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________________ wwwwww ८६६ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय आचार्य हेमरत्नसूरि की निम्न रचनाओं का भी उल्लेख मिलता है.' १. महीपाल चौपाई २. अमरकुमार चौपाई ३. सीता चौपाई ४. लीलावती १२. श्री पूज्य रत्नसिंह रास-देवगढ़ के पास स्थित ताल नामक स्थान में शूजी कवि ने इस कृति की रचना की. ग्रन्थ का रचनाकाल सं० १६४८ है. यह ४४ पदों की एक लघु कृति है जिसमें रत्नसिंह के व्यक्तित्त्व का चित्रण किया गया है. आचार्य रत्नसिंह लोंकागच्छ, के एक प्रमुख आचार्य हुये हैं. १३. अञ्जना रास—जावरपुर [जावर माइन्स] में उक्त रास की रचना सं० १६५२ में कवि नरेन्द्रकीति ने की. यह एक पौराणिक काव्य है जिसमें रामकथा के प्रमुख पात्र हनुमान की माता अञ्जना की कथा है. ५४. शुकन चौपाई—इसका रचनाकाल सं० १६६० बताया गया है. श्री जयविजय इसके रचनाकार हैं. गिरिपुर [डूंगरपुर में राजा सहस्रमल के राज्यकाल में 'शुकन चौपाई' की रचना हुई. राजा सहस्रमल का राज्यकाल सं० १६३३ से १६६३ तक माना गया है.' इसी लेखक ने सं० १६६८ में संग्रहणीमूल नामक भौगोलिक ग्रन्थ की प्रतिलिपि की. १५. बच्छराज हंसराज रास—कोटड़ा में कवि मानचन्द ने सं० १६७५ में इस कृति की रचना की. वच्छराज और हंसराज नामक दोनों भाई इस कृति की कथा के प्रमुख पात्र हैं. यह मानचन्द या मानमुनि जैनाचार्य जिनराजसूरि के शिष्य थे. १६. शिवजो श्राचार्य रास-श्री धर्मसिंह ने सं० १६९७ में उदयपुर में इस रास की रचना की. यह एक ऐतिहासिक कृति है. मूर्तिपूजा में विश्वास न रखने वाला भी एक पक्ष जैन समाज में है जिनके शिवजी नामक आचार्य हुये हैं. मुनि धर्मसिंह ने इन्हीं शिवजी आचार्य का वर्णन उक्त रास में किया है. 'शिवजी आचार्य रास' का लोंकागच्छ के ऐतिहासिक काव्यों में महत्त्वपूर्ण स्थान है. १७. जयकुमार श्राख्यान-सत्रहवीं शताब्दी में भट्टारक परम्परा के नरेन्द्रकीति के शिष्य कामराज ने 'जयकुमार आख्यान' की रचना की. संस्कृत का यह ग्रन्थ डूंगरपुर में रचा गया. कामराज की एक और रचना 'त्रिशष्ठि शलाका पुरुषचरित' का भी उल्लेख मिलता है. १८. सहस्रफणा पार्श्व जिन स्तवन-सं० १७०१ में शाहपुरा में कवि विनयशील ने इस स्तवन की रचना की. यह ४५ पदों का लघु स्तुतिकाव्य है. १. राजस्थानी भाषा और साहित्य--डा० ई.रालाल महेश्वरी. २. आज के प्रमुख खनिजकेन्द्र जाबर को गत कई वर्षों पूर्व से काफी प्रसिद्धि प्राप्त है. महाराणा लाखा के समय से ही यहाँ शोशा निकाला जाता रहा है. जावर में जैन पुरातत्त्व को विपुल सामग्रो पाई जाती है. कई प्राचीन शिलालेखों और प्रतिमालेखों में जावर का उल्लेख मिलता है. ३. डूंगरपुर राज्य का इतिहास-रायबहादुर गौर शंकर होराचन्द ओझा. ४. दिगम्बर संप्रदाय में मुनिपद के बाद भट्टारकों को प्रमुखता थी. भट्टारकों की दो शाखाएं मुख्य है (१) उत्तर भारतीय (२) पश्चिम भारतीय. पश्चिम भारतीय शाखा के पुरस्कर्ता भट्टारक सकलकीर्ति हुये हैं. इस परम्परा ने वागड़ और गुजरात के सीमावर्ती प्रदेश में गद्दियों स्थापित की और भट्टारकों के प्रोत्साहन में विपुल साहित्य की रचना हुई. 4 ( K Jain Eucaliente SENEST ainettbrary.org
SR No.211753
Book TitleMevad me Rachit Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantilal Bharadwaj
PublisherZ_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf
Publication Year1965
Total Pages11
LanguageHindi
ClassificationArticle & Literature
File Size2 MB
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