________________ १६वीं शताब्दी में जावर में की गई थी। जावर से माता रमानाथ मंदिर में भूमिदान का उल्लेख है। रमानाथ जी के मंदिर के आगे एक वि० सं० 1655 आषाढ़ शक्ल मंदिर के स्तम्भों पर वि० सं० 1776 का 14 पंक्तियों 6 की सुरह है। उसमें पेयोली माण्डण शाह भामा का लघु लेख है जिसमें हरिहर आदि के नाम हैं। इसी (प्रसिद्ध भामाशाह से भिन्न ) आदि द्वारा कुछ 'चढ़ावा' मंदिर के बाहर महाराणा भीमसिंह की सुरह लगी है / करने का वर्णन है / अम्बा माता के अतिरिक्त दूसरे माताजी यह सारी मिट्टी में दब गई केवल 'सिध श्री महाराजाके मंदिर के पास महाराणा राजसिंह का एक लेख है धिराज महाराणाजी श्री श्री श्री भीमसिंघ जी आदेसातु यह बहुत घिस गया है, केवल इतना पढ़ा जाता है 'सिद्ध प्रतदवे पेयोली परताप' लिखा है। श्री गणेश गौत्र देव्या प्रसादातु महाराजाधिराज महाराणा ऐसा प्रतीत होता है कि मराठा काल में यह नगर जी श्री राजसिंहजी आदेशात जावर...' पुरानी कचहरी उजड़ गया था। निरन्तर मराठों के आक्रमण से लोग के पास एक सुरह वि० सं० 1815 की है / इसमें महाराणा गांव छोड़कर चले गये। अब नयी बस्ती बस गई है। राजसिंह के समय देपुरा सदाराम द्वारा तालाब में किन्तु ये मंदिर अब खंडहर हैं। यह लेख जावर माइन्स के एक अधिकारी के आग्रह पर मैंने कई वर्षों पूर्व तैयार किया था। काफी सूचना श्री नाहटाजी से भी ली थी। जावर माइन्स के अधिकारियों ने घमने एवं लेखों की प्रतिलिपि करने में सहायता दी थी। मैं इन सबका कृतज्ञ हूँ। [63 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org