________________ विमलसूरिकृत पउमचरिय में प्रतिमाविज्ञान-परक सामग्रो - पउमचरिय में उल्लिखित विद्यादेवियों का कालान्तर में ल• आठवीं-नवीं शती ई० में 16 महाविद्याओं को सूची के निर्धारण की दृष्टि से विशेष महत्त्व रहा है। इन्हें सामान्यतः विद्या कहा गया है। केवल मानससुन्दरी, बहुरूपा तथा कुछ अन्य को ही महाविद्या माना गया है।' ग्रन्थ में सर्वकामा विद्या को षोडशाक्षर विद्या बताया गया है। संभव है षोडशाक्षराविद्या की कल्पना से ही कालान्तर में 16 महाविद्याओं की धारणा का विकास हुआ हो। उल्लेखनीय है कि जैन धर्म में विद्या-देवियों की कल्पना यक्ष-यक्षी युगलों (या शासनदेवताओं) से प्राचीन रही है। इसी कारण दिगम्बर परम्परा के 24 यक्षियों के नामों में से अधिकांश पूर्ववर्ती महाविद्याओं के नामों से प्रभावित हैं। इनमें रोहिणी, प्रज्ञप्ति, वज्रशृंखला, पुरुषदत्ता, काली, ज्वालामालिनी, महाकाली, वेरोट्या, मानसी और महामानसी के नाम उल्लेखनीय हैं। पउमचरिय की विद्यादेवियों की सूची में प्रज्ञप्ति, गरुडा, सिंहवाहिनी, दहनोय (या अग्निस्तंभनी), शंकरी, योगेश्वरी, भुजंगिनी, सर्वरोहिणी, वज्रोदयो जैसी विद्याओं के नाम ऐसे हैं जिन्हें 16 महाविद्याओं की सूची में या तो उसी रूप में या किंचित् नाम-परिवर्तन के साथ स्वीकार किया गया। 16 महाविद्याओं की सूची में इन्हें क्रमशः प्रज्ञप्ति, अप्रतिचक्रा, महामानसी, सर्वास्त्रमहाज्वाला (या ज्वाला), गौरी, काली (या महाकाली), वेरोट्या, रोहिणी तथा वज्रांकुशा नाम दिया गया है। इसी प्रकार बहुरूपा (या बहुरूपिणी) विद्या कालान्तर में दिगम्बर परम्परा में 20 वें तीर्थंकर मनिसवत की यक्षी के रूप में मान्य हई। रावण द्वारा सिद्ध 55 विद्याओं में हमें कौमारी, कौवेरी, योगेश्वरी (या चाण्डाली) तथा वर्षिणी (ऐन्द्री ?) जैसी मातृकाओं तथा वारुणी एवं ऐशानी जैसी दिक्पाल-शक्तियों के नामोल्लेख मिलते हैं। इनके अतिरिक्त अक्षोभ्या, मनःस्तंभिनी जैसी विद्याओं के नाम बौद्ध परम्परा से संबंधित प्रतीत होते हैं। इस प्रकार पउमचरिय में उल्लिखित विद्यादेवियों में जैन परम्परा के साथ ही ब्राह्मण और बौद्ध परम्परा की देवियाँ भी हैं। रोडर, कला इतिहास विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी / 1. पउमचरिय 78.73, 67.2 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org