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________________ दर्शन-दिग्दर्शन करने देव आया व उसने गोशालक के सिद्धांत को सही बताया तो कुण्डकौलिक ने उसे उचित समाधान दिया। इसी प्रकार सातवें अध्ययन में सकडाल पुत्र श्रावक, जो पहले गोशालक का श्रावक था व नियतिवादी था उसे भगवान महावीर ने कर्म और पुरुषार्थ का सिद्धान्त समझाया, का वर्णन है। ___ गोशालक और उसके धर्मसंघ के भिक्षु घोर तपस्वी व हठयोगी होते थे। उसका धर्मसंघ भगवान महावीर और बुद्ध के धर्मसंघों से विशाल था पर गोशालक के बाद उसकी परम्परा आगे नही चलं सकी, अतः उसकी स्वतंत्र परम्परा या सैद्धान्तिक ग्रंथ आज कहीं उपलब्ध नहीं है! (६)गौतम बुद्ध और बौद्ध धर्म कपिलवस्तु और देवदह के वीच नैपाल की तराई में नौतनवा स्टेशन से ८ मील दूर पश्चिम रूक्मिनदेई है, जहां तीन हजार वर्ष पूर्व लुम्विनी वन था। ईसा से ५६३ वर्ष पूर्व कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी अपने नैहर देवदह जा रही थी, तब उस वन में गौतम का जन्म हुआ जिसका नाम रखा गया सिद्धार्थ । जन्म के सात दिन वाद माता की मृत्यु हो जाने से सिद्धार्थ का लालन-पालन उसकी मौसी गौतमी ने किया। बचपन से ही सिद्धार्थ में करूणा का स्रोत अविरल बह रहा था। गुरू विश्वामित्र के पास सिद्धार्थ ने वेद और उपनिषदों का ज्ञान पढ़ा व युद्ध विद्या की शिक्षा प्राप्त की। सोलह वर्ष की उम्र में दण्डपाणि शाक्य की कन्या यशोधरा से उसका विवाह हुआ और उसके राहुल नाम का एक पुत्र हुआ। विपुल धनसंपद एवं ऐश्वर्य के साधनों के उपरांत भी सिद्धार्थ का मन भौतिक पदाथों में आसक्त नहीं हुआ। एक बार घूमने निकले तो नगर में एक बृद्ध, एक रोगी व एक शवयात्रा देखी जिन्हें देखकर बीमारी, बृद्धावस्था व मृत्यु की दारूण अवस्था का ज्ञान हुआ। फिर एक प्रसन्नचित्त सन्यासी के दर्शन हुए तो दुःखमुक्ति का उपाय सूझा। भरे यौवन में अर्द्धरात्रि को राज्य-पाट, स्त्री, बच्चे, परिवार को छोड़ कर वे घर से निकल पड़े व संन्यास धारण किया। योग साधना व समाधि के पथ पर चल पड़े, पर संतोष नहीं हुआ। उग्र तपस्या की, पर उससे भी समाधान नहीं मिला। तब मध्यम मार्ग अपनाया। ३५ वर्ष की अवस्था मे वट वृक्ष के नीचे उन्हे बोधी प्राप्त हुई व तब से गौतम बुद्ध कहलाए। पहला धर्मोपदेश सारनाथ मे दिया। वे ८० वर्ष की अवस्था तक प्रचार करते रहे। सभी जाति-वर्ण के लोगों ने उनके पथ का अनुसरण किया। हजारों व्यक्तियों ने २७५ ___Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211515
Book TitleMahavir ke Samsamayik Shraman Dharmnayak evam unke Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherZ_Mohanlal_Banthiya_Smruti_Granth_012059.pdf
Publication Year1998
Total Pages8
LanguageHindi
ClassificationArticle & Biography
File Size538 KB
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