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________________ राजस्थान का जैन संस्कृत साहित्य प्रतिष्ठापना के साथ-साथ पूज्यपाद के समाधितन्त्र और आचार्य गुणभद्र के आत्मानुशासन पर लोकप्रिय संस्कृत टीकाएँ लिखीं। इन्हीं के शिष्य भट्टारक पद्मनन्दि (सं० १३८५) संस्कृत के उद्भट विद्वान् थे। इन पर सरस्वती की असीम कृपा थी। एक बार उन्होंने पाषाण की सरस्वती की मूर्ति को मुख से बुला दिया था ।' राजस्थान में चित्तौड़, मेवाड़, बूंदी, wat, टोंक, झालावाड़ के साथ गुजरात इनकी साहित्य-साधना एवं धर्म प्रचार के केन्द्र रहे। भट्टारक द्वादशव्रतोद्यापन सकलकीर्ति ने इन्हीं से नैणवाँ में शिक्षा-दीक्षा प्राप्त की। इनकी प्रमुख कृतियों में श्रावकाचार, पार्श्वनाथस्तोत्र, देवशास्त्रगुरुपूजा हैं । 2 वि० की १४वीं शताब्दी में जनप्रसूरि ने इयाय बेगिक काव्य लिखा, जिसमें व्याकरण की वृत्ति एवं श्रेणिक का जीवन चरित्र दोनों साथ चलते हैं । मुहम्मद तुगलक के प्रतिबोधक एवं धर्मगुरु जिनप्रभसूरि ने वि० सं० १३८६ में विविधतीर्थंकल्प नामक ग्रन्थ का निर्माण किया । तीर्थयात्रा में जो देखा, उसका सजीव वर्णन हुआ है। इसमें भक्ति, इतिहास और चरित तीनों एक साथ मिलते हैं।" ४४५ १५वीं शताब्दी में राजस्थान में बागड़ प्रान्त में भट्टारक सकलकीर्ति का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है । सकलकीर्ति संस्कृत के उद्भट विद्वान् थे । उन्होंने पुराण, न्याय, काव्य, आदि पर २८ से भी अधिक ग्रन्थ लिखे । मूलाचारप्रदीप, आदिपुराण, उत्तरपुराण, शान्तिनाथचरित्र यशोधरनरिण, सुकुमालचरित्र, सुदर्शनचरित्र, पार्श्वनाथचरित्र, व्रतकथाकोष, सुभाषितावली, जम्बूस्वामी चरित्र, सिद्धान्तसारदीपक आदि प्रमुख ग्रन्थ हैं । राजस्थान में जैन संस्कृत साहित्य की संरचना में ब्रह्मजिनदास का योगदान भी कम नहीं है। गुजरात के अणहिलपुरपट्टण में जन्म लेने के बाद मेवाड़ में बागड़ प्रान्त में भट्टारक सकलकीर्ति के सान्निध्य में सं० १४८० से १५२० तक साहित्याराधन में रत रहने वाले या जिनदास ने हिन्दी के साथ संस्कृत भाषा में भी काव्य रचना की, जिनमें पद्मपुराण, जम्बूस्वामीचरित्र हरिवंशपुराण मुख्य है। भट्टारक ज्ञानभूषण की तत्वज्ञानतरंगिणी (रचना काल सं० २५६०) आत्मसम्बोधन काव्य है। ये सागवाड़ा भट्टारक थे 1 गादी के पभाषा चक्रवर्ती शुभचन्द्र (सं० २५७३) विविध विद्याधर (शब्दागम, मुक्त्वागम एवं परमागम) के ज्ञाता थे।" इनकी २४ संस्कृत रचनाओं में चन्द्रप्रभचरित्र, करकण्डुचरित्र, कार्तिकेयानुप्रेक्षा टीका, जीवन्धरचरित्र, पाण्डवपुराण, श्रेणिकचरित्र विशेष प्रसिद्ध हैं। आचार्य सोमकीति ने १५वीं शताब्दी में संस्कृत में सप्तब्यसनकथा प्रम्नचरित्र एवं यशोधरचरित्र रचनाएँ लिखीं। इसी शताब्दी में जिनदत्तसूरि ने जैसलमेर में ज्ञानभण्डार की स्थापना की । वे संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान् थे। सं० १५४४ में कमलसंयमोपाध्याय ने उत्तराध्ययन पर संस्कृत टीका लिखी । ब्रह्म कामराज ने सं० १५६० में जयपुराण लिखा । १ संस्कृत साहित्य एवं साहित्यकार डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल पृ० १०३ २ भट्टारक सम्प्रदाय श्री वी० पी० जोहरापुरकर : ३ राजस्थान का जैन साहित्य, पृ० ५६ । ४ राजस्थान के जैन सन्त : व्यक्तित्व एवं कृतित्व, पृ० ६ ५ ब्रह्मजिनदास व्यक्तित्व एवं कृतित्व, डा० प्रेमचन्द्र विका : ६ राजस्थान के जैन संत, पृ० ९४ ७ मुनि श्री हजारीमल स्मृति ग्रन्थ, पृ० ७६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.211816
Book TitleRajasthan ka Jain Sanskrut Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremchand Ranvaka
PublisherZ_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf
Publication Year1982
Total Pages5
LanguageHindi
ClassificationArticle & Literature
File Size2 MB
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