________________ .. मुसीबत में घबराकर, या क्रोध में आकर आत्मघात करना भी हिंसा है. क्योंकि आत्मघाती भय, क्रोध, अपमान, लोभ, कायरता आदि दुर्गुणों से प्रेरित होकर हिंसा करता है। ये दुर्गुण सद्गुणों का नाश करते हैं / इसलिये महिलाओं को ऐसे कुकर्म से बचना चाहिये। 2. सत्य ___महिलाओं को सत्य में पूर्ण निष्ठा रखनी चाहिये / घर में किसी सदस्य को झूठी प्रशंसा करना, जाली हस्ताक्षर करना, घर में किसी दूसरे की वस्तु रखकर उसे देने से इंकार करना, किसी की झूठी बात बनाना जैसी दुष्प्रवृत्तियों से नारी को बचना चाहिये परिवार को झूठे आचरण से बचाने के लिये स्वयं के जीवन को पूर्ण सत्यनिष्ठ बनाना उसका प्रथम कर्तव्य है। 3. अचौर्य महिलाओं को किसी प्रकार के चौर्य कर्म में सहायक नहीं बनना चाहिये / चोरी ही समस्त बुराइयों की जड़ है / इसी से समाज में अनैतिकता फैलती है। किसी पड़ौसी या अन्य किसी की चीज बिना उससे पूछे चोर वृत्ति से लेना, चोरी का माल खरीदना, चोर को चोरी करने में किसी प्रकार की मदद देना, नकली वस्तु को असली बताना, मिलावट करना, नाप तौल' में धोखेबाजी करना, टेक्स चोरी करना / ये सब चोरी हैं / यदि परिवार के व्यक्ति मिलावट या धोखाधड़ी का कार्य करते हों तो उनकी इस वृत्ति को रोकना नारी का प्रथम कर्तव्य है / इस व्रत के पालन. से सम्पत्ति का अपहरण मिटकर न्याय नीति का प्रसार होता है। ___आज महिलाओं में तस्कर वृत्ति से लाई गई विदेशी वस्तुएं खरीदने की प्रवृत्ति बहुत ज्यादा बढ़ गई है / यह भी बहुत बड़ी राष्ट्रीय चोरी है। इस चोरी से स्वावलम्बन की भावना को ठेस पहुंचती है अतः इसकी रोकथाम में महिलाओं को प्रभावकारी भूमिका निभानी चाहिए। 4. ब्रह्मचर्य नारी को ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए स्वपति संतोष रखना चाहिये / आज पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से हमारे देश की नारियों में भी सेक्स की खुली छूट की मांग बढ़ती जा रही है। सस्ते प्रेम के नाम पर कई घृणित और कुत्सित व्यापार चलते हैं / फलस्वरूप समाज और राष्ट्र में अनैतिकता पनप रही है / ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने वाली नारी नग्न नृत्य, अश्लील गायन, वैश्यावृत्ति तथा अन्य कुत्सित चेष्टाओं से सदैव दूर रहती है / उसका एक मात्र लक्ष्य रहता है- प्राण जाय पर शील धर्म न जाय, शील धर्म की रक्षार्थ उसे प्राण भी गंवाने पड़े तो वह हिचकती नहीं। नारी के शील और संयम पालन से पूरे परिवार को संस्कारशील बनाने में बड़ी मदद मिलती है / अपने चरित्र से वह पूरी पीढ़ी को प्रभावित करती है / 5. परिग्रह परिमाण इस व्रत को पालन करने वाली नारी में धन के प्रति आसक्ति नहीं होती। वह धन धान्य की निश्चित मर्यादा कर लेती है / उससे अधिक धन का संग्रह वह नहीं करती। यों तो इच्छाएं आकाश के समान अनन्त होती हैं। धन, धान्य, सोना, चांदी आदि की निश्चित मर्यादा कर वह बढ़ती हुई इच्छाओं पर अंकुश ल गा देती है / इस के पालन से समाज में आर्थिक विषमता मिटकर समता व शांति का प्रसार होता है। समाज में व्याप्त अपहरण, शोष ग, चोरी आदि बुराइयाँ इससे रुकती हैं। इस प्रकार जीवन में अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और परिग्रह परिमाण आदि ब्रत धारण करने से परिवार और समाज में प्रेम, आत्मीयता, सहृदयता, विश्वास, प्रामाणिकता, नैतिकता, समता आदि सद्गुणों की भावना का प्रचार-प्रसार होता है। जीवन अनुशासित, नियमित व कर्तव्यनिष्ठ बनता है। नारी सदा से सेवा परायण, सहनशील और त्याग की मूर्ति रही है / आज जहाँ हमें नारी को बाह्य करीतियों से मक्त करना है, वहाँ उसके आन्तरिक जगत को विकसित करने के भी सुनियोजित प्रयत्न करने आवश्यक हैं / क्योंकि सदाचार, नैतिकता, ईमानदारी, कर्तव्यपरायणता जैसे गुण उसके आन्तरिक जगत में ही स्थित रहते हैं और उसी से विकसित रहकर उन्हें बाह्य जगत में अन्यत्र फैलने-पनपने का अवसर मिलता है / इसके लिये महिला स्वाध्याय केन्द्र, महिला नैतिक शिक्षण शिविर, महिला साहित्य परिषद जैसे सांस्कृतिक संगठन खड़े किये जाने चाहिये। मानव में मनुजता का प्रकाश सत्य, शौर्य, उदारता, संयम आदि गुणों से ही होता है। जिसमें गुण नहीं उसमें मानवता नहीं, अन्धकार मनुजता का संहारक है, वह प्राणिमात्र को संसार में धकेलता है। -राजेन्द्र सूरि श्री. नि. सं. 2503 139 Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org