SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महावीरकी धर्म देशना महावीरका जन्म आजसे २५५१ वर्ष पहले लोकवन्द्य महावीरने विश्वके लिए स्पृहणीय भारतवर्ष के अत्यन्त रमणीक पुण्य- प्रदेश विदेहदेश (बिहार प्रान्त) के 'कुण्डपुर' नगर में जन्म लिया था । ' कुण्डपुर' विदेहकी राजधानी वैशाली ( वर्तमान वसाढ़) के निकट बसा हुआ था और उस समय एक सुन्दर एवं स्वतन्त्र गणसत्तात्मक राज्यके रूपमें अवस्थित था । इसके शासक सिद्धार्थ नरेश थे, जो लिच्छवी ज्ञातृवंशी थे और बड़े न्याय-नीतिकुशल एवं प्रजावत्सल थे। इनकी शासन व्यवस्था अहिंसा और गणतंत्र (प्रजातंत्र ) के सिद्धान्तों के आधारपर चलती थी । ये उस समयके नौ लिच्छवि ( वज्जि) गणों में एक थे और उनमें इनका अच्छा सम्मान तथा आदर था । सिद्धार्थ भी उन्हें इसी तरह सम्मान देते थे । इसीसे लिच्छवी गणोंके बारेमें उनके पारस्परिक, प्रेम और संगठनको बतलाते हुए बौद्धोंके दीघनिकाय अट्ठकथा आदि प्राचीन ग्रन्थोंमें कहा गया है कि 'यदि कोई लिच्छवि बीमार होता तो सब लिच्छवि उसे देखने आते, एकके घर उत्सव होता तो उसमें सब सम्मि लित होते, तथा यदि उनके नगर में कोई साधु-सन्त आता तो उसका स्वागत करते थे।' इससे मालूम होता है कि अहिंसा परम पुजारी नृप सिद्धार्थ के सूक्ष्म अहिंसक आचरणका कितना अधिक प्रभाव था ? जो साथी नरेश जैन धर्मके उपासक नहीं थे वे भी सिद्धार्थकी अहिंसा नीतिका समर्थन करते थे और परस्पर भ्रातृत्वपूर्ण समानताका आदर्श उपस्थित करते थे । सिद्धार्थ इन्हीं समभाव, प्रेम, संगठन, प्रभावादि गुणोंसे आकृष्ट होकर वैशालीके ( जो विदेह देशकी तत्कालीन सुन्दर राजधानी तथा लिच्छवि नरेशों के प्रजातंत्र की प्रवृत्तियोंको केन्द्र एवं गौरवपूर्ण नगरी थी ) प्रभावशाली नरेश चेटकने अपनी गुणवती राजकुमारी त्रिशलाका विवाह उनके साथ कर दिया था । त्रिशला चेटककी सबसे प्यारी पुत्री थी, इसलिए चेटक उन्हे 'प्रियकारिणी' भी कहा करते थे । त्रिशला अपने प्रभावशाली सुयोग्य पिताकी सुयोग्य पुत्री होनेके कारण पैतृकगुणोंसे सम्पन्न तथा उदारता, दया, विनय, शीलादि गुणोंसे भी युक्त थी । इसी भाग्यशाली दम्पति - त्रिशला और सिद्धार्थ को लोकवन्द्य महावीरको जन्म देनेका अचिन्त्य सौभाग्य प्राप्त हुआ। जिस दिन महावीरका जन्म हुआ वह चैत सुदी तेरसका पावन दिवस था । महावीरके जन्म लेते ही सिद्धार्थ और उनके परिवारने पुत्रजन्मके उपलक्ष्य में खूब खुशियाँ मनाई । गरीबों को भरपूर धन-धान्य आदि दिया और सबकी मनोकामनाएँ पूरी कीं । तथा तरह-तरह के गायन - वादित्रादि करवाये । सिद्धार्थके कुटुम्बी जनों, समशील मित्रनरेशों, रिश्तेदारों और प्रजाजनोंने भी उन्हें बधाइयाँ भेजीं, खुशियाँ मनाई और याचकोंको दानादि दिया । महावीर बाल्यावस्था में ही विशिष्ट ज्ञानवान् और अद्वितीय बुद्धिमान् थे । बड़ी से बड़ी शंकाका समाधान कर देते थे । साधु-सन्त भी अपनी शंकाएँ पूछने आते थे । इसीलिए लोगोंने उन्हें सन्मति कहना शुरू कर दिया और इस तरह वर्धमानका लोकमें एक 'सन्मति' नाम भी प्रसिद्ध हो गया । वह बड़े वीर भी थे । Jain Education International - १५० - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211693
Book TitleMahavir ki Dharm Deshna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherZ_Darbarilal_Kothiya_Abhinandan_Granth_012020.pdf
Publication Year1982
Total Pages5
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ceremon
File Size511 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy