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________________ 562 मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : तृतीय अध्याय महाशय इसी नामका दूसरा उच्चारण इस प्रकार देते हैं Ragha or Ragham, or Perhaps ourgha और 'वाटर्स' महाशय उसका संस्कृत उच्चारण 'रल्लक' देते हैं. किन्तु दोनों उच्चारणों की अपेक्षा दिव्यावदान का रोरुक उच्चारण ही भाषाशास्त्र की दृष्टि से अधिक संगत लगता है. अतः ये दोनों नगर एक ही थे ऐसा उपर्युक्त प्रमाणों से सिद्ध हो जाता है. किन्तु यहाँ पर भौगोलिक प्रश्न उपस्थित होता है. दीघनिकाये नामक पाली आगम के 'महागोविन्दसुत्तन्त' में और 'जातकट्ठकथा' में रोरुक नगर को 'सौवीर' देश की राजधानी बताया है. प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान्-ह्रीसडेविड्स ने हिन्दुस्तान के नक्शे में सौवीर देश का स्थान कच्छ की खाड़ी के पास में बताया है, जब कि हुएनसौंग होलो-लो-किअ नगर को खोतान प्रदेश [मध्यप्रदेश में बताते हैं. प्रादेशिक दृष्टि से दोनों के स्थल अलग-अलग होने से इन दोनों नगरों को एक मानने में यह सबसे बड़ी बाधा उपस्थित होती है. दीघनिकाय में जिस सौविर देश का उल्लेख आया है उसका अभी तक स्थान निश्चित नहीं हो पाया है. वैदिक पुराणों एवं जैनग्रंथों में सौवीर देश का नाम आता है. जैन ग्रंथों में प्रायः 'सिन्धु-सौवीर' ऐसा जुड़ा हुआ नाम आता है. यह सौवीर बुद्ध का ही सौवीर है तो यह सिन्धु नदी के आस-पास बसा हुआ होना चाहिए. किन्तु जैन और बौद्धों का सौवीर एक ही है ऐसा मालूम नहीं होता. क्योंकि जैन सिन्धु सौवीर की राजधानी वीतिभय अथवा वीतभय मानते हैं, जबकि बौद्ध ग्रंथों में सौवीर की राजधानी रोरुक नगर बतलाई गई है. बौद्ध ग्रंथों में भी अलग-अलग वाचनाओं में इस शब्द के विषय में कई पाठान्तर हैं. जैसे-जातकट्ठकथा में 'रोरुवनगर' अथवा 'रोरुवम नगर' ऐसे दो पाठ आते हैं. 'दीघनिकाय' की सिंहली वाचना में 'रोरुक' और बरमी वाचना में 'रोरुण' पाट आता है. इतना ही नहीं, देश के नामों में भी पाठान्तर है. जैसे दीघनिकाय में 'सौवीर' के स्थान पर सोचिर' पाठ आता है और जातकट्ठकथा में 'शिबिरठे' पाठ है. लिपिकों के प्रमाद और अज्ञान से ऐसे अशुद्ध पाठों का लिखा जाना असंभव नहीं है. ऐसे पाठभेदों से ऐतिहासिक तथ्य निकालने में कितनी बड़ी कठिनाई आती है यह तो पुरातत्त्वज्ञ ही जानते हैं. टीबेटियन साधनों से तो 'रोरुक' नगर पालिसाहित्य प्रसिद्ध कोलिय क्षत्रियों का 'राम ग्राम' हो ऐसा 'राकहील' का अनुमान है. इससे यह पता लगता है कि सौवीर और रोरुक नगर का स्थान अभी तक निश्चित नहीं हो पाया है. अगर निश्चित हुआ मान भी लें तो भी दिव्यावदान का 'रोरुक' और दीघनिकाय का 'रोरुक' दोनों अलग हैं, ऐसा मानने में कोई बाधा भी नहीं है. साथ ही दिव्यावदान वाला रोरुक हिन्दुस्तान के बाहर था ऐसे कई प्रमाण मिलते हैं. रोरुक नगर का जब नाश हुआ था तब कात्यायन भिक्षु मध्यदेश में आने के लिये निकला मार्ग में लम्बाक, स्यामाक, और वाक्कणादि देशों को पार करता हुआ सिन्धु नदी के किनारे पर आया. वहां से नदी को पार कर अनेक स्थलों पर घूमता-घामता श्रावस्ती आ पहुँचा था. पूर्वग्रंथों में लम्बाक-स्यामाक और वोक्कणादि प्रदेश हिन्दुस्तान के बाहर अनार्य प्रदेश माने जाते थे. इनका सिन्धु नदी के उस पार होना भी उन प्रदेशों के अनार्य होने का सबल प्रमाण है. दिव्यावदान की वार्ता के आधार पर से हम यह देखते हैं कि रोरुक नगर में रत्नों की पैदाइश अधिक होती थी और वस्त्रों की कम.२ इसके विपरीत भारत में ऐसा कोई प्रदेश दृष्टिगोचर नहीं होता जहाँ केवल रत्न ही रत्न पैदा होते हों, वस्त्र नहीं. किन्तु मध्य एशिया में ऐसे भी प्रदेश थे जहां वस्त्र नहीं पैदा होते थे.१ इन कारणों से प्रमाणित होता है कि रोरुक नगर हिन्दुस्तान के बाहर था और वह हुएनसौंग का वर्णित 'हो-लालो-किअ' का ही दूसरा नाम था. बौद्ध और जैन कथा में समानता हुएनसौंग और दिव्यावदान की कथा का साम्य हम ऊपर देख आये हैं. किन्तु बौद्ध और जैन कथा में जो साम्य मिलता है वह और भी आश्चर्यजनक है. हुएनसौंग और दिव्यावदान वर्णित कथा में तो केवल रोरुक नगर के नाश का ही साम्य मिलता है किन्तु दिव्यावदान की कथा के साथ जैन कथा का कई बातों में साम्य दृष्टिगोचर होता है. जिसकी चर्चा अब हम करेंगे. 1. देखो-Rockhills life of Buddha. P. 145. 2. 'देवो रत्नाधिपतिः. स राजा वस्त्राधिपति;. तस्य रत्नानि दुर्लभानि'-दिव्यावदान, पृ० 545. . HUTण .iN S O Cainelibrary.org
SR No.211964
Book TitleVaishalinayak Chetak aur Sindhu Sauvir ka Raja Udayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherZ_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf
Publication Year1965
Total Pages10
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ascetics
File Size2 MB
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