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________________ प्राचार्य मनिजिनविजय : वैशालीनायक चेटक और सिंधुसौवीर का राजा उदायन : 563 रोरुक नगर के नाश और जैन कथा में वणित वीतिभय के नाश के वर्णन में हुएनसौंग, अवदान और जैन ग्रंथ समान हैं. तीनों ने नगरनाश का कारण धूलि-वर्षा ही बताया है. जैन कथा में 'उदायन' और दिव्यावदान में 'उद्रायण' अथवा 'रुद्रायन' की मृत्यु का कारण उसका उत्तराधिकारी माना गया है. जैन ग्रंथकार इसकी मृत्यु विषप्रयोग से और बौद्ध कथाकार शस्त्रप्रयोग से दुष्ट अमात्यों द्वारा होना लिखते हैं. जैन कथाकार उद्रायण का उत्तराधिकारी उसके भानजे केशीकुमार को मानते हैं जबकि बौद्ध कथाकार उसके पुत्र शिखण्डी को उसका उत्तराधिकारी मानते हैं. साथ ही शिखण्डी और उसके मंत्रियों का आपस में जो रुद्रायण विषयक वार्तालाप हुआ है और हेमचन्द्राचार्य की इसी कथा में केशीकुमार और उनके मंत्रियों के बीच उदायन विषयक हुए वार्तालाप में जो भावसाम्य दृष्टिगोचर होता है, उसे समझने के लिये दोनों ग्रंथों के कुछ उद्धरण दिये जाते हैंदेव, श्रूयते वृद्धराजा आगच्छतीति. स कथयति—प्रवजितोऽसौ. किमथ तस्यागमनप्रयोजनमिति ? तौ कथयतः देव, येनैकदिवसमपि राज्यं कारितम् , स विना राज्येनाभिरंस्यत इति कुत एतत् ? पुनरप्यसौ राज्यं कारयितुकाम इति. शिखण्डी कथयति-यद्यसौ राजा भविष्यति, अहं स एव कुमारः, कोऽनुविरोध इति? तौ कथयतः-देव, अप्रतिरूपमेतत्. कथ नाम कुमारामात्यपौरजनपदैरञ्जलि-सहस्र नमस्यमानेन राज्यं कारयित्वा पुनरपि कुमारवासेन वस्तव्यम् ? वरं देशपरित्यागो न तु कुमारवालेन वासम्--स ताभ्यां विप्रलब्धः कथयति–किमत्र युक्तम् ? कथं प्रतिपत्तव्यमिति ? तौ कथयतः-देव, प्रघातयितव्योऽसौ. यदि न प्रघात्यते, नियतं दुष्टामात्यविग्राहितो देवं प्रघातयतीति. स कथयति, कथ पितरं प्रघातयामीति ? तौ कथयतः—न देवेन श्रुतम् ? पिता वा यदि वा भ्राता, पुत्रो वा स्वांगनिःसृतः, प्रत्यनीकेषु वर्तत कर्तव्या भूमिवर्धना (1). (दिव्यावदान पृ० 478) इन्हीं भावों को आचार्य हेमचन्द्र ने निम्न शब्दों में प्रकट किया है : ज्ञात्वोदायनमायातं केश्यमात्यैर्भणिष्यते, निर्विएणस्तपसामेष नियतं तव मातुलः / ऋद्ध राज्यं ह्य न्द्रपदं तत्त्वक्वानुशयं दधात्, नूनं राज्यार्थमेवागाद्विश्वसीर्मा स्म सर्वथा। केशी वक्ष्यत्यसौ राज्यं गृह्णात्वद्यापि कोऽस्म्यहम् , गोपालस्य हि कः कोपो धनं गृह्णाति चेद्धनी। वचयन्ति मंत्रिणः पुण्यैस्तव राज्यमुपस्थितम्, प्रदत्तं न हि केनापि राजधर्मोऽपि नेटशः / पितुओतुर्मातुलाद्वा सुहृदो वापरादपि, प्रसह्याप्याहरे प्राज्यं तद्दत्तं को हि मुञ्चत्ति / तैरेवमुदितोऽत्यर्थं त्यक्त्वा भक्तिमुदायने, केशी प्रत्यति किं कार्य दापयिष्यन्ति ते विषम् / महावीरचरित्र पृ० 158. बौद्ध ग्रंथों में रुद्रायण की रानी का नाम चन्द्रप्रभा लिखा है जब कि नों ग्रंथों में प्रभावती नाम आता है. दोनों में भी 'प्रभा'शब्द का प्रयोग हुआ है जो अधिक ध्यान देने योग्य है. इससे भी अधिक महत्त्व की बात यह है कि राजा का वीणा बजाना, रानी का नृत्य, नृत्य करती हुई रानी में मृत्यु के चिह्न दिखाई देना, रानी की प्रव्रज्या, प्रव्रज्या की आज्ञा देने में मृत्यु के बाद वापिस आने की शर्त राजा के द्वारा रखना, रानी की प्रव्रज्या और उसकी मृत्यु के बाद पुनः राजा को उपदेश देने के लिये आना आदि घटनाओं का जो दोनों ग्रंथों में साम्य मिलता है, वह अधिक आश्चर्यजनक है. दिव्यावदान और हेमचन्द्र के महावीर चरित्र में इस विषय का जो वर्णन आया है, वह पाठसाम्य की दृष्टि से पाठकों के सामने रखता हूँ. रुद्रायणो राजा वीणायां कृतावी, चन्द्रप्रभा देवी नृत्ये. यावदपरेण समयेन रुद्रायणो राजा वीणां वादयति, चन्द्रप्रभा देवी नृत्यति. तेन तस्या नृत्यन्त्या विनाशलक्षणं दृष्टम्. स तामितश्चामुतश्च निरीच्य संलक्षयति-सप्ताहस्यात्यात्काल करिष्यति. तस्य हस्ताबीणा सस्ता, भूमौ निपतिता. चन्द्रप्रभा देवी कथयति–देव मा, मया दुनृत्यम् ? देवी, न त्वया दुनृत्यम्. अपि तु मया तव नृत्यम्त्या विनाशलक्षणं दृष्टम्, सप्तमे दिवसे तव कालक्रिया भवतीति, चन्द्रप्रभा देवी पादयेनिपत्य कथयति-देव यद्य वम्, कृतोपस्थानाहं देवस्य यदि देवो अनुजानीयात्, अहं प्रव्रजेयमिति. स कथयति चन्द्रप्रभे ! Mulniti O ANNADA MPURN M मातारा Tomatory ANTI Jain ET MamRAINRITY HAmmOLA A RAANANTHANIHARTIHATTITalim ARNITURISTMIN CHA a .TAMANI MARATHINDI SATTARNATIO N IITiptier N LOMAYANAurte S INGINEPATIDAary.org
SR No.211964
Book TitleVaishalinayak Chetak aur Sindhu Sauvir ka Raja Udayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherZ_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf
Publication Year1965
Total Pages10
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ascetics
File Size2 MB
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