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________________ चतुर्थ खण्ड /२२८ ६. जन बेगम (र० का० सं० १८३५) निर्गुण सम्प्रदाय की कवयित्रियों में जन बेगम का नाम भी बड़े गौरव के साथ लिया जाता है। ये अलवर के दोली गांव की रहने वाली और चरणदासीसम्प्रदाय के सन्त छौना की शिष्या थीं । इनका लिखा 'सुदामाचरित' भक्तिभावभरा सरस ग्रन्थ है। इसमें कवयित्री ने गुरु और ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा व्यक्त की है । ७. स्वरूपा बाई (र० का० सं० १८ वीं शती का उत्तरार्द्ध) ये रामस्नेहीसम्प्रदाय के प्रवर्तक रामचरण जी महाराज की शिष्या थीं। इनका राजस्थानी भक्तिसाहित्य के विकास में बड़ा योग रहा। सांसारिक नश्वरता एवं गुरुभक्ति इनकी कविता का मुख्य स्वर है। इस धारा की अन्य कवयित्रियों में बाई खुशाल (सं०१८३४), तोला दे, काजल दे, गोरांजी आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। ५. जैन काव्यधारा को कवयित्रियाँ भारतीय धर्मपरम्परा में साधुओं की तरह साध्वियों का भी विशेष योगदान रहा है। जैनधर्म भी इसका अपवाद नहीं। ऐतिहासिक परम्परा के रूप में हमें भगवान महावीर के बाद के साधुओं की प्राचार्यपरम्परा का तो पता चलता है पर उनकी साध्वियों की परम्परा अन्धकाराच्छन्न है। भगवान् महावीर के समय में ३६,००० साध्वियों का नेतृत्व करने वाली साध्वी चन्दनबाला का उल्लेख शास्त्रों में आता है। महावीर से ही तत्त्वचर्चा करने वाली जयन्ती का उल्लेख भी हमें मिलता है । यह तो निश्चित ही है कि साधुनों और श्रावकों के साथ-साथ श्राविकाओं की भी अविच्छिन्न परम्परा रही है और इन साध्वियों ने भी साधुओं की भांति साहित्य के निर्माण एवं संरक्षण में महत्त्वपूर्ण योग दिया है। मध्यकाल की जिन जैन कवयित्रियों का हमें उल्लेख मिलता है उनका संक्षेप में परिचय इस प्रकार है १. गुणसमृद्धि महत्तरा (र० का० सं० १४७७) ये खरतरगच्छी जिनचन्द्र सूरि की शिष्या थीं। इनके द्वारा प्राकृत भाषा में रचित ५०२ श्लोकों का 'अंजणासुन्दरीचरियं' ग्रन्थ जैसलमेर के भण्डार में विद्यमान है। इसमें हनुमानजी की माता अंजनासुन्दरी का चरित वणित है। २. विनयचूला (र० का० सं० १५१३ के आसपास) ___ये साध्वी आगमगच्छी हेमरत्न सूरि के सम्प्रदाय की हैं। इन्होंने हेमरत्न सूरि गुरु फागु नाम से ११ पद्यों में रचना की। ३. पद्मश्री इनका सम्बन्ध भी आगमगच्छ से रहा है। श्री मोहनलाल दलीचन्द दौसाई ने जैन गुर्जर कविप्रो भाग ३ खण्ड १ के पृष्ठ ५३५ पर इनकी रचना 'चारुदत्तचरित्र' का उल्लेख किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211618
Book TitleMadhyakalin Rajasthani Kavya ke Vikas me Kaviyuitriyo ka Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Bhanavat
PublisherZ_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf
Publication Year1988
Total Pages13
LanguageHindi
ClassificationArticle & Kavya
File Size859 KB
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