________________ लूटनेका प्रयास, उनकी असफलता तथा मन्दिरके रक्षकोंकी वीरताका वर्णन है। इस घटनाके समय कवि स्वयं वहाँ मौजूद था। इस काव्यका रचनाकाल वि० सं० 1863 की आश्विन कृष्णा 1 बृहस्पतिवार है। उपसंहार-मेवाड़ प्रदेशमें उपरोक्त प्रमुख कवियोंके अतिरिक्त प्राचीनकालमें अनेक कवि और भी हुए हैं, जिनका परिचय लेखके विस्तार भयसे यहाँ नहीं दिया जा रहा है। अन्य लेख में शीघ्र ही देनेका प्रयत्न करूंगा। इनके बनाये हुए अनेक फुटकर गीत और अन्य रचनाएँ तत्र-तत्र बिखरी हुई मिलती हैं, जिनपर व्यापक अनुसंधानकी आवश्यकता है। इस प्रकारके कतिपय कवि निम्नलिखित है चारण डूला, कालु देवल, आसियामाला, बाघजीराव, ठाकुरसी बारहठ, रतनबरसड़ा, चारण पीथा, शूजी कवि, चारण भल्लाजी गांधण्यां, बारहठ गोविन्द, विदुर, कम्माजी, वेणा, नन्दलाल भादा, कीरतराम, वखतराम, विनयशील, महेश, मोहन विमल, ओपा आढ़ा, भीमा आसिया, इसरदास भादा, आईदान गाइण, साह दलीचन्द (हीताका निवासी) ठाकुर राजसिंह (हीताका निवासी), केसर, सीहविजय, खेतल, हेम विजय, केतसी, करुणा उदधि आदि / इन कवियोंके अलावा डिंगलके सहस्रों गीत ऐसे मिलते हैं, जिसका विषय मेवाड़के महाराणा, युद्ध व योद्धा, शस्त्र प्रशंसा, शत्रु निन्दा, अध्यात्म आदि है किन्तु इनके रचयिता अज्ञात है। इन गीतोंकी उपस्थिति स्वयं किन्हीं अज्ञात कवियोंकी ओर संकेत करती है, जो समयके व्यतीत होनेके साथ-साथ उनके गीतोंमें उनके नामोंके उल्लेखके अभावमें पीछे छट गये हैं। व्यापक अनुसंधानके द्वारा ऐसे अज्ञात कवियों और जैन सन्तोंका परिचय व साहित्य मेवाड़ के साहित्यिक गौरवको स्पष्ट कर सकता है। 244 : अगरचन्द नाहटा अभिनन्दन-ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org