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रामप्यारी का रिसाला
-लक्ष्मी कुमारी चूण्डावत
राजस्थान मरहठों की लूट और हमलों से परेशान था । मेवाड़ मरहठों से तो दुःखी था ही पर गृह कलह से उसकी वर्बादी और भी बढ़ती जा रही थी। चूंडावतों और शत्कावतों का आपसी वैमनस्य उस समय अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुका था ।
अपने पुत्र हमीरसिंहजी और भीमसिंहजी को बहुत ही कम उमर में छोड़कर महाराणा अड़सीजी स्वर्गवासी हो गये। ऐसी विषम स्थिति में मेवाड़ राज्य की जिम्मेवारी नावालिग महाराणा की माता झालीजी सरदार कुंअर पर आ गई। वे बाईजीराज की गादी पर आसीन थी । मेवाड़ राज्य के अन्तःपुर का प्रवन्ध, शासन, परम्परा से चले आते दस्तूर और सांस्कृतिक रीति रस्म की देखभाल करने वाली महिला बाइजीराज कहलाती थी। परिवार की योग्य एवं बुजुर्ग महिला को इस पद पर प्रतिष्ठित किया जाता था । इस पद के भार व व्यय के लिये अतिरिक्त खर्च राज्य से उन्हें मिलता था। राज्य सम्बन्धी कोई सलाह भी बाईजीराज को देने का अधिकार होता था । पर्दे में रहते हुये भी स्त्रियों द्वारा राज्य का काम सम्भालने की प्रथा मेवाड़ के राजघराने में शुरू से ही रही है। पुत्र की नाबालिग अवस्था में माता से पूछ
राज्य
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साधारण काम-काज
कर काम किया जाता था । खास खास व्यक्तियों से खास-खास काम की बात करने के लिये बीच में पर्दा टांग कर बात कर ली जाती थी । के लिये जनानी ड्योढ़ी पर सरदार, प्रधान आदि आते और डावड़ी ( दासी) के साथ उत्तर प्रत्युत्तर कहला दिया. बाईजीराज सरदारकुंअर की दासी बड़ी चतुर थी। वह उत्तर प्रत्युत्तर का काम बड़ी खूबी से करती श्री काम-काज करते करते वह इतनी होशियार हो गई थी कि राज्य की नीति और काम-काज में दखल रखने लगी। रामप्यारीबाई की सलाह बाईजीराज झालीजी मानने लगी । उसका अपना अलग रूतबा जम गया । रामप्यारीबाई का बाकायदा हुकम चलता था। वह लोगों को छुड़वा देती और गिरफ्तार तक करवा लेती प्रधान पद पर आरूढ़ अमरचन्द्र सनाढ्य जैसे योग्य और विशिष्ट व्यक्ति को पकड़ने के लिये उसने अपने आदमी भेज दिये और घर लुटवा दिया । यहाँ तक कि एक पूरा रिसाला रामप्यारीबाई के अधीन था जो उसके हुकम पर चलता था । यह रामप्यारी का रिसाला कहलाता था। उसके मर जाने के बाद भी लगभग १०० वर्ष तक रामप्यारी का रिसाला ही कहलाता था । आधुनिक ढंग से फौजों को तरतीब दी गई, तब वह उनमें मिलाया गया। उसका मकान रामप्यारी की बाड़ी के नाम से प्रसिद्ध है। कर्नल टाड शुरू में आये तब उनके रहने के लिये रामप्यारी की बाड़ी में ही प्रबन्ध किया गया । बाद में उस मकान में सरकारी तोपखाना और मैगजिन रहे। अब उसका कुछ अंश बोहेड़ा की हवेली कहलाता है।
तत्कालीन राजनीति में रामप्यारी एक प्रमुख पात्र मरहठों के उपद्रवों से
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थी । उस समय गृह कलह और मेवाड़ की दशा शोचनीय थी और वेतन न मिलने के कारण महलों पर धरना दे दिया।
१ अड़सीजी के समय में मेवाड़ी सरदारों के खिलाफ हो जाने से उन्हें बाहर से सेना का प्रबन्ध करना पड़ा । उसी समय सिन्धी, अरवी एवं विलायती फौजों का गठन किया गया। तब से मेवाड़ में सिन्धी, अरबी और बलोच आदि बाहर से आकर बसे हुये हैं मेवाड़ में सोलह उमरावों के अलावा १७वां उमराव सिन्धी मुसलमान है। इस १७ उमराव की स्थापना महाराणा अड़सीजी ने ही की थी।
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खजाने में पैसा नहीं था सिन्धी फौजों ने आकर चारों ओर चिन्ता छा गई।
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