________________ स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ स्नान और प्रातराश कर मैं दुकान में पहुंच गया हूं। एक ग्रामीण आया है और वह मुझे कपड़ा देने के लिए कह रहा है। उस (ग्रामीण) ने पूछा - सेठ साहिब ! अमुक कपड़े का क्या दाम लेंगे? वस्तुतः मूल्य था प्रतिमीटर दो रूपया, परन्तु व्यापारी ने सोचा, अभी पैसा कमाने का अच्छा मौका है। यह ग्राहक तो भोला पंछी है। यह क्या समझेगा होशियारी को। दुकानदार ने कहा - चार रूपया एक मीटर / दुगुना मूल्य बता दिया। “सेठ साहिब! यह तो बहुत ज्यादा कीमत है, मैं कैसे चुका पाऊँगा?" 'अरे ! तुम्हें लेना हो तो लो, सुबह का समय है, बकवास मत करो।" बेचारा ग्रामीण मजबूर था। लड़के की शादी सामने थी। उसने कहा - ठीक है सेठजी ! पांच मीटर कपड़ा दे दीजिए। भीतर में हर्ष विभोर और बाहर से नाराजगी दिखाते हुए सेठ ने ग्रामीण द्वारा याचित कपड़ा हाथ में लिया और कुछ कम मापते हुए उसने उसे फाड़ा। (यह सब कुछ स्वप्न में हो रहा है / ) ज्योंही वस्त्र के फटने की 'चर-चर' आवाज आई, व्यापारी की नींद टूट गई, आंखें खुल गई। उसने सोचा --अरे यह आवाज कहां से आई ? इधर झांका, उधर झांका, आखिर पता चला-अपनी ही धोती अपने हाथ में आ गई और उसी को फाड़ डाला। अपरिग्रह की पुष्टि के लिए आवश्यक है कि साधक शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श- इन इन्द्रिय-विषयों के प्रति होने वाले प्रियता और अप्रियता के भावों से बचे, वैसा प्रयास और भावना का अभ्यास करे। अल्प, बहु, अणु, स्थूल, सचित और अचित्त-इस छह प्रकार के परिग्रह का तीन कारण, तीन योग से प्रत्याख्यान करने पर 54 भंग अपरिग्रह महाव्रत के निष्पन्न होते हैं। पांच महाव्रतों के कुल 252 भंग बनते हैं। पूरा विस्तार जानने के लिए विगत चार निबन्ध द्रष्टव्य हैं / अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य-इस चतुर्विध आहार का रात्रि में भोग करने का तीन करण, तीन योग से प्रत्याख्यान करने पर रात्रिभोजन विरमणव्रत के 36 भंग निष्पन्न होते हैं। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org