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________________ मेवाड़ में संस्कृतसाहित्य की जैन परम्परा डॉ० प्रेमसुमन जैन मेवाड़ में प्राचीन समय से जो संस्कृत साहित्य लिखा गया है उसमें जैन मुनियों एवं गृहस्थ साहित्यकारों का विशेष योगदान है । प्राकृत एवं अपभ्रंश साहित्य के अतिरिक्त संस्कृत भाषा में भी जैनमुनियों ने पर्याप्त रचनायें लिखी हैं। मेवाड़ के संस्कृत साहित्य के इतिहास में प्रारम्भ में संस्कृत के शिलालेख एवं प्रशस्तियाँ ही प्राप्त होती हैं । काव्यग्रन्थों का प्रणयन मध्ययुग ' में अधिक हुआ है। उनकी पृष्ठभूमि में जैन मुनियों द्वारा प्रणीत संस्कृत के धर्म-ग्रन्थ रहे हैं । मेवाड़ में संस्कृत के स्वतन्त्र रूप से प्रथम ग्रन्थ लिखने का श्रेय ५वीं शताब्दी के जैन मुनि सिद्धसेन को है, जिनकी साहित्यसाधना का प्रमुख केन्द्र चित्तौड़ था । इन्होंने ३२ श्लोकों वाली २१ द्वात्रिशिकाएँ लिखीं तथा न्यायावतार नामक जैन न्याय का ग्रन्थ संस्कृत में लिखा है । जैन मुनियों की संस्कृत - साहित्य साधना का प्रमुख केन्द्र चित्तौड़ रहा है । आठवीं शताब्दी में यहाँ कई प्रमुख जैन कवियों ने संस्कृत में रचनाएँ लिखी हैं । प्राचार्य हरिभद्रसूरि की साधना-भूमि मेवाड़ रही है। उन्होंने चित्तौड़ में प्राचीन ग्रन्थों पर संस्कृत में कई टीकाएँ लिखी हैं । दशवेकालिकवृत्ति, ध्यानशतकवृत्ति एवं श्रावकप्रज्ञप्तिटीका उनकी महत्त्वपूर्ण रचनाएँ हैं । हरिभद्रसूरि ने संस्कृत में धर्मबिन्दु, अष्टकप्रकरण एवं षड्दर्शनसमुच्चय श्रादि मौलिक ग्रन्थ भी लिखे हैं । श्राचार्य हरिभद्रसूरि के समय से ही चित्तौड़ अन्य जैन मुनियों का भी काव्यक्षेत्र रहा है। जैनाचार्य एलाचार्य एवं उनके शिष्य वीरसेन ने चित्तौड़ में संस्कृत साहित्य को पुष्ट किया है । वीरसेन की धवला - टीका संस्कृत का विशाल ग्रन्थ है । इनके शिष्य जिनसेन ने काव्य ग्रन्थों का प्रणयन भी संस्कृत में किया है। पार्श्वभ्युदय, श्रादिपुराण इनकी प्रमुख रचनायें हैं । इन ग्रन्थों में संस्कृत काव्य और अलंकारों के कई नये प्रयोग देखने को मिलते हैं । जिनसेन ने "पाश्वभ्युदय" में कालिदास के मेघदूत को आधार बनाया है । "मेघदूत" की एक पंक्ति लेकर तीन पंक्तियाँ अपनी लिखी हैं । फिर भी दृश्यों की छटा में कवि की मौलिकता झलकती है। इस तरह इस मेवाड़ी जैन कवि ने मेघदूत की परम्परा को आगे बढ़ाया है । जिनसेन ने श्रादिपुराण को महाभारत की शैली में लिखा है । उनकी इस रचना में आठवीं शताब्दी की सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति समायी हुई है । मेवाड़ के अन्य प्रतिष्ठित जैन संस्कृत कवियों में जिनवल्लभसूरि और उनके शिष्यों का प्रमुख स्थान है । इन्होंने १५-२० रचनाएँ संस्कृत में लिखी हैं, जिनके विषय धार्मिक होते हुए भी उनमें काव्यतत्त्वों की भरमार है । जिनवल्लभसूरि ने " शृ ंगारशतक" नामक एक ग्रन्थ लिखा है। जैन मुनियों के संस्कृत काव्य में यह अकेली शृंगारप्रधान रचना है। इस ग्रन्थ के एक पद्य में कवि कहता है कि नायिका की Jain Education International For Private & Personal Use Only धम्मो दीवो संसार समुद्र
SR No.211755
Book TitleMewad me Sanskruti Sahitya ki Jain Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherZ_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf
Publication Year1988
Total Pages5
LanguageHindi
ClassificationArticle & Literature
File Size484 KB
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