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________________ मालव-संस्कृति को जैनधर्म की देन 236 आज भी अपनी गौरव-गाथा गुंजा रहे हैं। आज का उज्जैन नगर अपने अतीत की गौरवशाली परम्परा का प्राणवान प्रतिनिधित्व भले ही न करे, परन्तु मालवा की मिट्टी का कण-कण और उज्जयिनी स्थित क्षिप्रा की लोल-लहरियां अपनी मन्द-मन्थर गति से ज्ञान, दर्शन, तप, चारित्र और मोक्ष की मानव-पिपासा को परितृप्त करने में पूर्णरूपेण सक्षम हैं। 1 प्रस्तुत लेख में मध्यप्रदेश शासन के सूचना तथा प्रकाशन संचालनालय द्वारा प्रकाशित "उज्जयिनी दर्शन" नामक परिचय पुस्तक में प्रकाशित श्री कामताप्रसाद जैन के लेख के अतिरिक्त अन्य सामग्री से भी सहायता ली गई है। विशेष—गुप्तवंशीय सम्राटों के सम्बन्ध में लेखक को धारणाएं प्रचलित ऐतिहासिक धारणाओं से कुछ भिन्न प्रतीत होती हैं, साथ ही ऐतिहासिक आचार्यों के सम्बन्ध में भी मत-भिन्नता है। -सम्पादक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211723
Book TitleMalav Sanskruti ko Jain Dharm ki Den
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBasantilal Bang
PublisherZ_Munidway_Abhinandan_Granth_012006.pdf
Publication Year
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & Culture
File Size667 KB
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