________________ 104 | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज--अभिनन्दन ग्रन्थ 000000000000 000000000000 अन्दाता ने आच्छा बोया / थारा कटे फूट गया कोया / / केक नाश से नशा करायो, के राडा में रोया। खमा खमा पेला पे, वी ने लगे लगे घर खोया / / इसी तरह से उस युग की शिक्षा प्रणाली पर भी खुलकर लिखते थे। कारण विनय, नम्रता, सरलता, क्षमता की मर्यादा ओझल होती देख वे बोलें। भण ने किधी कशी भलाई। गाँठ री सामी समझ गमाई / / परमारथ रो पाठ भूल किसी याद ठगाई। अवली घेडो मेलमाल पे किधी कणी कमाई // विलासी जीवन में दबते हुए जागीरदारों को देखकर जागृति का संदेश दिया। जैसे जागो जागो रे भारत रा वीरो जागो, थारो कटे केसरियो वागो / थे हो वणों रा जाया यश सुरगों तक लागो / अबे एस आराम वासते मत कुकर ज्यों भागो।। मेवाड़ के चारण भाट कवियों ने भी इस धरती का पानी पीकर शूर वीरता की बिगुल बजाने में कमी नहीं रखी / चित्तौड़ को धाँय-धाय जलती हुई देखकर वीर सैनिकों को आह्वान किया था रात्रि के निरव प्रहर में, चित्तौड़ तिहारी छाती पर / जलती थीं जौहर ज्वालाएँ मेवाड़ तिहारी छाती पर / / धुं धुं करते श्मसान मिले, पग पग पर बलिदान मिले। धानी अंचल में हरे-भरे, माँ-बहिनों के अरमान मिले / मेवाड़ भूमि हमेशा के लिए वीरता का परिचय देती आ रही है। जब कभी कायर का पुत्र पैदा हो जाय, . मानो या वीर भूमि पुकारती कि मेरी रक्षा करने वाले कहाँ गये / माँ जोवे थारी आज बाट, धरती रा धणिया जागो रे, रजपूतण जायो भूल गयो, चित्तौडी जौहर ज्वालों ने। थे भूल गया रण राठौड़ी, अरिदल रा भुखा भालों ने, जगरा मुरदा भी जाग गया, जुझारा अब तो जागो रे / इस प्रकार हमारी मेवाड़ भूमि हमेशा के लिए आदरणीय माता जन्मभूमि प्रिय भूमि बनकर रही है / इस देश की वेष-भूषा, भाषा स्वतन्त्र चली आ रही है / यहाँ के सन्त महात्मा तथा देव दर्शन लोक प्रसिद्ध हो चुके हैं / मेवाड़ का पूरा परिचय दे देना कठिन है, फिर भी मैंने इस छोटे से निबन्ध में थोड़ा-सा परिचय देने का प्रयास किया है। WITTER GONE 0900 NEEMENIRUARMESHRAIL vapineReg