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। स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ
महर्षि पैथागोरस भगवान महावीर के समकालीन यूनान में पैथागोरस, अफलातून व सुकरात जैसे महापुरूष हुए जो महावीर, वुद्ध, लाओत्से अथवा जरथुस्त्र की तरह आध्यात्मिक नेता के रूप में तो अवतरित नहीं हुए किन्तु तत्कालीन राज्य एवं समाज-व्यवस्था में क्रातिकारी परिवर्तनो की उनकी विचारधारा ने पाश्चात्य सम्यता को कई शताब्दियों तक प्रभावित किया व आज भी इन तीनों महापुरूषों का नाम अतीव श्रद्धा से लिया जाता है।
पेथागोरस का जन्म समोस द्वीप में ५८० वर्ष ई० पूर्व में हुआ। ५३० वर्ष ईस्वी पूर्व में इन्हे समोस द्वीप से पौलिक्रेटस के अत्याचारों से ऊचकर सेरेटोना (दक्षिण इटली का प्रदेश) में आना पड़ा जहां उन्होने अपनी विचारधारा को संगठित कर व्यवस्थित रूप दिया व संयम एवं सदाचार के माध्यम से जन्ममरण के चक्कर से मुक्त होने के लिए एक समुदाय बनाया। इस समुदाय में कुछ विचारक गणित एवं विज्ञान के अध्ययन में लगे व अन्य नैतिक व धार्मिक विचारों की समीक्षा में लगे। पैथागोरस स्वयं गणित व ज्योतिष गणना में रूचि रखते थे व संगीत का तालमेल उसी से किया करते थे। मानवीय आत्मा के दैविक उदभव, आत्मा की अमरता व विभिन्न देहों में रमण, प्राणी जगत की एकरूपता आदि विषयों पर एकान्त में रहकर गहन चिन्तन किया और आत्म-चिन्तन के तीन मुख्य प्रश्न हर समय स्मृति में रखने के लिए उन्होने प्रस्तुत किये -१-मैने क्या अच्छा किया ? २- मैने ऐसा क्या नहीं किया जो मुझे करना चाहिए था । ३- मै अपने किस पवित्र कार्य में असफल रहा। पैथागोरस ने अपनी आत्मा की पवित्रता को बनाये रखकर अपने को परमात्मा से जोड़ा व अपने सदगुणों का प्रकाश फैलाकर ४६६ ई० पूर्व इहलौकिक लीला समाप्त की।
महात्मा सुकरात महात्मा सुकरात का जन्म ४७० ई० पू० में हुआ। वे शिल्पकार का काम करते परन्तु गणित व ज्योतिष उनके प्रिय विषय थे। वे अपना अधिकांश समय जनता को वौद्धिक समाधान देने व हर समस्या को युक्ति एवं तर्क संगत ढंग से सुलझाने में लगाते और इसने उनके विरूद्ध तत्कालीन राज्य-व्यवस्था में भारी शत्रु तैयार किये । देवताओं की अवहेलना करने व नये सिद्धान्तों का प्रचार करके युवकों को पथभ्रष्ट करने के आरोप मे उन पर राज्य की अदालत में मुकदमा चलाया गया व उन्हे मौत की सजा सुनाई गई। मौत की सजा के पूर्व एक माह तक उन्हें जेल में रखा गया, पर उस व्यक्ति का धैर्य व सहनशीलता
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