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________________ जारी किए। इसके पश्चात् उत्पल राजाओं ने यहां से ताम्र सिक्के जारी किए। नौवीं सदी के उत्तरार्द्ध में शाही शासकों द्वारा तांबे और चांदी की मुद्राएं गांधार तथा काबुल-अहिंद क्षेत्रों से प्राप्त हुई हैं। इन सिक्कों के एक ओर घुड़सवार तथा दूसरी ओर बैल को मुद्रित किया गया है। इन्हें स्पलपति देव ने भी प्रसारित किया तथा अन्य अनेक शासकों ने भी इन्हें अपनाया। इन सबमें सामंत देव सर्वप्रसिद्ध हुए हैं। ये सिक्के समस्त उत्तरी भारतवर्ष में बहुप्रचलित हुए। बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी के मध्य भी बहुत से राजाओं ने इस प्रकार के सिक्के जारी किए। सामंत देव के नाम के सिक्के अन्य राजाओं ने भी जारी किए जिनमें तोमर राजा सलक्षण पाल, अनंग पाल तथा महिपाल देव प्रमुख हैं। इसके पश्चात् हमें मदनपाल के गढ़वाल क्षेत्र से मुद्रित सिक्के 1080 से 1115 के मध्य प्राप्त होते हैं। इनके पश्चात् साकंभरी के चौहान राजाओं के सिक्के भी हमें प्राप्त होते हैं। इनमें सोमेश्वर देव एवं पृथ्वीराज के सिक्के प्राप्य हैं। 1200 ई0 में हमें बदायूं के राजा अमृतपाल के इसी प्रकार के मिलते-जुलते सिक्के प्राप्त हुए हैं। इसके पश्चात् हमें प्रतिहार राज्य के मलय वर्मन के सिक्के प्राप्त हुए हैं तथा नरवार से चाहड़ देव, आसल देव और गणपति देव के 1235 से 1298 ई0 के एक ही प्रकार के सिक्के प्राप्त हुए हैं। त्रिपुरी क्षेत्र से कलचूरी राजा गांगेय देव ने ग्यारहवीं शताब्दी में सोने के सिक्के जारी किए जिन पर लक्ष्मी की छवि अंकित की गई है। ये मुद्राएं रौप्य एवं ताम्र दोनों ही धातुओं में उपलब्ध होती हैं। इसी प्रकार की लक्ष्मी छवि वाली मुद्राएं मालवा के परमार राजाओं उदयादित्य तथा नरवर्मन ने भी प्रसारित की। चंदेलों ने भी इसी से मिलती-जुलती मुद्राएं ग्यारहवीं से तेरहवीं शताब्दी के मध्य प्रचारित की। इसी तरह गढ़वाल से गोविंद चंद्र देव, शाकंभरी से चौहान राजा अजयराज तथा बयाना के यदु राजाओं अजयपाल, कुमारपाल तथा महिपाल ने भी इसी प्रकार की मुद्राओं को प्रसारित किया। इसी समय की एक प्रसिद्ध मुद्रा पर रामचंद्रजी की छवि का अंकन किया गया था जिसे संभवत: विग्रहराज ने मुद्रित किया था। रतनपुर के कलचूरी राजाओं द्वारा भी तांबे से बने हनुमान की छवि वाले सिक्के प्रसारित किए गए जो अत्यधिक लोकप्रिय हुए। इसी प्रकार हनुमान की छवि अंकित सिक्के चंदेला शासकों ने भी जारी किए थे। उधर सुदूर दक्षिण भारत के मैसूर और कनारा क्षेत्रों से कदंब शासकों ने दसवीं-ग्यारहवीं शती में सोने के पद्म-टंका सिक्के प्रचलित किए। इन्हें बनाने के लिए आहत मुद्राओं के मानिंद विधि का अनुसरण किया गया। इनके दोनों ही हिस्सों पर अंकन किया गया। पूर्वी तथा पश्चिमी चालुक्यों, चोलों एवं यादवों ने भी आहत विधि को अपनाया। परन्तु इनके सिक्कों को केवल एक ही छोर पर मुद्रित किया जाता था। पूर्वी चालुक्यों में शक्ति वर्मन, राजा-राज प्रथम के सिक्के न केवल दक्षिण भारत में ही वरन् बर्मा के आराकन क्षेत्र तक विस्तारित हुए। इन्हीं के वंशज राजेन्द्र कुलोढुंगा प्रथम ने कंटाई एवं केरल विजय के उपलक्ष में सिक्के मुद्रित किए। पश्चिमी चालुक्यों में जयसिंह द्वितीय, सोमेश्वर द्वितीय और विक्रमादित्य ने 1015 से 1126 के मध्य सोने के आहत सिक्कों का मुद्रण किया। इन चालुक्यों का पराभव करने वाले विजल त्रिभुवन मल्ल ने इसी प्रकार के सिक्के ।।56 से 1181 ई0 में जारी किए। ___ कदंब शासकों की हंगल शाखा द्वारा हनुमान छवि वाली मुद्राएं प्रसारित की गईं। देवगिरि के यादवों ने भी सोने की आहत मुद्राएं प्रचलित की। चिल्लम, पंचम, सिंघाना, कृष्ण, महादेव, रामचंद्र राजाओं ने 1185 से 1310 ई0 के मध्य विभिन्न प्रकार की मुद्राएं जारी कीं। कुछ सोने के विचित्र अंग्रेजी के 'वी' प्रकार के सिक्के सतारा से प्राप्त हुए हैं। ये संभवत: ग्यारहवीं श0 में चालुक्य राजाओं द्वारा प्रसारित किए गए थे। डाई द्वारा मुद्रित स्वर्ण मुद्राएं जयकेशी प्रथम, शोमी देव, शिवचित्त एवं हेम्मदि देव द्वारा जारी की गईं। होयशाला के विष्णु वर्धन और नरसिंह ने भी उपर्युक्त प्रकार के सोने के सिक्के 1115 से 1171 शती के मध्य प्रसारित किए। बीजापुर, बेलगाम तथा धाड़बार क्षेत्रों से बारहवीं शताब्दी में शासनस्थ बर्मा-भूपाल द्वारा सिक्के प्रचलित किए गए। कतिपय लेख रहित छोटे सोने के सिक्के प्राप्त होते हैं जिन्हें कोल्हापुर के शिलहारों द्वारा जारी किया गया बताते हैं। मैसूर से प्रसारित छोटे स्वर्ण धातु निर्मित सिक्कों को 'गजपति पगोड़ा' के नाम से जाना जाता है। उधर उड़ीसा में निर्मित कुछ पतले सोने के छोटे सिक्के गंगा राजाओं द्वारा ग्यारहवीं सदी तक जारी हुए। चोल राजाओं ने सर्वप्रथम तमिल देश से चांदी की मुद्राएं जारी कीं। इनके सर्वप्रथम राजा उत्तर चोल ने ये मुद्राएं सबसे पूर्व प्रचलित की। इसी प्रकार की मुद्राएं उसके उत्तराधिकारियों राजा-राज प्रथम (985-1016 ई0) राजेन्द्र चोल (1011-1043) द्वारा भी प्रसारित की गईं। ___इसी समय में हमें पाण्डया राजाओं द्वारा जारी विभिन्न प्रकार के सिक्के भी प्राप्त होते हैं। 1127 ई0 में हमें वीर केरल वर्मन के चांदी के सिक्के मिले हैं जिन पर मगरमच्छ की आकृति मुद्रित की गई हैं। 1336 ई0 में विजयनगर साम्राज्य की स्थापना के साथ हमें तीन पीढ़ियों के शासकों की जानकारी मिलती है जिन्होंने 1565 ई0 तक इस क्षेत्र पर शासन किया। सन् 1336 से 1356 के मध्य संगम पीढ़ी के प्रथम शासक हरिहर ने हनुमान और गरूड़ को अपने सिक्कों में स्थान दिया। उसके उत्तराधिकारी बुक्का प्रथम ने भी इसी प्रकार के सिक्के जारी किए। हरिहर द्वितीय के सोने के सिक्के पर उमा महेश्वर, लक्ष्मी नारायण एवं लक्ष्मी नरसिंह इत्यादि अंकित किए गए। अन्य एक शासक देवराम ने 1422 से 1466 ई0 में उमा महेश्वर प्रकार के सिक्कों को जारी रखा। तत्पश्चात् हमें 1506 से 1570 ई0 के मध्य तुलभ शासकों के सिक्के प्राप्त होते हैं। विजयनगर के शासकों के पराभव के साथ ही विभिन्न छोटी-छोटी रियासतों ने अपने सिक्के जारी किए। इनमें मदुरा, तंजोर एवं तिनेवेली के नायक एवं रामनद के सेतुपति प्रमुख हैं। सन् 1291-1323 ई0 के मध्य हमें काकतिया शासकों द्वारा प्रचलित सिक्के भी प्राप्त होते कासिम के पुत्र इमामुद्दीन के सिंध प्रदेश में 712 ई0 में प्रवेश के साथ ही मुसलमानों का वर्चस्व भारतवर्ष में प्रारम्भ हुआ। उसके अधिकारियों द्वारा छोटे-छोटे चांदी के सिक्कों का प्रचलन किया गया। इसके पश्चात् उत्तर पश्चिमी भारत पर गजनी के शासक महमूद ने 1001 से 1021 के मध्य कई आक्रमण किए तथा विभिन्न प्रकार के सिक्के भी प्रचलित किए। बाद में भी उसने 1028 ई0 में लाहोर से सिक्के हीरक जयन्ती स्मारिका विद्वत् खण्ड / ९७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211589
Book TitleBharatiya Sikko ke Vikas ki Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIndrakumar Kathotiya
PublisherZ_Jain_Vidyalay_Hirak_Jayanti_Granth_012029.pdf
Publication Year1994
Total Pages8
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size2 MB
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