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________________ विषय वस्तु में तो है ही, किन्तु एक सबसे बड़ी है। वहीं उपदेशपरक भजनों को भी संरचना की विशेषता उनकी गेयता है। है। इन उपदेशपरक भजनों के द्वारा मानवों की ___'स्तुति' शब्द स्तुत्यर्थक 'स्तु' धातु में 'क्तिन्' सुप्त चेतना को जगाने हेतु भावपूर्ण शब्दों में है। प्रत्यय लगकर बनता है / जिसका अर्थ है-श्रद्धा हितोपदेश दिया है। इसी खण्ड में उनके कुछ भक्तिपूर्वक पूज्य गुणों का वर्णन करना। भजन अंकित हैं / पाश्चात्य विद्वान हिम (Hymn) शब्द का प्रयोग इस प्रकार हम देखते हैं कि परम विदुषी महास्तुति के अर्थ में करते हैं। सती श्री कुसुमवती जी महाराज एक निबन्धकार, ___ जैन परम्परा में स्तुति का अत्यधिक महत्व प्रवचनकर्वी, कथाकार, चिन्तक और कवयित्री है / संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रश और समस्त प्रान्तीय के रूप में हमारे सम्मुख आती हैं। उनके द्वारा | 68 भाषाओं में अगणित स्तुतियाँ मिलती हैं / जैन धर्म रचित साहित्य का अवलोकन करने से स्पष्ट हो में स्तुति के अर्थ में 'स्तव' और 'स्तोत्र' इन दो शब्दों जाता है कि उन्होंने जो भी सृजन किया है। वे // का प्रयोग दिखाई देता है। प्राकृत भाषा में स्तव उस विधा में खरी उतरी है / यहाँ मैं इस बात का IK को 'थय' या 'थअ' तथा स्तोत्र की 'थोत्त' कहा निर्देश करना आवश्यक समझता हूँ कि उनकी गया है। शिष्याओं/प्रशिष्याओं को चाहिए कि वे महासती परम विदुषी महासती श्री कुसुमवती जी म. जी द्वारा रचित समस्त साहित्य को व्यवस्थित कर 2 सा० ने समय-समय पर विभिन्न स्तुतियों की संर- उसे अलग-अलग पुस्तकों में प्रकाशित करवायें तो l चना की है। जो प्रांजल भाषा में सरल, सरस जन सामान्य को भी उसका लाभ मिल सकेगा और गेय हैं। कवयित्री ने जहाँ और उनके बताये मार्ग पर चलने का प्रयास कर * में आराध्यदेव प्रभु के प्रति श्रद्धा अर्घ्य चढ़ाया है, सकेगा। विश्वास है कि मेरे इस सुझाव को क्रिया) भक्ति भाव के सुगन्धित सुमनों को समर्पित किया त्मक रूप मिलेगा। 15 (शेष पृष्ठ 514 का) जीवन है-आशा / निराशा यौवन की मौत है। प्रसन्नता शीतल जल पूरित स्वच्छ जलाशय है, आशा की ओर उन्मुख रहना उत्साह की चाह और जिसमें निमग्न होकर प्रत्येक निर्मल तो हो ही जाता यौवन की राह है। है, समस्त तापों से भी मुक्त हो जाता है। आशा भरे हृदय को कोई संकट कभी आतंकित आभ्यन्तरिक प्रसन्नता ही सारे जगत को किसी नहीं कर पाता और उसकी यह असमर्थता पराभव UI के लिए भव्य सौन्दर्यशाली, चित्ताकर्षक और मनो- की प्रथम सीढ़ी बनती है। 25 रम बना देती है। हम जिस रंग का चश्मा चढाएंगे आशा व्यक्ति के लिए कभी दखद नहीं होती उसी रंग में रंगे हुए तो सारे दृश्य हमें दिखाई है। आशाओं की अपूर्ति तो निराशा है, वही खेद जनक है। उसे आशा मानना भ्रान्ति है। आशाएँ प्रसन्नता मन का तत्व है। इसे प्रसन्नता देने इस प्रकार निराशाओं में तभी परिणत होती हैं, वाली बाह्य वस्तु की विशेषता मानना भ्रम है।। जब व्यक्ति उसके लिए अतीव काल्पनिक आधार प्रसन्नता जीवन और जगत के दुर्धर्षे संकटों से बनाता है-आशा का क्या दोष? संघर्ष की प्रथम एवं अनिवार्य तैयारी है, जो उत्साह सावधानी के साथ आशाओं को क्षेत्र दो, उद्यम के आयुध-निर्माण का कार्य करती है। से सींचो, सचेष्टता से संरक्षण करो, यत्न से आशा-निराशा विकसित करो, प्रसन्नता के ही प्रसून प्रस्फुटित ___ उत्साह यौवन का अनिवार्य लक्षण है / उसका होंगे। सप्तम खण्ड : विचार मंथन 529 ( साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Por. Private & Personal Use Only देंगे। Jan Education International www.jainelibrary.org
SR No.211696
Book TitleMahasati Kusumvatiji Maharaj ka Sahitya Ek Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherZ_Kusumvati_Sadhvi_Abhinandan_Granth_012032.pdf
Publication Year1990
Total Pages5
LanguageHindi
ClassificationArticle & Criticism
File Size724 KB
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