________________ - .. होता है / विभिन्न कोणों से देखने पर एक ही वस्तु से उन्मुक्त विचार करने की प्रेरणा प्रदान की जा KI हमें भिन्न प्रकार की लग सकती है तथा एक स्थान सकती है। से देखने पर भी विभिन्न दृष्टियों की प्रतीतियाँ यदि हम प्रजातन्त्रात्मक यूग में वैज्ञानिक पद्धति से सत्य का साक्षात्कार करना चाहते हैं तो 16 फरवरी, 1980 को सूर्यग्रहण के अवसर 'अनेकांत' से दृष्टि लेकर 'स्याद्वाद प्रणाली' द्वारा पर काल के एक ही क्षण भारतवर्ष के विभिन्न कर सकते हैं। चिन्तन के धरातलों पर उन्मक्तता 15 स्थानों पर व्यक्तियों को सूर्यग्रहण के समान दृश्य / तथा अनाग्रह तथा संवेदना के धरातल पर प्रेम की प्रतीति नहीं हुई / कारवार, रायचूर एवं पुरी HER [ की भावना का विकास कर सकते कारण पूर्ण अँधेरा छा गया; वहीं बम्बई में सूर्य का 85 प्रतिशत भाग, दिल्ली में 58 प्रतिशत भाग इस प्रकार विश्व-धम इस प्रकार विश्व-धर्म के रूप में जैन धर्म एवं 18 तथा श्रीनगर में 48 प्रतिशत भाग दिखाई नहीं दर्शन की आधुनिक युग में प्रासंगिकता को व्याख्यादिया। यित करने की महती आवश्यकता है। यह मनुष्य | भारतवर्ष मे ही सूर्यग्रहण आरम्भ एवं समाप्ति एवं समाज दोनों की समस्याओं का अहिंसात्मक के समय में भी अन्तर रहा / कारवार में सूर्यग्रहण समाधान प्रस्तुत करता है / यह दर्शन आज की मध्याह्न 2.17 20 बजे आरम्भ हुआ तो भुवनेश्वर प्रजातन्त्रात्मक शासन-व्यवस्था एवं वैज्ञानिक सापेक्षमें 2:42.15 पर तथा कारवार में 4.52.10 वादी चिन्तन के भी अनुरूप है। आदमी के भीतर समाप्त हुआ तो भुवनेश्वर में 4-56.35 पर। पूर्ण की अशांति, उद्वेग एवं मानसिक तनावों को यदि दूर करना है तथा अन्ततः मानव के अस्तित्व को रही तो भुवनेश्वर में यह अवधि केवल 46 सेकंड बनाये रखना है तो जैन दर्शन एवं धर्म में प्रतिपा दित मानव की प्रतिष्ठा, प्रत्येक आत्मा की स्वतकी ही रही। न्त्रता तथा प्रत्येक जीव में आत्म-शक्ति का अस्तित्व 'स्याद्वाद' अनेकांतवाद का समर्थक उपादान आदि स्थापनाओं एवं प्रत्ययों को विश्व के सामने है। तत्वो को व्यक्त कर सकने की प्रणाली है। सत्य रखना होगा। जैन धर्म एवं दर्शन मानव-मात्र के II कथन की वैज्ञानिक पद्धति है। लिए समान मानवीय मूल्यों की स्थापना करता मिथ्या ज्ञान के वचनों को दूर करके स्याद्वाद है। सापेक्षवादी सामाजिक संरचनात्मक व्यवस्था ने ऐतिहासिक भूमिका का निर्वाह किया, एकांतिक का चिन्तन प्रस्तुत करता है। पूर्वाग्रह रहित उदार चिन्तन की सीमा बतलाई / आग्रहों के दायरे में दृष्टि से एक दूसरे को समझाने और स्वयं को तलासिमटे हुए मानव की अंधेरी कोठरी को अनेकांत- शने-जानने के लिये अनेकांतवादी जीवन-दृष्टि | वाद के अनन्त लक्षणसम्पन्न सत्य-प्रकाश से आलो- प्रदान करता है। समाज के प्रत्येक सदस्य के लिए कित किया जा सकता है। आग्रह एवं असहिष्णुता समान अधिकार की घोषणा करता प्रत्येक व्यक्ति CI के बन्द दरवाजों को स्याद्वाद के द्वारा खोलकर, को 'स्व-प्रयत्न' से विकास करने का मार्ग दिखाता अहिंसावादी रूप में विविध दृष्टियों एवं सन्दर्भो है। 220 तृतीय खण्ड : धर्म तथा दर्शन 60 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International Formsrivated bersonalitice Only www.jainelibrary.org