________________ 24 डा० सुदर्शन लाल जैन ही नहीं पड़ता है। यदि कहीं दिखलाई देता भी है तो वह दो स्वरों के मध्य में, वह भी अवर्ण परे अवर्ण स्वर के साथ जहाँ 'य' श्रुति हो सकती है। अतः शंका ऐसे स्थलों पर ही अवशिष्ट रहती है / इस संदर्भ में निम्न हेतुओं से उस शंका का निवारण कर लेना चाहिए--- (1) हेमचन्द्र ने स्वरमध्यवर्ती 'य' लोप के जो दो उदाहरण (दयाल और नयणं) दिए हैं उनमें 'य' विद्यमान है जो वहाँ 'य' लोप के बाद पुनः होने वाली 'य' श्रुति का द्योतक है, मूल यकार का नहीं। (2) हेमचन्द्र 'प्रायः' की व्याख्या करते समय 'य' लोपाभाव का एक भी उदाहरण नहीं देते जबकि 'क ग' आदि के लोपाभाव के उदाहरण देते हैं। (3) वररुचि ने जो 'य' लोपाभाव का उदाहरण दिया है वहाँ भी य>ज में परिवर्तित हो गया है। (4) वररुचि ने महाराष्ट्री प्राकृत में न तो 'य' श्रुति का विधान किया है और न 'य' युक्त किसी पद को उदाहरण के रूप में अपने ग्रन्थ में कहीं दिया है। हेमचन्द्र जहाँ 'य' श्रुति का प्रयोग करते हैं वहाँ वररुचि उद्वृत्त 'अ' का प्रयोग करते हैं। हेमचन्द्र से वररुचि पूर्ववर्ती हैं / 'य' श्रुति बाद का विकास है / अतः 'य' का नित्य लोप होना चाहिए। (5) संस्कृत व्याकरण में भी लघुप्रयत्नोच्चारित 'य' का उल्लेख मिलता है जिससे 'य' श्रुति की मूल 'य' से भिन्नरूपता सिद्ध होती है। (6) प्राचीन महाराष्ट्री साहित्यिक भाषा में 'य' श्रुति का भी प्रयोग नहीं है। 'य' श्रुति सुखोच्चारणार्थ आई है जिसकी ध्वनि 'य' से मिलती-जुलती है, परन्तु 'य' नहीं है। अतः श्रुति शब्द का प्रयोग उसके साथ किया गया है, "य' होता है' ऐसा नहीं कहा गया। (7) "य' का नित्यलोप होता है' ऐसा न कहने का कारण है 'य' में होने वाले विभिन्न परिवर्तनों को बतलाना तथा सूत्रों को लघुरूपता देना। (8) 'र' जो कि सबसे कमजोर वर्ण है उसके साथ संयुक्त होने पर भी 'य' या तो 'इ' स्वर में बदल जाता है या हट जाता है और 'र' रह जाता है। (9) समान वर्गीय वर्ण संयुक्तावस्था में पाए जाते हैं परन्तु दो य् संयुक्त (य+य्) भी नहीं पाए जाते। अन्तःस्थ ल और व स्व वर्गीय वर्ण के साथ संयुक्त पाए जाते हैं। (10) 'य' के साथ कहीं भी स्वरभक्ति नहीं देखी जाती। इन सभी संदर्भो से सिद्ध है कि महाराष्ट्री प्राकृत में मूल संस्कृत के 'य' वर्ण का सर्वथा अभाव है / मागधी आदि प्राकृत भाषाओं की स्थिति भिन्न है। मागधी में न केवल मूल 'य' पाया जाता है अपितु वहाँ 'ज' का भी 'य' होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org