________________ स्वः मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ अपनाया, उतना दूसरे दर्शनों का नहीं हो सका, इस दृष्टि से इस दर्शन व उसके आचार्य का महत्वांकन सहज में एक प्रभावोत्पादक दर्शन के रूप में किया जा सकता है। मैंने श्रमण संस्कृति से इतर दर्शन व दर्शनाचार्यों का संक्षेप में इसी दृष्टि से वर्णन किया है कि हम जैन दर्शन के साथ उनका तुलनात्मक अध्ययन कर शाश्वत ज्ञान की सम्यक प्रकार से अवगति प्राप्त कर सकें, अवगाहन कर सकें व सम्यक चरित्र की दिशा में आगे बढ़कर आत्मज्ञान से भाषित होकर आत्म साक्षात्कार कर सकें। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org