्रथिताव तारा मासूत्रित त्रिजगती दुरितापहाराम्। दौर्गत्य पाति जनता जनितावलम्बा मम्बा महं महिम हैमवती महेयम्...। यद्वक्त्रकुञ्ज कुहरोद्गत सिंहनादो अप्युन्मादि विघ्नकरि यूथ क धाम माथम्। कुष्माण्डि! खण्डयतु दुर्विनयेन कण्ठः, कण्ठीरव: स तव भक्ति नतेषु भीतिम्...2 कुष्माण्डि! मण्डनमभूत् तव पादपद्मयुग्मं यदीय हृदयावनि मण्डलस्य। पद्मालया नवनिवास विशेष लाभ लुब्धा न धावति कुतोअपि ततः परेण...3 दारिद्रय दुर्दम तमः शमन प्रदीपा: सन्तान कानन घनाघन वारिधाराः। दु:खोपतप्त जनबल मृणाल दण्डा: कुष्माण्डि! पान्तु पदपद्म नखांशवस्ते...4 देवि! प्रकाशयति सन्ततमेष कामं, वामेतरस्तव करश्चरणा नतानाम्। कुर्वन् पुर: प्रगुणितां सहकार लुम्बिमंबे! विलम्ब विकलस्य फलस्य लाभम्... हन्तुं जनस्य दुरितं त्वरिता त्वमेव,नित्यं त्वमेव जिनशासन रक्षणाय, देवि! त्वमेव पुरुषोत्तम माननीया, कामं विभासि विभया सभया त्वमेव...6 तेषां मृगेश्वर गर ज्वर मारि वैरि दुर्वारवारण जल ज्वलनोद्भवा भीः / उच्छृखलं न खलु खेलति येषु धत्से, वात्सत्य पल्लवितमम्बकमम्बिके! त्वम्...7 देवि त्वर्जित जितप्रतिपन्थि तीर्थयात्रा विधौ बुध जनानरंगसंगि। एतत् त्वयिस्तुति निभाद्भुत कल्पवल्लीहल्लीसकं सकल संघ मनो मुदेऽस्तु...8 वरदे कल्पवल्लि त्वं स्तुतिरूपे सरस्वति, पादाग्रानुगतं भक्तं, लम्भयस्वा तुलै:फलैः / / 9 / / स्तोत्रं श्रोत्ररसायनं श्रुत सरस्वा नम्बिकाया: पुरश्चक्रे गूर्जर चक्रवर्तिसचिव: श्रीवस्तुपाल: कवि: प्रात: प्रातर धीयमान मनघं यच्चित्तवृत्तिं सता / माधत्ते विभुतां च ताण्डवयति श्रेय श्रियं पुश्यति...10 // इति महामात्य श्री वस्तुपाल विनिर्मित अम्बिका स्तोत्रम् // गिरनारजी पर जो वस्तुपाल तेजपाल ने अम्बिका शिखर या मन्दिर निर्माण कराया उसका उल्लेख उनकी प्रशस्तियों में सर्वत्र उपर्युक्त उल्लिखित ग्रन्थ के पृ. 28, 44, 46, 48, 51, 54, 56 में है। श्री विजयसेन सूरि कृत रेवंतगिरि रासु जो सं. 1288 के आसपास की प्राचीन रचना है। इस 10, 20, 22 कुल 52 गाथा की रचना की प्रथम गाथा में अम्बिका देवी को भी नमस्कार किया है और द्वितीय कंडवं में काश्मीर देश के श्रावक रतन द्वारा अभिषेक करते लेप्यमय बिंब गल जाने से निराहार रहकर आराधना की। 21 उपवास होने पर अम्बिका देवी ने प्रसन्नता पूर्वक प्रकट होकर कहा, "वत्स तुम कंचनवालानक से आते हुए मणिमय बिम्ब को पीछे की ओर मत देखना। जिनालय की देहली तक पहुंचते बिंब हर्षातिरेक से पीछे देखा और वहीं भगवान नेमिनाथ की प्रतिमा स्थिर हो गई, कुसुमवृष्टि हुई आदि वर्णन है। वैशाख सुदि पूनम को जिन बिंब स्थापन कर अजित और रतन दोनों संघपति भ्राता स्वदेश लौट गये। तृतीय कंडवं में अम्बिका स्वामिनी के मंदिर का इस प्रकार वर्णन किया है... गिरिगरुया सिहरि चडेवि, अंब जंबाहि बंबा लिए। संमिणिए अम्बिक देवि देउलु दीठु रमाउलं ए...। वज्जई ए ताल कंसाल वजई मद्दल गुहिरसर। रंगिहिं ए नच्चई बाल, पेखिवि अंबिक मुह कमलु...2 शुभकरू ए ठविउ उच्छंगि विभकरो नंदणु पासि कए। सोहइ ए ऊजिल सिंगि, सामिणी सींह सिंघासणी ए...3 दावई ए दुक्खहं भंगु, पूरई वंछिउ भवियजण। रक्खइ ए चउविहु संधु, सामिणी सीह सिंघासणी ए...4 अंत - रंगिहि ए रमइ जो रासु, सिरिविजयसेणिसूरि निम्मविउए नेमिजिनु ए तूसई तासु, अंबिक पूरइ मणि रली ए...5 सुकृत कीर्तिकल्लोलिनी (पृ 103) हीरक जयन्ती स्मारिका विद्वत् खण्ड / 75 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211993
Book TitleShasan devi Ambika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherZ_Jain_Vidyalay_Hirak_Jayanti_Granth_012029.pdf
Publication Year1994
Total Pages8
LanguageHindi
ClassificationArticle & Shasan Deva and Devi
File Size2 MB
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