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________________ X045 वृत्तियों की स्वस्थता बिना मानव समाज भी स्वस्थ आदि आचार्यों ने अपने-अपने ग्रन्थों में श्रावक के नहीं हो सकता। बारह व्रतों और ग्यारह प्रतिमाओं का विशद् भगवान् महावीर ने व्रतों की जो व्यवस्था दी, विश्लेषण किया है। आचार्य वसुनन्दि ने अपने उसमें वैयक्तिक हितों के साथ सामाजिक और ग्रन्थ वनन्दि श्रावकाचार में लिखा राजनैतिक हितों को भी ध्यान में रखा गया है। है-'लोहे के शस्त्र तलवार, कुदाल आदि प्रथम व्रत के अतिचारों में मानवतावाद की तथा दण्ड और पाश आदि को बेचने का त्याग स्पष्ट झलक है / एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के प्रति करना, झूठी तराजू और झूठे मापक पदार्थ नहीं निर्दयतापूर्ण व्यवहार करे यह मानवीय आचार रखना तथा क्रूर प्राणी बिल्ली, कुत्ते आदि का संहिता का उल्लंघन है / इसलिए मैत्री भावना का पालन नहीं करना अनर्थ दण्ड-त्याग नामक तीसरा विकास करके समग्र विश्व के साथ आत्मीयता का अणुव्रत है।' (वसुनन्दि श्रावकाचार, श्लोक 216) अनुभव करना प्रथम व्रत का उद्देश्य है। शारीरिक श्रृंगार, ताम्बूल, गन्ध और पुष्प दूसरे व्रत के अतिचारों में सामूहिक जीवन की आदि का जो परिमाण किया जाता है, उसे परिभोग समरसता में बाधक तत्वों का दिग्दर्शन कराया निवृत्ति नामक द्वितीय शिक्षाव्रत कहा जाता है। गया है। तीसरे व्रत में राष्ट्रीयता की भावना के पर्व, अष्टमी, चतुर्दशी आदि को स्त्री-संग साथ व्यावसायिक क्षेत्र में पूर्ण प्रामाणिक रहने का त्याग तथा सदा के लिए अनंग-क्रीड़ा का त्याग र निर्देश दिया गया है। चौथे व्रत में कामुक वृत्तियों करने वाले को स्थूल ब्रह्मचारी कहा जाता है।' को शान्त करने के उपाय हैं और पाँचवें व्रत में इस प्रकार श्रावक धर्म की प्ररूपणा के माध्यम इच्छाओं सीमित करने का संकल्प लेने से अर्था- से एक सार्वजनिक आचार-संहिता देकर भगवान् भाव, मॅहगाई और भुखभरी को लेकर जनता में जो महावीर ने अनैतिकता की धधकती हुई ज्वाला में असन्तोष फैलता है, वह अपने आप शांत हो जाता। भस्म होते हुए संसार का बहुत बड़ा उपकार किया ___ अपने आपको भगवान् महावीर के अनुयायी है। भगवान् महावीर के इस चिंतन के आधार संहिता के अनुरूप स्वयं को ढाल सकें तो वर्तमान आन्दोलन के रूप में एक नई आचार-संहिता का समस्याओं को एक स्थायी और सुन्दर समाधान निर्माण किया है। लगता है कि अब और तब की मिल सकता है। स्थिति में कोई विशेष अन्तर नहीं था। इसीलिए ___भगवान् महावीर के इस सिद्धान्त का उत्तर- भगवान् महावीर का वह चिन्तन इस युग के जन-5) वर्ती आचार्यों ने भी प्रसार किया है। समन्तभद्र, मानस के लिए भी अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हो सोमदेव, वसुनन्दि, अमितगति, आशाधर, पूज्यपाद रहा है। 00 अहिंसा की विशिष्टता 00 यह भगवती अहिंसा प्राणियों के, भयभीतों के लिए शरण के समान है, पक्षियों को आकाशगमन के समान हितकारिणी है, प्यासों के समान है, चौपायों के लिए आश्रम (आश्रय) के समान है, रोगियों के लिए औषधियों के समान है और भयानक जंगल के बीच निश्चिन्त होकर चलने में सार्थवाह के समान सहायक है। -भगवान महावीर (प्रश्नव्याकरण) चतुर्थ खण्ड : जैन संस्कृति के विविध आयाम साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ oooo 330 . Jain E ton International Sor Sivate & Personal Use Only www.jaineINDI
SR No.211523
Book TitleMahavir aur Unke Dwara Sansthapit Naitik Mulya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamjeerai
PublisherZ_Kusumvati_Sadhvi_Abhinandan_Granth_012032.pdf
Publication Year1990
Total Pages3
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ethics
File Size525 KB
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