________________ निष्कर्ष : पुष्यमित्र और चन्द्रगुप्त की समकालिकता इस रहस्य को द्योतित करती हैं कि मगध सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य को यहाँ अप्रासंगिक ही समझा जाय / यदि साहसांक-संवत् के संदर्भ द्वारा चन्द्रगुप्त-शासन की अवरसीमा 146 ई० पू० प्रमेय है तो उसकी ऊर्ध्वसीमा 170 ई० पू० अनुमेय है / वराहमिहिर एवं भद्रबाहु का 'भ्रातृत्व' दोनों को 200-100 ईसवीपूर्व के मध्यान्तर में ले जाता है, जो मध्यान्तर चन्द्रगुप्त मौर्य (1) के प्रतिकूल पड़ता है / वराहमिहिर का प्रस्तावित प्राचीन शक 622 ई०पू० का है, जो पार्श्वनाथ बस्ती के अभिलेख को आलोकित करता है और वही अभिलेख गाथा को और काल-गणना को प्रमाणित करता है / अत: तिष्यगुप्त के वंश में हुए मौर्यचन्द्रगुप्त (२)का विशाखाचार्य बन जाना जैन-इतिहास की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है / ईसवी पूर्व 382-370 357 342 276 257 167 184 190-100 170 160-148 146 काल-सारिणी घटनाएं नवम नंद का राज्याभिषेक / नन्दयुगीन प्रथम अकाल / महास्थविर भद्रबाहु का निधन / चन्द्रगुप्त मौर्य (1) का अभ्युदय / सम्राट अशोक का अभिषेक / सम्प्रति को उज्जयिनी का राज्य मिला। बलमित्र (तिष्यगुप्त का पुत्र) उज्जयिनीश्वर बना। पुष्यमित्र मगध-सम्राट् बना / आचार्यश्री भद्रबाहु का समय चन्द्रगुप्त मौर्य (2) उज्जयिनीश्वर बना। १२-वर्षीय दूसरा अकाल / साहसांक-संवत् की स्थापना / वराहमिहिर का निधन / चन्द्रगुप्त विशाखाचार्य का निधन / ईसवीपूर्व के लगभग पार्श्वनाथबस्नि का अभिलेख / -पुराणशास्त्र+जैनशास्त्र+अन्य संदर्भो का समवेत निष्कर्ष 100 लगभग सैन्य-प्रयाण के अनन्तर, यूनानी दाशनिक अरस्तु केपरामर्श पर साथ आए हुए यूनानी दर्शनशास्त्रियों के दल ने सिकन्दर को रक्तपात से विमुख करने के लिए भारतीय ऋषियों, विशेषतः दिगम्बर साधओं (जिम्नोसोफिस्त) के प्रभाव क्षेत्र एवं आत्मबल से प्रभावित होकर कलानोस एवं दन्दामिस (दौलामस) से भेंट करने के लिए प्रेरित किया इतिहासवेत्ताओं के अनुसार कलानोस तथा दन्दामिस ही क्रमशः मुनि कल्याण और आचार्य धृतिसेन थे। डा० भगवतशरण उपाध्याय ने अपनी पुस्तक 'भारतीय संस्कृति के स्रोत' में निम्नलिखित मत प्रस्तुत किया है "सिकन्दर को सलाह दी गयी थी कि वह दो सम्मानित तर्कशास्त्रियों (जिम्नोसोफिस्त) से भेंट करे जिनके नाम कलानोस जौर दन्दामिस थे। उसने उन्हें बुलाया, पर उन्होंने मिलने से इनकार कर दिया / ओनेसितोस नामक यूनानी दार्शनिक को (जिसने एथेन्स में दियोजिनीज की परम्परा के सिनिक, दार्शनिक के रूप में नाम कमा लिया था) सिकन्दर ने उन तर्कशास्त्रियों को लाने के लिए भेजा। कलानोस ने यूनानी दार्शनिक को अपने कपड़े उतार कर बातचीत करने के लिए कहा और जब यूनानी दार्शनिक ते उसका पालन किया तब उससे बातचीत की, और बड़े समझाव-बझाव के बाद वह सिकन्दर से मिलने के लिए राजी हुआ / सिकन्दर उसकी निर्भीक स्वतंत्र वत्ति से प्रभाबित हुआ, हालांकि उसने इतनी बड़ी सेना लेकर इधर-उधर भटकने और लोगों का सुख-चैन बिगाड़ने के लिए सिकन्दर की भर्त्सना की। कलानोस ने चमड़े का एक रूखा टुकड़ा धरती पर फेंका और दिखाया कि जब तक कोई चीज केन्द्र पर स्थित नहीं होती तब तक उसके सिरे ऊपर-नीचे होते रहेंगे और कि यही उसके साम्राज्य का चरित्र था जिसके सीमान्त सदा अलग होने के लिए सिर उठाते रहते थे। "अन्ततः अपनी मृत्यु के बाद तम्हें उतनी ही धरती की आवश्यकता होगी जितनी की तुम्हारे शरीर की लम्बाई है," उसने कहा / अपनी इच्छा के विपरीत यह सिकन्दर के साथ फारस गया जहां उसने आग में प्रवेश कर समाधि ली। दन्दामिस को अपनी मातभूमि छोड़ने के लिए सहमत नहीं किया जा सका।" -सम्पादक जैन इतिहास, कला और संस्कृति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org