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राजस्थानी दिगम्बर जैन गद्यकार
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सम्यग्ज्ञान चन्द्रिका विवेचनात्मक गद्य शैली में लिखी गई है। प्रारम्भ में इकहत्तर पृष्ठ की पीठिका है। आज नवीन शैली के सम्पादित ग्रन्थों में भूमिका का बड़ा महत्त्व माना जाता है। शैली के क्षेत्र में दो सौ बीस वर्ष पूर्व लिखी गई सम्यग्ज्ञान चन्द्रिका की पीठिका आधुनिक भूमिका का आरम्भिक रूप है। किन्तु भूमिका का आद्य रूप होने पर भी उसमें प्रौढ़ता पाई जाती है, उसमें हकलापन कहीं भी देखने को नहीं मिलता। उसको पढ़ने से ग्रन्थ का पूरा हार्द खुल जाता है एवं इस गूढ़ ग्रन्थ के पढ़ने में आने वाली पाठक की समस्त कठिनाइयाँ दूर हो जाती हैं। हिन्दी आत्मकथा-साहित्य में जो महत्त्व महाकवि पण्डित बनारसीदास के 'अर्द्ध कथानक' को प्राप्त है, वही महत्त्व हिन्दी भूमिका साहित्य में समग्ज्ञानचन्द्रिका की पीठिका का है।
___ 'मोक्षमार्ग प्रकाशक' पण्डित टोडरमलजी का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ का आधार कोई एक ग्रन्थ न होकर सम्पूर्ण जैन साहित्य है। यह सम्पूर्ण जैन साहित्य को अपने में समेट लेने का एक सार्थक प्रयत्न था, पर खेद है कि यह ग्रन्थ राज पूर्ण न हो सका । अन्यथा यह कहने में संकोच न होता कि यदि सम्पूर्ण जैन वाङ्मय कहीं एक जगह सरल, सुबोध और जनभाषा में देखना हो तो 'मोक्षमार्ग प्रकाशक' को देख लीजिये। अपूर्ण होने पर भी यह अपनी अपूर्वता के लिए प्रसिद्ध है । यह एक अत्यन्त लोकप्रिय ग्रन्थ है, जिसके कई संस्करण निकल चुके हैं एवं खड़ी बोली में इसके अनुवाद भी कई बार प्रकाशित हो चुके हैं।"
यह उर्दू में भी छप चुका है। मराठी और गुजराती में इसके अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। अभी तक सब कुल मिलाकर इसकी ५१,२०० प्रतियाँ छप चुकी हैं । इसके अतिरिक्त भारतवर्ष के दिगम्बर जैन मन्दिरों के शास्त्र भण्डारों में इस ग्रन्थराज की हजारों हस्तलिखित प्रतियां पाई जाती हैं । समूचे समाज में यह स्वाध्याय और प्रवचन का लोकप्रिय ग्रन्थ है। आज भी पण्डित टोडरमल जी दिगम्बर जैन समाज में सर्वाधिक पढ़े जाने वाले विद्वान् हैं। 'मोक्षमार्ग प्रकाशक' की मूलप्रति भी उपलब्ध है। एवं उसके फोटोप्रिण्ट करा लिये गये हैं जो जयपुर, बम्बई, दिल्ली और सोनगढ़ में सुरक्षित हैं । इस पर स्वतन्त्र प्रवचनात्मक व्याख्याएँ भी मिलती हैं।
यह ग्रन्थ विवेचनात्मक गद्य शैली में लिखा गया है। प्रश्नोत्तरों द्वारा विषय को बहुत गहराई से स्पष्ट किया गया है। इसका प्रतिपाद्य एक गम्भीर विषय है, पर जिस विषय को उठाया गया है उसके सम्बन्ध में उठने वाली प्रत्येक शंका का समाधान प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया गया है। प्रतिपादन शैली में मनोवैज्ञानिकता एवं मौलिकता पाई जाती है । प्रथम शंका के समाधान में द्वितीय शंका की उत्थानिका निहित रहती है। ग्रन्थ को पढ़ते समय पाठक के हृदय में जो प्रश्न उपस्थित होता है उसे हम अगली पंक्ति में लिखा पाते हैं । ग्रन्थ पढ़ते समय पाठक को आगे पढ़ने की उत्सुकता बराबर बनी रहती है।
वाक्य रचना संक्षिप्त और विषय-प्रतिपादन शैली तार्किक एवं गम्भीर है । व्यर्थ का विस्तार उसमें नहीं है,
१. (क) अ०भा० दि० जैन संघ मथुरा, वि० सं० २००५
(ख) श्री दिगम्बर जैन स्वाध्याय मन्दिर ट्रस्ट सोनगढ़, वि० सं० २०२३, २६, ३० २. दाताराम चेरिटेबिल ट्रस्ट, १५८३, दरीबाकला, दिल्ली, वि० सं० २०२७ ३. (क) श्री दि० जैन स्वाध्याय मन्दिर ट्रस्ट, सोनगढ़ (ख) महावीर ब्र० आश्रम, कारंजा ४. दि. जैन मन्दिर दीवान भदीचंद जी, घी वालों का रास्ता, जयपुर, ५. वही, जयपुर। ६. श्री दि. जैन सीमंधर जिनालय, जवेरी बाजार, बम्बई । ७. श्री दि. जैन मुमुक्षु मण्डल, श्री दि. जैन मन्दिर, धर्मपुरा, दिल्ली ८. श्री दि० जैन स्वाध्याय मन्दिर ट्रस्ट, सोनगढ़ ९. आध्यात्मिक सत्पुरुष श्री कानजी स्वामी द्वारा किये गये प्रवचन "मोक्षमार्ग प्रकाश की किरणें" नाम से दो
भागों में श्री दि. जैन स्वाध्याय मन्दिर ट्रस्ट, सोनगढ़ से हिन्दी व गुजराती भाषा में कई बार प्रकाशित हो चुके हैं।
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