________________ हैं। यहां दो जातक कथाओं की चर्चा पर्याप्त होगी। पहली कथा उलूक जातक की है, जो इस प्रकार है--जंगल के पक्षियों ने एक बार मिलकर उल्लू को बहमत से अपना राजा घोषित किया। उसे राजसिंहासन पर बैठाया गया। पर कौवे ने उल्ल का राजतिलक करने का विरोध किया। कौवे को यह आपत्ति थी कि उल्लू का चेहरा भयावना होने के कारण राजा के योग्य वह न था / कौवे की आपत्ति पर उल्लू उस पर झपटा। जान लेकर कौवा भागा और उल्ल उड़ते हुए उसका पीछा करने लगा। राजसिंहासन खाली देखकर उस पर हंस को बिठा दिया गया और अंततः वही पक्षियों का राजा चुन लिया गया। तालाब के सूखने पर उसके सभी जन्तु अन्य जलाशयों में चले गए। दुर्भाग्यवश एक कछुआ कहीं न जा सका। एक दिन उसने एक कलाकृति पर नंद उपनन्द नामक नागों द्वारा बालक सिद्धार्थ का अभिषेक बड़े कलात्मक ढंग से दिखाया गया है। रामग्राम के स्तूप की रक्षा करते हुए नागों का चित्रण भी मथुरा कला में उपलब्ध है / जैन तीर्थकर पार्श्वनाथ और सुपार्श्व की कई उल्लेखनीय प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं। कलाकारों ने जलमानवों तथा समुद्र कन्याओं को अपनी कृतियों में स्थान दिया है / न्युनान, लघु एशिया तथा भारत की प्राचीन कला में नरसिंह, सपक्षसिंह. जलंभ, मानवभ्रकर आदि की तरह जलमानवों के भी चित्रण मिलते हैं। जलपरियों या समुद्र कन्याओं को इमारती पत्थरों में प्रायः अलंकरणों के रूप में दिखाया जाता था। मथुरा से ई० पूर्व प्रथम शती का एक लंबा सिरदल प्राप्त हुआ है / उस पर एक ओर भगवान बुद्ध के मुख्य चिह्नों की पूजा दिखाई गई है। दूसरी ओर इन्द्र अपनी अप्सराओं आदि के साथ गुफा में स्थित बुद्ध के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए जा रहे हैं / सिरदल पर कमलपुष्पों से सुसज्जित (मंगलपट) भी दिखाए गए हैं। कोने पर सुमुखी कन्याओं का आलेखन है। उनका मख से लेकर वक्ष तक का भाग स्त्री का है और शेष मछली का / उनका अंलकृत श्रृंगार दर्शनीय है। वे कर्णकुंडल, एकावली आदि आभूषण धारण किए हुए दिखाई गई हैं। जैन तथा बौद्ध धर्म के साहित्य में भी अनेक रोचक कथाएं उपलब्ध हैं। इनमें अनेक चमत्कारिक घटनाओं को मनोरम ढंग से पिरोया गया है / तीर्थकरों तथा बुद्ध की महानता को सिद्ध करने के लिए अनेक कथानक उपंवृहित किए गए हैं / उन्हें शिल्पियों ने अपनी कला में अमर किया। जैन धर्म के मूल तत्वों अहिंसा तथा अनेकांतवाद के प्रचारार्थ अनेक पुराण कथाओं की सृष्टि हुई / उन पर न केवल साहित्यिक कृतियां लिखी गई अपितु शिल्पियों, चित्रकारों, नाट्यकारों आदि ने भी उन रोचक कथाओं को अपनी कथाओं में स्थान दिया। गौतम बुद्ध के पूर्वजन्मों की जातक कथाएं भी इस दृष्टि से उल्लेखनीय हैं। उनमें से अनेक कथाएं प्राचीन मर्तिकला तथा चित्र कला में अंकित करें तथा किसी जलाशय में उसे पहुंचा दें। हंसों को दया आई। वे एक मोटी लकड़ी ले आए। उन्होंने कछुओं से कहा कि लकड़ी के मध्य भाग को दृढ़ता से दांतों से दबा लो, उन्होंने मुंह नहीं खोलेगा। कछुवे ने यह स्वीकार कर लिया। हंस लकड़ी को अपनी चोचों से दबाकर कछुवे को ले उड़े। कुछ दूर जाने पर बच्चों ने शोर मचाया, कि देखो चिड़िया कछुवे को भगाए लिए जा रही है। यह सुनकर कछुवा आपे से बाहर हो गया। वह बोल उठा मैं उड़ा जा रहा हूं तो तुम लोगों का गला क्यों फटा जा रहा है। इतना कहना था कि कछुवा दम से भूमि पर गिर पड़ा और बच्चों ने डण्डों से उसकी खूब पिटाई की। बोधगया, मथुरा, मल्हार आदि की लोक कथा में उक्त दोनों जातक कथाओं के मनोरंजक चित्रण उपलब्ध हैं। मिथकों को बहुलता तथा साहित्य एवं लोक कला में उनके रोचक आलेखन से स्पष्ट है कि भारतीय संस्कृति में उनका विशेष ध्यान रखा है और लोक जीवन को प्रभावित करने में उनका योगदान महत्वपूर्ण रहा है। अभिमान, दुर्भावना, विषयाशा, ईर्ष्या, लोभ आदि दुर्गणों को नाश करने के लिए ही शास्त्राभ्यास करके पाण्डित्य प्राप्त किया जाता है / यदि पण्डित होकर भी हृदय-भवन में ये दुर्गुण बने रहे तो पण्डित और मुर्ख में कोई भेद नहीं है, दोनों को समान ही जानना चाहिए / पण्डित, विद्वान् या विशेषज्ञ बनना है तो हृदय से अभिमानादि दुर्गुणों को हटा देना ही सर्वश्रेष्ठ है। -राजेन्द्र सूरि वी. नि. सं. 2503 125 Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org