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________________ मेवाड़ राज्य की रक्षा में जैनियों की भूमिका | ११७ 000000000000 000000000000 का अपना प्रमुख सामन्त बनाया और एक लाख का पट्टा दिया। इस प्रकार एक किलेदार के पद से सामन्त के उच्च पद पर पहुंचना भारमल की सैनिक योग्यता, चातुर्य एवं स्वामिभक्ति का प्रमाण था । भामाशाह एवं ताराचन्द ये दोनों भाई कावड़िया भारमल के पुत्र थे । हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप (वि० सं० १६२८१६५३) की सेना के हरावल के दाहिने भाग की सेना का नेतृत्व करते हुए लड़े थे एवं अकबर की सेना को शिकस्त दी थी। भामाशाह की राजनैतिक एवं सैनिक योग्यता को देखकर महाराणा प्रताप ने उसे अपना प्रधान बनाया। इसने प्रताप की सैनिक टुकड़ियों का नेतृत्व करते हुए गुजरात, मालवा, मालपुरा आदि इलाकों पर आक्रमण किये एवं लूटपाट कर प्रताप को आर्थिक सहायता की। लूटपाट के प्राप्त धन का ब्यौरा वह एक बही में रखता था और उस धन से राज्य खर्च चलाता था। उसके इस दूरदर्शी एवं कुशल आर्थिक प्रबन्ध के कारण ही प्रताप इतने लम्बे समय तक अकबर के शक्तिशाली साम्राज्य से संघर्ष कर सके थे । महाराणा अमरसिंह (वि० सं० १६५३-१६७६) के राज्यकाल में भामाशाह तीत वर्ष तक प्रधान पद पर रहा और अन्त में प्रधान पद पर रहते हुए ही इसकी मृत्यु हुई। __ ताराचन्द भी एक कुशल सैनिक एवं अच्छा प्रशासक था। यह भी मालवा की ओर प्रताप की सेना लेकर शत्रुओं को दबाने एवं लूटपाट कर आतंक पैदा करने के लिए गया था । पुनः मेवाड़ की ओर लौटते हुए उसे व उसके साथ के सैनिकों को अकबर के सेनापति शाहबाज खां व उसकी सेना ने घेर लिया। ताराचन्द इनसे लड़ता हुआ बस्सी (चित्तौड़ के पास) तक आया किन्तु यहाँ वह घायल होकर गिर पड़ा । बस्सी का स्वामी देवड़ा साईदास इसे अपने किले में ले गया, वहाँ घावों की मरहम पट्टी की एवं इलाज किया। प्रताप ने ताराचन्द को गोड़वाड़ परगने में स्थित सादड़ी गाँव का हाकिम नियुक्त किया, जहां रहकर इसने नगर को ऐसी व्यवस्था की कि शाहबाज खाँ जैसा खूखार योद्धा भी नगर पर कब्जा न कर सका । इसी तरह नाडोल की ओर से होने वाले अकबर की सेना के आक्रमणों का भी वह बराबर मुकाबला करता रहा ।' सादड़ी में इसने अनेक निर्माण कार्य कराये एवं प्रसिद्ध जैन मुनि हेमरत्नसूरि से 'गोरा बादल पद्मिनी चउपई' की रचना कराई। जीवाशाह भामाशाह की मृत्यु के बाद उसके पुत्र कावड़िया जीवाशाह को महाराणा अमरसिंह (वि० सं० १६५३१६७६) ने प्रधान पद पर नियुक्त किया । यह भामाशाह द्वारा लिखी हुई बही के अनुसार गुप्त स्थानों से धन निकालनिकाल कर सेना का व राज्य का खर्च चलाता था ।' बादशाह जहाँगीर से जब अमरसिंह की सुलह हो गई, उसके बाद Ji .....DA प १ (अ) 'महाराणा प्रताप स्मृति ग्रन्थ' में श्री बलवन्तसिंह मेहता का लेख-'कर्मवीर भामाशाह', पृष्ठ ११४ । (ब) 'ओसवाल जाति का इतिहास' में पृष्ठ ७२ पर भारमल को महाराणा उदयसिंह द्वारा प्रधान बनाने का उल्लेख है। भारमल को योग्यता एवं महत्ता का प्रमाण इस बात से भी मिलता है कि उस समय चित्तौड़ किले की पाडनपोल के सामने उसकी हस्तीशाला थी एवं किले पर बहुत बड़ी हवेली थी। (द्रष्टव्य-प्रताप स्मृति ग्रन्थ पृष्ठ ११४)। ३ 'महाराणा प्रताप स्मृति ग्रन्थ' में श्री बलवन्तसिंह मेहता का लेख-'कर्मवीर भामाशाह', पृ० ११४ । ४ वही, पृ० ११५। * ५ ओझा-राजपूताने का इतिहास, द्वितीय भाग, पृ० १३०३ । ६ मरूधर केसरी अभिनन्दन ग्रन्थ में श्री रामवल्लम सोमानी का लेख-'दानवीर भामाशाह का परिवार, पृ० १७५-७६ । ७ द्रष्टव्य-हेमरत्नसूरि कृत-'गोरा बादल पद्मिनी चउपई' की प्रशस्ति । ८ वीर विनोद, भाग-२, पृ० २५१ । ६ (अ) वीर विनोद, भाग-२, पृ० २५१ । (ब) ओझा-राजपूताने का इतिहास, माग-२, पृ० १३३ । PANORM Sam Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211762
Book TitleMevad Rajya ki Raksha me Jainiyo ka Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDev Kothari
PublisherZ_Ambalalji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012038.pdf
Publication Year1976
Total Pages11
LanguageHindi
ClassificationArticle & Society
File Size2 MB
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