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________________ स्व: मोहनलाल बोठिया स्मृति ग्रन्थ का चालीस से अधिक सम्प्रदाय थे, जिनमें पांच वहुत प्रभावशाली थे - (१) निग्रंथ - महावीर का शासन (२) शाक्य - बुद्ध का शासन (३) आजीवक - मंखली गोशालक का शासन (४) गैरिक - तापस (पूरण कश्यप एवं संजय चेलट्ठिपुत्र के ) शासन (५) परिव्राजक - अजित केशकवली एवं पकुघ कात्यायन के शासन। वौद्ध साहित्य में वौद्ध धर्म के सिवाय छः सम्प्रदायों व उनके आचार्यों का इस प्रकार उल्लेख मिलता है - (१) अऋियावाद - आचार्य पूरण कश्यप (२) नियतिवाद - मंखली गोशालक (३) दच्छेदवाद - अजित केशकंबली (४) अन्योन्यवाद - पकूध कात्यायन (५) चातुर्याम संवरवाद - निग्रंथ ज्ञातपुत्र (६) विक्षेपवाद - संजयवेलसिट्ट पुत्र। ये सभी आचार्य अपने को तीर्थकर बताते थे व उन्हे भी अर्हत नाम से लोग संबोधित करते थे। वे सभी सैद्धान्तिक मतभेदो के कारण एक दूसरे के प्रतिद्वन्दी थे। आचार्य पूरण कश्यप, अजित केशकम्वली, पकुध कात्यायन, संजयवेलट्टिपुत्र के मत-सम्प्रदाय आगे न चलने के कारण उनके बारे में इतिहास में अधिक ज्ञातव्य तथ्य उपलब्ध नहीं है। मंखलीपुत्र गोशालक के भगवान महावीर का पूर्व में शिष्य रहने व बाद में विरोध करने के कारण जैनागमों मे उसके जीवनवृत्त व सिद्धान्तों का विस्तार से विवरण मिलता है। बौद्ध धर्म कुछ शताब्दियों तक भारत में प्रमुख रहा पर बाद में अनेक कारणों से वह भारत से लुप्त सा हो गया पर भारत के दक्षिण पूर्व देशों में उनका भारी प्रचार हुआ व आज भी विश्व के प्रमुख धर्मों में उसकी गणना की जाती है। कला, शिल्प, साहित्य आदि अनेक विद्याओं में उसके बारे मे विपुल सामग्री मिलती है। यह आज भी जीवन्त धर्म है। अनेक आरोहणअवरोहण के उपरांत जैन धर्म इस देश में आज भी अपनी विशिष्टता रखता है और उसके सिद्धान्तों पर निरंतर साहित्य-सृजन गत अढ़ाई हजार वर्षों से होता रहा है। इतिहास के पृष्ठों में खो जाने के उपरांत भी अन्य धर्मनायको के सिद्धान्त की व्याख्या व चर्चा जैन एवं बौद्ध ग्रंथों में प्रचुर मात्रा में मिलती है और उसी के आधार पर उनके बारे में यहां उल्लेख किया जा रहा है जो इस प्रकार है। (१) अक्रियावाद एवं उसके धर्मनायक आचार्य पूरण कश्यप अक्रियावाद के प्रवर्तक आचार्य पूरण कश्यप के जीवन वृत्त के संबंध में कोई तथ्य नहीं मिलते, न उसके सिद्धान्तो के विषय में कहीं विस्तृत चर्चा मिलती है। बौद्ध ग्रंथ दीघांनकाय मे इस संबंध में किंचित चर्चा है जिसे धर्मानन्द कौशाम्वी ने अपनी पुस्तक "भारतीय संस्कृति और अहिंसा" में सार रूप मे प्रस्तुत किया है। Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211515
Book TitleMahavir ke Samsamayik Shraman Dharmnayak evam unke Siddhant
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSohanraj Kothari
PublisherZ_Mohanlal_Banthiya_Smruti_Granth_012059.pdf
Publication Year1998
Total Pages8
LanguageHindi
ClassificationArticle & Biography
File Size538 KB
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