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________________ प्राचार्य मुनि श्रीजिनविजयजी वैशालीनायक चेटक और सिंधुसौवीर का राजा उदायन [विक्रम संवत् १६७६ में आचार्य श्री जिनविजयजी ने 'पुरातत्त्व' पु. १ अं० ३ में 'वैशालीना गणसत्ताक राज्यनो नायक राजा चेटक' नामक लेख लिखवाना प्रारम्भ किया था. समग्र लेख एक पुस्तक ही बन जाता और तत्कालीन राजनैतिक इतिहास पर जैन-बौद्ध साहित्यिक सामग्री से नया प्रकाश पड़ता किन्तु दुर्भाग्य से वह अधूरा ही रह गया. फिर भी इसमें चेटक और उदायन के सम्बन्ध में नया प्रकाश उपलब्ध होता है और आज ४१ वर्ष के बाद भी वह लेख नवीन मालूम होता है अतएव हम उसका हिन्दी अनुवाद यहाँ दे रहे हैं.–सम्पादक] जैन-साहित्य में वैशाली के राजा चेटक का नाम कई प्रकारों से प्रसिद्ध है. महावीर के धर्म का महान् उपासक होने मात्र से ही यह प्रसिद्ध नहीं था किन्तु कई अन्य व्यावहारिक प्रसंगों से भी इसकी प्रसिद्धि थी. इसकी प्रसिद्धि के कई कारणों में पहला कारण यह था कि इसका महावीर के वंश के साथ दो प्रकार का संबंध था. एक महावीर की माता त्रिशला इसकी बहन होती थी और दूसरा महावीर के ज्येष्ठ भ्राता नंदिवर्धन की पत्नी, जिसका नाम ज्येष्ठा था, इसकी पुत्री थी. जिस प्रकार महावीर के वंश के साथ इसका कौटुम्बिक संबन्ध था उसी प्रकार तत्कालीन भारत के प्रसिद्ध राजाओं के साथ भी इसका गाढ सम्बन्ध था. सिन्धुसौवीर के राजा उदायन, अवंती के राजा प्रद्योत, कौशाम्बी के राजा शतानीक, चंपा के राजा दधिवाहन, और मगध के राजा बिम्बिसार इसके दामाद होते थे. जैन-साहित्य में कुणिक अथवा कोणिक एवं बौद्ध साहित्य में अजातशत्रु के नाम से प्रसिद्ध मगधसम्राट् और जैन, बौद्ध एवं हिन्दु कथासाहित्य का ख्यातनाम पात्र वत्सराज उदयन इसके दौहित्र थे. साथ ही भारत के तत्कालीन गणतंत्रात्मक राज्यों में से एक प्रधान राज्यतंत्र का यह विशिष्ट नायक भी था. जैन-परम्परा के अनुसार आर्यावर्त की सबसे बड़ी जनसंहारक लड़ाई इसे लड़नी पड़ी थी, जिसमें इसका प्रतिपक्षी इसी का नाती मगधराज अजातशत्रु था. जैन-साहित्य में इतनी बड़ी प्रसिद्धि पाने वाले एवं उस समय के भारत में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त करने वाले, इस राजा के विषय में जैन साहित्य के सिवा अन्यत्र कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता. इसी वजह से आज के ऐतिहासिकों का ध्यान इस ओर आकर्षित नहीं हुआ है. ब्राह्मण-साहित्य की ओर जब हम दृष्टिपात करते हैं तब उसमें कहीं-कहीं तत्कालीन भारत के मगध, कौसल, कौशांबी और अवंती जैसे राज्यतंत्रात्मक राज्यों का उल्लेख अवश्य मिलता है, किन्तु वैशाली जैसे स्थान का, जिसमें गणतंत्रात्मक पद्धति चलती थी, कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता. बौद्ध साहित्य में वैशाली और उस पर आधिपत्य रखने वाली 'लिच्छवी' नामक क्षत्रिय जाति का बहुत कुछ वर्णन आता है किन्तु इस स्थान और समाज पर सर्वोपरि अधिकार रखने वाले किसी खास व्यक्ति-विशेष का नाम बौद्ध साहित्य में नहीं आता. Jain Eduation Internatione Forvate & Personale On wwyainelibrar og
SR No.211964
Book TitleVaishalinayak Chetak aur Sindhu Sauvir ka Raja Udayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherZ_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf
Publication Year1965
Total Pages10
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ascetics
File Size2 MB
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