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वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में आज भौतिक विज्ञान के विकास के चरण बढ़ते चले जा रहे हैं । उसका कार्य क्षेत्र और कर्म क्षेत्र आशातीत व्यापक हो चुका है । नित्य नये-नये आविष्कारों और अनुसन्धानों ने सचमुच मानव जगत् को चमत्कृत कर दिया है । यही कारण है कि आज हर एक गाँव, नगर, प्रान्त, राज्य, देश, समाज उन नये-नये आविष्कारों (भौतिक विज्ञान ) के साथ जुड़कर आगे बढ़ने के लिए लालायित है | आज का प्रगतिशील तथा अप्रगतिशील समाज न वैज्ञानिक साधन-प्रसाधनों से अपने को अलग-थलग रखना चाहता है और न अपने को उनसे वंचित ही ।
क्योंकि - " प्रत्यक्षे किं प्रमाणम्" के अनुसार आज भौतिकविज्ञान की अनेक विशेषताएँ प्रत्यक्ष हो चुकी हैं । कृत कार्यकलापों की अच्छी या बुरी प्रतिक्रिया उपस्थित करने में वह देर नहीं करता । एक सेकण्ड में हजारों-हजार बल्बों में विद्य ुत तरंगें तरंगित होने लगती हैं । कुछ ही मिनटों-घंटों में हजारों मील का फासला तय करवा देता | आंख की पलक झपकते इतने समय में हजारों मील दूर रहते हुए वे गायक, वक्ता, चित्र के रूप में ही नहीं, आंखों के सामने नाचते, घूमते, दिखने लग जाते हैं । गुरुतर संख्या वाले गणित के हिसाबों को देखते-देखते कम्प्यूटर सही सही आंकड़ों में सामने आता है । उपग्रह अनन्त आकाश में उड़ानें भर रहा है । उसका नियन्ता धरती पर बैठा-बैठा निर्देशन दे रहा है, नियन्त्रण कक्ष ( कंट्रोल रूम) को सम्भाले बैठा है । बीस-पच्चीस कदम दूर बैठा मानव रिमोट कंट्रोल के माध्यम से टी० वी० को चालू कर रहा और बन्द भी, बीच में कोई माध्यम जुड़ा हुआ नहीं है ।
वैज्ञानिक साधनों के कारण आज जल, थल और नभ मार्गों की भयावनी यात्रायें सुगम सुलभ एवं निर्भय सी बन गई हैं। कई वैज्ञानिक उपकरण शरीर के अवयवों के स्थान पर कार्यरत हैं। एक्सरे मशीन शरीरस्थ बीमारियों को प्रत्यक्ष बता देती है । आज ऐसे भी संयंत्र उपलब्ध हैं, जो शारीरिक सन्तुलन को ठीक बनाए रखने में सहायता करते एवं हलन, चलन, कम्पन, स्पन्दन, धड़कन गति को
बताने में सक्षम है । वैज्ञानिक साधनों के आधार पर यह पता लगा लिया जाता है कि अमुक खनिज भण्डार, धातु - गैस, रसायन या तरल पदार्थ अमुक स्थान पर धरती के गर्भ में समाहित है। हजारों मानव या पशु जगत जिस गुरुतर काम को करने में महिनों पूरे कर देते हैं, कुछ समय में ही पूर्ण करने की क्षमता विज्ञान में निहित है ।
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- प्रवर्तक श्री रमेश मुनि
साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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भौतिक और अध्यात्म विज्ञान
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चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम
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