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________________ STARSA साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ RTHA ( AMRPRI O Raoure Poet APE ANANKS tretittiitritett वाला होता है । इसे आगम भाषा में 'उपशम श्रेणि' और 'क्षपक श्रेणि' कहते हैं । 3 उपशम श्रेणि में जीव दर्शनत्रिक (मिथ्यात्वमोहनीय सम्यक्त्वमोहनीय और मिश्र मोहनीय) और अनन्तानुबंधि चतुष्क (क्रोधमान - माया- लोभ) इन सात का उपशम (शान्त) करता है और क्षपक श्रेणि में इन्हीं सात प्रकृतियों का क्षय करता है । उपशम श्रेणि वाला ग्यारहवें गुणस्थान में क्षीणमोहनीय कर्म के संज्वलन लोभ का उदय होने से गिर जाता है । यह गुणस्थान पतित गुणस्थान कहलाता है। जीव पुनः विकास को पाकर कार्य सिद्ध कर लेता है। क्षपक श्रेणि वाला बारहवें गुणस्थान में यथाख्यात चारित्र एवं केवलज्ञान को पाकर शुक्लध्यान की साधना से समस्त कर्मों को क्षय कर मोक्ष प्राप्त कर लेता है। ध्यान के भेद-प्रभेद ध्यान का यथार्थ स्वरूप जानना हो तो उसके भेद-प्रभेद को जानना अत्यावश्यक है। आगम कथनानुसार विचारधारा अनेक प्रकार की हैं क्योंकि आत्मा (जीव) का स्वभाव परिणमनशील है। शुभाशुभ असंख्य विचारधाराओं को समझना कठिन होने से ज्ञानियों ने उन्हें चार भागों में विभाजित किया है। उन्हें ध्यान की संज्ञा दी गई है। आगम में मुख्यतः ध्यान के चार भेद हैं :-- (१) आर्तध्यान, (२) रौद्रध्यान, (३) धर्मध्यान और (४) शुक्लध्यान । इन चार ध्यानों के क्रमशः ८+८+१६+ १६ भेद हैं । कुल ४८ भेद हैं। आतंध्यान के भेद एवं लक्षण आगमकथित आर्त्तध्यान के चार भेद : (१) अमनोज्ञ-वियोगचिन्ता-अमनोज्ञ शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श तथा उनके साधनभूत वस्तुओं का संयोग होने पर उनके वियोग की चिन्ता करना अमनोज्ञ वियोगचिन्ता आर्तध्यान है । अमनोज्ञ वस्तुएँ अनेक हैं, जैसे कि अग्नि, जल, धतूरा, अफीम आदि का विष, जलचर स्थलचर वनचर क्रूर प्राणी सिंह, बाघादि, सर्प, बिच्छू, खटमल, जूं आदि, गिरिकन्दरावासी प्राणी, तीर, भाला, बर्ची, तलवार आदि शस्त्र, शत्रु, वैरी राजा, दुष्ट राजा, दुर्जन, मद्य-मांसादि-भोगी, मंत्र-तंत्र-यंत्र-मारण-मूठ-उच्चाटन आदि का प्रयोग, चोर डाकू आदि का मिलन, भूत, प्रेत, व्यंतरदेवों का उपद्रव- इस तरह अनेक प्रकार की अमनोज्ञ वस्तुएँ एवं व्यक्तियों के देखने-सुनने मात्र से मन ही मन क्लेश होना ही आर्तध्यान का प्रथम भेद है। (२) मनोज-अवियोगचिन्ता-पाँचों इन्द्रियों के विभिन्न मनोज्ञ विषयों का एवं माता, पिता, पुत्र, पुत्री, पत्नी, भाई, बहन, मित्र, स्वजन, परिजन, चक्रवर्ती-बलदेव-वासुदेव-मांडलिक राजा आदि पद से विभूषित, सामान्य वैभव, राज वैभव, भोग भूमि के अखण्ड सुख प्राप्त हों, मनुष्य सम्बन्धी भोग प्राप्त हों, प्रधानमन्त्री, राष्ट्रमंत्री, राज्यपाल, मुख्य सेनापति आदि पदवियों से भूषित, विविध प्रकार की शय्या, विविध प्रकार के वाहन, विविध प्रकार के सुगंधित पदार्थ, विविध प्रकार के रत्न और सुवर्ण जड़ित आभूषण, नाना प्रकार के वस्त्र, धन-धान्यादि की ता. ऋद्धि सिद्धि की प्राप्ति-इन सबके मिलने पर वियोग i 'भारतीय-वाङमय में ध्यानयोग : एक विश्लेषण' : डॉ० साध्वी प्रियदर्शना | ३४३ Personargaro www
SR No.211568
Book TitleBharatiya Vangamaya me Dhyan Yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanaji Sadhvi
PublisherZ_Sadhviratna_Pushpvati_Abhinandan_Granth_012024.pdf
Publication Year1997
Total Pages31
LanguageHindi
ClassificationArticle & Meditation Yoga
File Size4 MB
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