________________
अगाव विद्वता और प्रतिभा से प्रभावित होकर संपूर्ण भारतवर्ष के विभिन्न प्रान्तों में संचालित तत्वगोष्ठियों और आध्यात्मिक मण्डलियों में चचित गूढ़तम शंकायें समाधानार्थ जयपुर भेजी जाती थीं और जयपुर से पंडितजी द्वारा समाधान पाकर तत्व-जिज्ञासु समाज अपने को कृतार्थ मानता था । साधर्मी भाई ब्र. रायमल ने अपनी "जीवन-पत्रिका" में तत्कालीन जयपुर की धार्मिक स्थिति का वर्णन इस प्रकार किया है
महापंडित तोवरमल डा० हुकमचन्द भारिल्ल
डा. गौतम के शब्दों में"जैन हिन्दी गद्यकारों में "तहाँ निरन्तर हजारों पुरुष स्त्री देवलोक की सी टोडरमलजी का स्थान बहुत ऊँचा है। उन्होंने टीकाओं नांई चैत्याले आय महापुण्य उपारज, दीर्घकाल का और स्वतन्त्र ग्रन्थों के रूप में दोनों प्रकार से गद्य-निर्माण संच्या पाप ताका क्षय करे। सो पचास भाई पूजा का विराट उद्योग किया है। टोडरमलजी की रचनाओं करने वारे पाईए, सौ पचास भाषा शास्त्र बांचने वारे के सक्ष्मानुशीलन से पता चलता है कि वे आध्यात्म और पाईए, दस बीस संस्कृत बांचने वारे पाईए, सौ पचास जैन धर्म के ही वेत्ता न थे, अपितु व्याकरण, दर्शन, जनें चरचा करने वारे पाईए और नित्यान का सभा के साहित्य और सिद्धान्त के ज्ञाता थे। भाषा पर भी शास्त्र बांचने का व्याख्यान विर्ष पांच से सात से पुरुष इनका अच्छा अधिकार था।"
तीन सै चारि से स्त्रीजन, सब मिली हजार बारा से
पुरुष स्त्री शास्त्र का श्रवण करै बीस तीस वायां शास्त्राईसवी की अठारहवीं शती के अन्तिम दिनों में भ्यास कर, देश देश का प्रश्न इहाँ आवै तिनका राजस्थान का गुलाबी नगर जयपुर जैनियों की काशी समाधान होय उहां पहुंचे, इत्यादि अद्भुत महिमा चतुर्थबन रहा था । आचार्यकल्प पंडित टोडरमलजी की कालवत या नग्र विष जिनधर्म की प्रवति पाईए है।"
1 हिन्दी गद्य का विकास : डा० प्रेमप्रकाश गौतम, अनुसंधान प्रकाशन, आचार्य नगर कानपुर, पृ० 188 । 2. पंडित टोडरमल, व्यक्तित्व और कृतृत्व, परिशिष्ट 1, प्रकाशक : पंडित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, ए-4
बापूनगर, जयपुर।
२६५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org