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________________ पात्रता नहीं है। राष्ट्र भाषा किसी भी राष्ट्र की प्रथम रक्षापंक्ति है। इसे ध्वस्त कर दीजिये, राष्ट्र का ध्वंश निश्चित है। आज हमारे छात्रों के श्रम व समय का 50% अंग्रेजी सीखने में बर्बाद हो जाता है। कैसा मीठा जहर है । हम प्यार व आग्रह से पी रहे हैं। अंग्रेजी स्कूलों में दाखिले के लिए मोटी रकम घूस के रूप में दी जा रही है। रहना है भारत में और दक्षता पा रहे हैं अंग्रेजी में 20 वर्षों की अंग्रेजी पढ़ाई के बाद काम मिला कारखाने में जहां मजदूरों से हिन्दी में या भारतीय भाषा में बात करनी है। आफिस की भाषा अलग है और मजदूरों से बात करने वाली भाषा अलग ऐसा क्यों ? गुलामी मनोवृत्ति ! राजनैतिक दृष्टि से आजाद होने के बावजूद मानसिक दृष्टि से अभी हम आजाद नहीं हुए, प्रत्युत गुलामी का रंग दिनोंदिन और गाढ़ा होता जा रहा है। अंग्रेज गये, पर अंग्रेजियत छोड़ गये। लार्ड मैकाले ने जो सपना देखा था वह धीरे-धीरे साकार कसा होता जा रहा है। उसका सपना था कि अंग्रेजी शिक्षा द्वारा भारत में ऐसी कौम पैदा होगी जो रूप-रंग में भारतीय होगी पर विचार एवं व्यवहार में अंग्रेज होगी। भारत की गरीबी एवं दुर्गति में अन्यतम कारण विदेशी भाषा का शिक्षा का माध्यम होना है। जापान एवं चीन के छात्र मातृभाषा में शिक्षा पाते हैं वे विषय की जानकारी हासिल करते हैं, जबकि हम भाषा और वर्तनी करते रहते हैं। और वर्तनी भी ऐसी कि जिसमें कोई विवेक नहीं है। Put पुट हो गया जबकि But बट रह गया। Neighbour के फालतू वर्ण विन्यास रहना गोइंठा में घी डालना है। एक दिन में अपने नाती को श्रुति लेख दे रहा था मेरा तात्पर्य था, मैं एक मधु मक्खी देखता हूं। अर्थात् । see a bee लेकिन नाती ने रोमन लिपि के मात्र चार वर्ण लिख दिये । cab । मैं माथा पीटकर रह गया। गीता में भगवान श्री कृष्ण कह रहे हैं "बड़े जो काम करते हैं, छोटे उसी का अनुकरण करते हैं।" बात बिल्कुल सही है। सामने दिखाई पढ़ रही है। पैसे वालों के लड़के अंग्रेजी स्कूल में पढ़ रहे हैं। ममी, डेड बोल रहे हैं (ईश्वर न करे जीती जागती माता ममी बने और पिताश्री डेड हो जाएं) । बस, कम वित्तवाले अर्थात् निम्न मध्यम वर्गीय समाज टूट पड़ा अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूल में भर्ती कराने के लिए दहेज प्रथा से भी ज्यादा घातक है यह अंग्रेजी स्कूलों की ओर भागने की प्रवृत्ति । आजादी पाने के बाद घाना, नाइजीरिया, कीनिया, यूगाण्डा, तंजानिया, जाम्बिया, गैबिया आदि देशों ने अपने शासकों की ही भाषा को अपनी राष्ट्र भाषा बना ली जबकि इजराइल, थाइलैंड, सोमालिया, इथियोपिया ने अपने देश की भाषा को अपनाया । भारत, श्रीलंका एवं मलयेशिया ऐसा न कर सके क्योंकि इनके यहां अपने घर में ही विवाद उठ खड़ा हुआ। अपनी भाषा को अपनाने का सुफल उन देशों को मिल रहा है जिन्होंने अपनाया और जिन्होंने नहीं अपनाया उनके बच्चे भाषा द्वय की चक्की में पिस रहे हैं और पिसते रहेंगे तब तक जब तक दोनों में से कोई एक भाषा दूसरी को निगल नहीं जाती । हीरक जयन्ती स्मारिका Jain Education International वर्तमान संकट आज दूरदर्शन के माध्यम से भारतीय संस्कृति पर धुआंधार आक्रमण हो रहा है। इससे एक ओर हमारी संस्कृति चरमरा रही है, दूसरी ओर भाषा भी प्रभावित हो रही है। सिने स्टारों का जब इण्टरव्यू होने लगता है तब लगता है सभी स्टार इंग्लैंड से आये हैं। कोई हिन्दी बोल नहीं पाता है या अंग्रेजी बोलने में ही अपनी महिमा समझता है। इनके प्रदर्शनों से निराशा ही नहीं घृणा भी होती है आज दूरदर्शन शिक्षा प्रसार व मनोरंजन का साधन न रहकर सहस्र मुख जहर फैला रहा है। यह सब मात्र इसलिए किया जा रहा है कि किसी अन्य राजनीतिक दल को फायदा न पहुंचे। देश भले रसातल को चला जाय । अंग्रेजी भाषा एवं भोगपरक संस्कृति न केवल हिन्दी का अहित कर रही है, प्रत्युत सम्पूर्ण भारतीय भाषाओं के लिए कैंसर का कीड़ा बन चुकी है। इसके लिए जिम्मेदार है राजनेताओं का क्षुद्र स्वार्थ एवं देश भक्ति का अभाव जो बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में क्रमशः प्रतिक्षण प्रबलतर होता जा रहा है। कागजी बयान सरकारी आंकड़ों के अनुसार हिन्दी की दिनोंदिन तरक्की हो रही है। केन्द्रीय कार्यालयों में हिन्दी प्रकोष्ठ हैं जो अहिन्दी भाषियों को हिन्दी सिखा रहे हैं। प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं और हिन्दी में जोर-शोर से काम चल रहा है लेकिन असलियत कुछ और ही है। ये सफेद हाथी अपनी हिफाजत अच्छी तरह कर लेते हैं। लेकिन सारा दोष इनके मत्थे मढ़ देने से काम नहीं चलेगा। मुझे अच्छी तरह स्मरण है 1964 से पूर्व का भारत । मैं जिस विद्यालय में कार्यरत हूं, उसमें लगभग 10% छात्र दक्षिण भारतीय थे। अधिकांश छात्र हिन्दी में हिन्दी वालों से भी अच्छा अंक पाते थे। दक्षिण भारतीय अग्रदर्शी होते हैं। बच्चों से कहा करते थे— हिन्दी पढ़ो। इसके बिना काम चलने को नहीं विद्यालय के पास ही मद्रासी मुहल्ला है इनकी अच्छी खासी आबादी है लेकिन आज की स्थिति यह है कि एक भी मद्रासी लड़का अपने विद्यालय में नहीं पढ़ रहा है। सभी अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में जा रहे हैं। यही आंकड़ा सही है, बाकी सब कल्पित । इनके बच्चे अतिरिक्त समय में अपने माता-पिता से हिन्दी बोलना सीख लेते हैं। विदेशों में हिन्दी स्वदेश की अपेक्षा विदेशों में हिन्दी का अच्छा खासा प्रचार हुआ है । ऐसा लगता है विदेशी जब हिन्दी में बोलने लगेंगे तभी हम हिन्दी का महत्व समझेंगे, आक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज से हिन्दी पढ़कर आने में गौरव का अनुभव करेंगे। मारिशस को तो लघु भारत कहा ही जाता है। यहां की आबादी का 52% हिन्दू है। यहां के निवासी आचार्य वासुदेव विष्णु दवाल भारत से उच्च शिक्षा प्राप्त कर 1939 ई0 में मारिशस लौटे थे। आपने अपने अथक प्रयास से मारिशस में हिन्दी की उच्च शिक्षा की व्यवस्था की । आज भारत से हिन्दी विद्वानों का आना-जाना बढ़ गया है। यहां अगस्त, For Private & Personal Use Only विद्वत् खण्ड / ६६ www.jainelibrary.org
SR No.211856
Book TitleRashtrabhasha Hindi Samasyaye va Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadhamohan Upadhyay
PublisherZ_Jain_Vidyalay_Hirak_Jayanti_Granth_012029.pdf
Publication Year1994
Total Pages5
LanguageHindi
ClassificationArticle & Literature
File Size658 KB
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