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________________ जीने के दो तरीके हैं-अंगार और राख / तुम्हें जीना है तो अन्तरंग की उष्मा को बनाये रखो, अंगार की तरह तेजस्वी और प्रकाशमान बनकर जीओ ! राख की तरह निस्तेज, रूक्ष और मलिन बनकर नहीं ! ___ जीवन एक दर्पण है, दर्पण के सामने जैसा बिम्ब आता है, उसका प्रतिबिम्ब दर्पण में अवश्य पड़ता है, जब आप दूसरों के दोषों का दर्शन करेंगे, चिन्तन और स्मरण करेंगे तो उनका प्रतिबिम्ब आपके मनोरूप दर्पण पर अवश्य चित्रित होता रहेगा। प्रकारान्तर से वे ही दोष चुपचाप आपके जीवन में अंकुरित हो जायेंगे। इसीलिए भगवान महावीर का यह अमरसूत्र हमें सर्वदा स्मरण रखना चाहिए-“संपिक्खए अप्पगमप्पएण" सदा अपने से अपना निरीक्षण करते रहना चाहिए / दृष्टि को मूदकर अन्तर्दृष्टि से देखना चाहिए / आत्मा का अनन्त सौन्दर्य दिखलाई पड़ेगा। जीवन के चार स्तर हैंजो विकार व वासनाओं का दास है-वह पशु है / जो विकारों पर विजय प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील है-वह मनुष्य है। जिसने विकारों पर यत्किंचित् विजय प्राप्त करली-वह देव है / जो सम्पूर्ण विकारों पर विजय प्राप्त कर चुका-वह देवाधिदेव है। -उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनि तृतीय खण्ड : धर्म तथा दर्शन 6 0 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Code Jain Education International For private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.211549
Book TitleBharatiya Darshan Chintan ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherZ_Kusumvati_Sadhvi_Abhinandan_Granth_012032.pdf
Publication Year1990
Total Pages10
LanguageHindi
ClassificationArticle & Philosophy
File Size2 MB
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