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जैन संस्कृति का आलोक
विश्व का प्राचीनतम धर्म
मेघराज जैन
जैन धर्म विश्व का सबसे प्राचीनतम धर्म है इसमें किञ्चित् मात्र भी संशय की गुंजाइश नहीं है। तथापि प्रश्न समुपस्थित होता है कि इसके संस्थापक कौन थे? भगवान महावीर, भगवान पार्श्व या भगवान ऋषभदेव विविध विद्वानों के उद्धरणों से इस विषय को स्पष्ट कर रहे हैं - श्री मेघराजजी जैन ।
- संपादक
जैनधर्म विश्व के प्रमुख एवं प्राचीन धर्मों में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। बीसवीं शती के प्रथम चरण पर्यंत अनेक पौर्वात्य एवं पाश्चात्य विद्वान् इस धर्म को हिन्दू धर्म की एक सुधारवादी शाखा के रूप में ही स्वीकार करते थे। इसकी ऐतिहासिकता को भी श्रमण महावीर से अधिक प्राचीन नहीं मानते थे। किन्तु आज ऐतिहासिक एवं वैज्ञानिक अनुसंधान कार्यों के फलस्वरूप अनेक प्रामाणिक परिणाम सामने आये हैं जो जैन धर्म को प्राचीनतम परम्परा के रूप में प्रतिपादित करते हैं।
प्राच्य विद्याओं के विश्वविख्यात अनुसंधाता डॉ. हर्मन याकोवी ने जैन सूत्रों की व्याख्या में जैनधर्म की प्राचीनता पर पर्याप्त ठोस प्रमाण प्रस्तुत किये हैं। 'इस तथ्य से अब सब सहमत है कि वर्धमान, बुद्ध के समकालीन थे। बौद्ध ग्रंथों में इस बात के प्रमाण है कि वर्धमान, बुद्ध के समकालीन थे। स्वयं बौद्ध ग्रंथों में इस बात के प्रमाण हैं कि श्रमण महावीर से पूर्व जैन या अर्हत् धर्म विद्यमान था। परन्तु महावीर इसके संस्थापक थे ऐसा कोई भी उल्लेख बौद्ध ग्रंथों में प्राप्त नहीं होता।.....
__ पार्श्वनाथ जैनधर्म के संस्थापक थे, इसका भी कोई प्रमाण नहीं है। जैन परम्परा प्रथम तीर्थंकर ऋषभ देव को जैनधर्म का संस्थापक मानने में एकमत है।"..... विश्वविख्यात दार्शनिक डॉ. राधाकृष्णन् ने भी अपनी प्रख्यात पुस्तक 'भारतीय दर्शन' में स्पष्ट लिखा है -निस्संदेह जैन धर्म वर्धमान और पार्श्वनाथ से भी पहले प्रचलित था। यजुर्वेद
में ऋषभदेव, अजितनाथ, और अरिष्टनेमि तीर्थंकरों के नामों का निर्देश है। भागवत-पुराण द्वारा भी इस बात का समर्थन होता है कि ऋषभदेव जैन धर्म के संस्थापक थे।"
शरद कुमार साधक के शब्दों में – “आम धारणा है कि वेद संसार के सबसे प्राचीन धर्म ग्रंथ हैं। पर वेदों में जो अंतर्विरोधी धर्मतत्त्व प्रतिपादित हैं, वे उनसे भी पूर्ववर्ती धार्मिक अवधारणाओं की पुष्टि करते हैं। उन अवधारणाओं के प्रवक्ता व्रात्य थे। व्रात्य संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृति मानी जाती है। महाव्रात्य ऋषभदेव की चर्चा प्राचीन ग्रंथों में होने का अर्थ ही है कि वेद काल में ऋषभदेव लोक श्रद्धा के केन्द्र बर चुके थे। उनसे पूर्व हुए व्रात्यों तक पहुँचाने में सहायक है - जैन तीर्थंकरों की पिछली चौबीसी। वर्तमान चौबीसी में ऋषभदेव पहले तीर्थंकर है और महावीर चौबीसवें, किन्तु इन चौबीस तीर्थंकरों से पहले हुए चौबीस व्रात्यों की प्रतिमाएँ कच्छ (गुजरात) में निर्मित ७२ जिनालयों में विद्यमान हैं।"
भारत की प्राचीन श्रमण संस्कृति तथा अध्यात्मप्रधान महान् मागध धर्म के सजीव सतेज प्रतिनिधि के रूप में जैन धर्म, दर्शन, संस्कृति का भारतीय धर्म, दर्शन और संस्कृतियों में ही नहीं वरन् सम्पूर्ण विश्व के दार्शनिक चिंतन, धार्मिक, इतिहास एवं सांस्कृतिक विकास में महत्वपूर्ण स्थान है। दूसरी शती ईस्वी के आचार्य समन्तभद्र के शब्दों में - “महावीर प्रभृति श्रमण तीर्थंकरों द्वारा प्रतिपादित
विश्व का प्राचीनतम धर्म
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