________________ भगवान् महावीर की नीति / 7 वही कर पाता है, जो अनुशासित हो, अनुशासन पाकर कुपित न हो / इसीलिए भगवान् महावीर ने कहा अणुसासिओ न कुपिज्जा। और विणए ठविज्ज अप्पाणं।' विनय में स्थित रहे, विनय नीति का पालन करे। गुरुजनों, माता-पिता आदि का विनय परिवार में सुख-शांति का वातावरण निर्मित करता है तथा मित्रों, सम्बन्धियों, समाज के सभी व्यक्तियों के प्रति विनययुक्त व्यवहार यश-कीति तथा प्रेम एवं उन्नति की स्थिति के निर्माण में सहायक होता है। मित्रता (Friendship) को संसार के सभी विचारक श्रेष्ठ नीति स्वीकार करते हैं, किन्तु उनकी दृष्टि सिर्फ अपनी ही जाति तक सीमित रह गई, कुछ थोड़े आगे बढ़े तो उन्होंने सम्पूर्ण मानव जाति के साथ मित्रता नीति के पालन की बात कही। किन्तु भगवान महावीर की मैत्री-नीति का दायरा बहुत विस्तृत है, वे प्राणीमात्र के साथ मित्रता की नीति का पालन करने की बात कहते हैं मित्ति भूएसु कप्पए / प्राणी मात्र के साथ मैत्री का-मित्रता की नीति का संकल्प करे। भगवान की इसी आज्ञा को हृदयंगम करके प्रत्येक जैन यह भावना करता है प्राणीमात्र के साथ मेरी मैत्री (मित्रता) है, किसी के साथ वैरभाव नहीं है। मित्ती मे सव्वभूएसु, वेरं मन्नं न केणई / मित्रता की यह नीति स्वयं को और अपने साथ अन्य सभी प्राणियों को आश्वस्त करने की नीति है। सामूहिकता की नीति सामूहिकता अथवा एकता सदा से ही संसार की प्रमुख आवश्यकता रही है। बिखराव अलगाव की प्रवत्ति अनैतिक है और परस्पर सद्भाव-सौदाद-मेल-मिलाप नैतिक है। भगवान महावीर ने सामूहिकता तथा संघ-ऐक्य का महत्त्व साधुओं को बताया। उनके संकेत का अनुगमन करते हुए साधु भोजन करने से पहले अन्य साधुओं को निमन्त्रित करता और कहता है कि यदि मेरे लाये भोजन में से कुछ ग्रहण करें तो मैं संसार-सागर से तिर जाऊँ। साहू हुज्जामि तारिओ।१० 6. उत्तराध्ययनसूत्र 169 7. उत्तराध्ययनसूत्र 118 8. उत्तराध्ययनसूत्र 62 9. आवश्यकसूत्र 10. दशवकालिकसूत्र 5125 सम्मो दी संसार समुद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org