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________________ ११८ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ ०००००००००००० ०००००००००००० कुंवर कर्णसिंह के साथ जीवाशाह को भी बादशाह के पास अजमेर भेजा गया ।' ताकि वह मेवाड़ के स्वाभिमान व राजनीतिक स्थिति का ध्यान रख कर तद्नुकूल कुँवर कर्णसिंह का मार्गदर्शन कर सके। रंगोजी बोलिया महाराणा अमरसिंह की राज्य सेवा में नियुक्त रंगोजी बोलिया ने अमरसिंह एवं बादशाह जहाँगीर के मध्य प्रसिद्ध सन्धि कराने में प्रमुख भूमिका निभाई तथा मेवाड़ एवं मुगल साम्राज्य के बीच चल रहे लम्बे संघर्ष को सम्मानजनक ढंग से बन्द कराया। सन्धि सम्पन्न हो जाने के बाद महाराणा अमरसिंह ने प्रसन्न होकर रंगोजी को चार गांव, हाथी, पालकी आदि भेंट दिये व मंत्री पद पर आसीन किया । इस पद पर रहते हुए इसने मेवाड़ के गांवों का सीमांकन कराया और जागीरदारों के गांवों की रेख भी निश्चित की। जहाँगीर ने भी प्रसन्न होकर रंगोजी को ५३ बीघा जमीन देकर सम्मानित किया। रंगोजी ने मेवाड़ एवं मूगल साम्राज्य के मध्य संधि कराने में जो भूमिका निभाई, उस सन्दर्भ में डिंगल गीत तथा हस्तलिखित सामग्री डॉ० ब्रजमोहन जावलिया (उदयपुर) के निजी संग्रह में विद्यमान है। अक्षयराज भामाशाह के पुत्र जीवाशाह की मृत्यु के बाद जीवाशाह के पुत्र कावड़िया अक्षयराज को महाराणा कर्णसिंह (वि० सं०१६७६-१६८४) ने मेवाड़ राज्य का प्रधान बनाया । महाराणा जगतसिंह (वि० सं० १६८४-१७०६) के शासनकाल में अक्षयराज के नेतृत्व में सेना देकर डूंगरपुर के स्वामी रावल पूजा को मेवाड़ की अधीनता स्वीकार कराने के लिए भेजा गया, क्योंकि डूंगरपुर के स्वामी महाराणा प्रताप के समय से ही शाही अधीनता में चले गये थे । अक्षयराज का ससैन्य डूंगरपुर पहुंचने पर रावल पूंजा पहाड़ों में भाग गया । अक्षयराज की आज्ञा से सेना ने डूंगरपुर शहर को लूटा, नष्ट-भ्रष्ट किया एवं रावल पूंजा के महलों को गिरा दिया। सिंघवी दयालदास यह मेवाड़ के प्रसिद्ध व्यापारी संघवी राजाजी एवं माता रयणादे का चतुर्थ पुत्र था । एक बार महाराणा राजसिंह (वि० सं० १७०६-१७३७) की एक राणी ने अपने पति (महाराणा राजसिंह) की हत्या करवा कर अपने पुत्र को मेवाड़ का महाराणा बनाने का षड़यन्त्र रचा । षड़यन्त्र का एक कागज दयालदास को मिल गया। उसने तत्काल महाराणा राजसिंह से सम्पर्क कर उनकी जान बचाई। दयालदास की इस वफादारी से प्रसन्न होकर महाराणा ने इसे अपनी सेवा में रखा तथा अपनी योग्यता से बढ़ते-बढ़ते यह मेवाड़ का प्रधान बन गया । जब औरंगजेब ने वि० सं० १७३६ में मेवाड़ पर चढ़ाई कर सैकड़ों मन्दिर तुड़वा दिये और बहुत आर्थिक नुकसान पहुंचाया तो इस घटना के कुछ समय पश्चात् महाराणा राजसिंह ने इसको बहुत-सी सेना देकर बदला लेने के लिए मालवा की ओर भेजा, दयालदास ने अचानक धार नगर पर आक्रमण कर उसे लूटा, मालवे के अनेक शाही थानों को नष्ट किया, आग लगाई और उनके स्थान पर मेवाड़ के थाने बिठा दिये । लूट से प्राप्त धन को प्रजा में बाँटा एवं बहुत-सी सामग्री ऊँटों पर लाद कर सकुशल मेवाड़ लौट आया तथा महाराणा को नजर की। AUTTARY १ (अ) वीर विनोद, भाग-२, पृष्ठ २५१ । (ब) ओझा-राजपूताने का इतिहास भाग-२, पृष्ठ १३३ । २ वरदा (त्रैमासिक) भाग-१२, अंक ३, पृष्ठ ४१-४७ पर प्रकाशित डा० ब्रजमोहन जावलिया का लेख–'बादशाह . जहाँगीर और महाराणा अमरसिंह की सन्धि के प्रमुख सूत्रधार-रंगोजी बोलिया।' ३ (अ) वीर विनोद, भाग-२, पृष्ठ २५१ (ब) ओझा-राजपूताने का इतिहास भाग-२, पृष्ठ १३३ । ४ (अ) रणछोड़भट्ट कृत राजप्रशस्ति : महाकाव्यम्, सर्ग ५, श्लोक १८१६ । (ब) जगदीश मन्दिर की प्रशस्ति, श्लोक सं० ५४ । ५ ओझा-राजपूताने का इतिहास, भाग-२, पृष्ठ १३०५ । ६ वही, पृष्ठ ८७०-७१ । ७ जती मान-कृत राजविलास (महाकाव्य), विलास-७, छन्द ३८ । 00066 MORE DOMETROD Sammeducationeinter memorya
SR No.211762
Book TitleMevad Rajya ki Raksha me Jainiyo ka Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDev Kothari
PublisherZ_Ambalalji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012038.pdf
Publication Year1976
Total Pages11
LanguageHindi
ClassificationArticle & Society
File Size2 MB
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