SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भावनासार (द्रव्य संग्रह की टीका) -लघुकाय दार्शनिक कृति समीक्षक : डॉ० लालचन्द जेन द्रव्यसंग्रह ११वीं शती के आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त देव की एक दार्शनिक कृति है। इसकी रचना शौरसेनी प्राकृत भाषा में की गई है । मात्र ५८ गाथाओं के द्वारा आचार्य ने जैन धर्म-दर्शन के मूलभूत सिद्धान्तों का, विशेषकर तत्त्व मीमांसा का, सारगर्भित विवेचन प्रस्तुत कृति में किया है। विषय-वस्तु की दृष्टि से उक्त ५८ गाथाओं को तीन अधिकारों में विभाजित किया गया है। ये तीनों अधिकार भी एकाधिक अंतराधिकारों में वर्गीकृत हैं। पहले अधिकार में तीन अंतराधिकार और सत्ताईस गाथाएँ हैं। प्रथम अंतराधिकार की १४ गाथाओं में जीव द्रव्य का स्वरूप विवेचन उपलब्ध है । दूसरे अंतराधिकार में पांच अजीव द्रव्यों(पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल)का १५ वी गाथा से २२ वी गाथा तक अर्थात् ८ गाथाओं में विवेचन किया गया है । शेष ५ गाथाओं (२३-२७) में पांच अस्तिकायों, अस्तिकाय का स्वरूप, छह द्रव्यों के प्रदेशों और प्रदेश का लक्षण तथा काल को अकाय के होने के कारण का उल्लेख कर तीसरा अंतराधिकार समाप्त किया गया है। दूसरे अधिकार की ११ गाथाओं में जीवादि सात तत्त्वों और पाप-पुण्य सहित नौ पदार्थों का स्वरूप बतलाया गया है। तीसरे अधिकार में कुल बीस गाथाओं को दो अंतराधिकारों में विभाजित किया गया है। इसमें व्यवहार और निश्चय मोक्ष मार्ग (सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यग्चारित्र), ध्यान और पांच परमेष्ठियों अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु के स्वरूप का उल्लेख किया गया है। इस प्रकार जिनागम का सार सूत्र रूप में द्रव्य संग्रह में संग्रहीत है। दूसरे शब्दों में सम्पूर्ण आगम रूपी सागर को द्रव्यसंग्रह रूपी गागर में भर दिया गया है। यही कारण है कि यह लघुकाय ग्रंथ दिगम्बर जैन परम्परा में बहुत महत्त्वपूर्ण माना गया है। इसकी महत्ता इस ग्रंथ पर विभिन्न आचार्यों और विद्वानों द्वारा विभिन्न भाषाओं संस्कृत, हिन्दी, कन्नड़, मराठी, गुजराती, अंग्रेजी आदि में लिखी गई छोटी-बड़ी टीकाओं से सिद्ध होती है। आचार्य ब्रह्मदेव (ई० सन् १२६०-१३२३) ने सर्वप्रथम द्रश्य संग्रह संस्कृत टीका लिखी थी। इससे अधिक प्राचीन टीका इस ग्रंथ की आज तक उपलब्ध नहीं हुई। इसके पश्चात् पं० जयचन्द्र छाबड़ा की भाषा टीका अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। उपर्युक्त टीकाओं के अतिरिक्त १५ वीं शताब्दी से पहले 'पुट्टय्या स्वामी' ने द्रव्यसंग्रह पर कन्नड़ भाषा में ३००० श्लोक प्रमाण 'भावनासार' नामक टीका लिखी थी। इस टीका की भाषा प्राचीन कन्नड़ थी और यह ताड़पत्र के ४२ पृष्ठों में लिखी हुई थी। यह ला० मनोहर लाल जी जैन जौहरी, पहाड़ी धीर ज, दिल्ली के चैत्यालय में स्थित ग्रन्थ-भंडार में अप्रकाशित संग्रहीत थी। आचार्य जयकीर्ति के परम शिष्य और एलाचार्य विद्यानन्द जी जैसे श्रमणों के परमगुरु, जैन साहित्य के सृजक, अनुवादक, सम्पादक, उपसर्ग विजयी, महान् परिषह जयी, कठोर तपस्वी, कन्नड़, संस्कृत, प्राकृत, गुजराती, मराठी, अंग्रेजी आदि भाषाओं के अधिकारी आचार्यरल श्री देशभूषण जी महाराज को जब इस भावनासार (द्रव्यसंग्रह की कन्नड़ी टीका) का दर्शन हुआ तो हिन्दी-भाषियों के लाभार्थ इसका हिन्दी भाषा में अनुवाद कर जैन वाङ्गमय की समृद्धि में एक बहुत बड़ा योगदान किया। 'भावना सार' के हिन्दी-अनुवाद का सर्वप्रथम प्रकाशन वीर निर्वाण सं० २४८२ (स० १६५६) में हुआ था। 'द्रव्यसंग्रह' के आज तक अनेक हिन्दी अनुवाद देखने में आये लेकिन भावनासार का हिन्दी अनुवाद जैसा उत्तम कोटि का अनुवाद दृष्टिगोचर नहीं हुआ। इस अनुवाद की निम्नांकित विशेषताएँ उल्लेखनीय हैं (१) ग्रंथ की पहली गाथा के पूर्व २४ पृष्ठों में ग्रन्थ-परिचय, सूत्र का लक्षण, वीतराग का स्वरूप, सच्चे देव का स्वरूप, मंगल करने का प्रयोजन और उसके भेद आदि का विस्तृत और प्राचीन ग्रन्थों के उद्धरणों से प्रामाणिक विवेचन किया गया है। (२) गाथाओं के स्पष्टीकरण हेतु सर्वप्रथम गाथा का अन्वयार्थ उसके बाद विस्तार या विवेचन आदि के द्वारा गाथाओं के प्रत्येक विशेषण का सूक्ष्म और शास्त्रसम्मत विवेचन किया गया है। प्रत्येक कथन की पुष्टि के लिए प्राचीन जैन आचार्यों और जैनेतर आचार्यों के दार्शनिक आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महागज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211592
Book TitleBhavanasar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherZ_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf
Publication Year1987
Total Pages2
LanguageHindi
ClassificationArticle & Religion
File Size525 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy