________________ 320 : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : द्वितीय अध्याय केवलज्ञान होने के पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर तीस वर्ष तक उपदेश देते रहे. राजगृह से विहार करते-करते वे चतुर्मास व्यतीत करने के लिये पावापुरी पधारे. कार्तिक अमावस्या को प्रातःकाल यकायक ईसवी सन् पूर्व 527 के दिन 72 वर्ष की अवस्था में उनका उपदेश बन्द हो गया. और अमावस्या की रात्रि के पिछले पहर में उन्होंने निर्वाण पद पाया. बात की बात में महावीर-निर्वाण की चर्चा सर्वत्र फैल गई. भुवन-प्रदीप संसार से सदा के लिये बुझ गया. उस समय काशी कौशल के मल्ल और लिच्छिवी गणराजा उपस्थित थे. उन्होंने इस पुनीत अवसर पर सर्वत्र दीपक जला कर दीपावली का उत्सव मनाया. किसी ने कहा—संसार की एक दिव्य विभूति उठ गई है, किसी ने कहा- अब दुर्बलों का कोई मित्र नहीं रहा. किसी ने कहा-श्रमण भगवान् आज कूच कर गये हैं तो क्या ! वे हमारे लिये बहुत कुछ छोड़ गये हैं, उनके सदुपदेशों को आगे बढ़ाने का काम हम करेंगे, दुनिया को सत्पथ हम दिखायेंगे. आज भी अणुशक्ति के इस युग में महावीर के लोकप्रिय सिद्धान्त विश्व को मार्गदर्शन करने और हमें राष्ट्र की समस्याओं को सुलझाने में सहायक होंगे, इसमें सन्देह नहीं. लेकिन यह कार्य उनके धर्म के तत्त्व को ठीक-ठीक समझ कर हृदयंगम करने से हो सकता है. उनके नाम पर चली आई रूढ़ियों को पालने से नहीं.' 000000 1. आकशवाणी बम्बई के सौजन्य से. - Jain Education Interational Jain Education Intermational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org