________________ यहां श्री पी० आर० देशमुख के ग्रन्थ 'इंडस सिविलाइजेशन एंड हिन्दू कल्चर' के कुछ निष्कर्षों की भी चर्चा करेंगे। श्री देशमुख ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि 'जैनों के पहले तीर्थंकर सिन्धु सभ्यता से ही थे। सिन्धुजनों के देव नग्न होते थे। जैन लोगों ने उस सभ्यता/संस्कृति को बनाये रखा और नग्न तीर्थंकरों की पूजा की / इसी तरह उन्होंने सिन्धुघाटी की भाषिक संरचना का भी उल्लेख किया है / लिखा है : 'सिन्धुजनों की भाषा प्राकृत थी। प्राकृत जन-सामान्य की भाषा है / जैनों और हिन्दुओं में भारी भाषिक भेद है। जैनों के समस्त प्राचीन धार्मिक ग्रन्थ प्राकृत में हैं; विशेषतया अर्द्धमागधी में; जबकि हिन्दुओं के समस्त ग्रन्थ संस्कृत में हैं। प्राकृत भाषा के प्रयोग से भी यह सिद्ध होता है कि जैन. प्राग्वैदिक हैं और उनका सिन्धुघाटी सभ्यता से सम्बन्ध था।" उनका यह भी निष्कर्ष है कि जैन कथा-साहित्य में वाणिज्य कथाएँ अधिक हैं। उनकी वहां भरमार है, जबकि हिन्दू. ग्रन्थों में इस तरह की कथाओं का अभाव है। सिन्धुघाटी की सभ्यता में एक वाणिज्यिक कॉमनवेल्थ (राष्ट्रकुल) का अनुमान लगता है। तथ्यों के विश्लेषण से पता लगता है कि जैनों का व्यापार समुद्र-पार तक फैला हुआ था। उनकी हुंडियां चलती/सिकरती थीं। व्यापारिक दृष्टि से वे मोड़ी लिपि का उपयोग करते थे। यदि लिपि-बोध के बाद कुछ तथ्य सामने आये तो हम जान पायेंगे कि किस लरह जैनों ने पांच सहस्र पूर्व एक सुविकसित व्यापार-तन्त्र का विकास कर लिया था / इन सारे तथ्यों से जैनधर्म की प्राचीनता प्रमाणित होती है। प्रस्तुत विचार मात्र एक आरम्भ है; अभी इस सन्दर्भ में पर्याप्त अनुसंधान किया जाना चाहिये। S/00000 s/opress ROATDega Reacom కంపం FOR of 1. इंडस सिविलाइजेशन, ऋग्वेद एंड हिन्दू कल्चर; पी० आर० देशमुख; पु० 364. 2. वही; पृ० 367. 3. वही; पृ० 365. आचार्यरत्न श्री देशभूषणजी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org