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________________ के कुछ छात्राओं की एक प्रतियोगिता रखी गई और यह घोषणा की गई कि जिसका बस्ता जो कपड़े का बना होता है, सबसे अच्छा होगा उसे पुरस्कृत किया जाएगा। सभी को प्रतियोगिता में भाग भी लेना है। तिथि तय हुई और सभी बच्चे अपने अच्छे बस्ते (थैले) के साथ विद्यालय आए। केवल एक ही ऐसी बच्ची थी जो बिना थैले के विद्यालय आ गई थी। शिक्षकों ने उसे खूब डांटा और फटकारा, अन्त में एक शिक्षक ने उसे दुलार कर पूछा, 'बेटी तुमने ऐसा क्यों किया? तुमने इसकी चर्चा क्या अपने अभिभावकों से नहीं की?' बच्ची ने कहा, 'महाशय मैं भी बस्ते के साथ ही विद्यालय आ रही थी, मगर मार्ग में एक कुष्ठ रोगी अपने घावों के कारण बार-बार चिल्ला रहा था, कोई इसे ढक दे और इन मक्खियों से मेरी रक्षा करे। उसका दुख मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ। मैं भूल गई प्रतियोगिता और मैंने अपना बस्ता फाड़कर उसके घावों को ढक दिया'। इस घटना को सुनकर सभी स्तब्ध रह गए और जाकर देखे कि वह रोगी घावों को ढकने के कारण चैन से सो रहा है। अब शिक्षकों के हृदय में भी परिवर्तन हुआ जो उसे डाट फटकार रहे थे, उसकी दया के आगे नतमस्तक हुए। उन लोगों ने सोचा, हम भी उधर से ही निकले थे, चीख और पुकार भी सुनी थी मगर हमलोगों पर उस करुण पुकार का क्या कोई प्रभाव पड़ा? इस बालिका से हमें सीख लेनी चाहिए। पुरस्कार की घोषणा प्राचार्य ने की और सबसे अच्छा बस्ता का पुरस्कार उस बालिका को मिला जिसने अपने थैले को फाड़कर कुष्ठ रोगी के घावों को ढक दिया था। अपने समापन भाषण में उन्होंने छात्रों से निवेदन किया कि उस बालिका से सभी सीख लें और परसेवा व्रत का पालन करें। उपरोक्त सभी घटनाओं का एक ही मकसद है जन सेवा, मानव सेवा और यह सम्भव है सामूहिक रूप में विराट स्तर पर और व्यक्तिगत रूप में छोटे-छोटे स्तर पर। सामाजिक संस्थाएं सेवा कार्य में अहम् भूमिका का निर्वाह कर रही हैं। वे सेवा के नित नये आयामों को कार्यान्वित कर रही हैं। जिस तरह जैसे भी हो "सर्वे भवन्तु सुखिनः" को साकार करने हेतु अहर्निश सेवामहे को चरितार्थ कर रही है। Self Employment (स्वरोजगार) हेतु महिला गृह उद्योग, कुटीर उद्योग, पुस्तक वितरण, औषधि वितरण, भोजन व्यवस्था, छात्रों के लिए कर्मकारी शिक्षा (Vocational Education) आदि में संस्थाएं रत हैं। विभिन्न स्कूल, कॉलेज, औषधालय, भोजनालय, अनाथालय, शिशु निकेतन आदि किसी न किसी रूप में जन सेवा में नित्य कार्यरत हैं। इनको हम पुष्पित-पल्लवित करें, यही संकल्प हो हमारा। इन्हें हम किसी भी रूप में नुकसान, क्षति न पहुंचायें न बाधक बनें। एक महात्मा एक गांव में पधारे। उनके सम्मुख कुछ ग्रामवासी इकट्ठे हुए और कहा, 'महाराज किसी ने द्वेष और ईर्ष्यावश मेरे खलिहान में आग लगा दी, जहां मेरे परिश्रम द्वारा एकत्रित सारी की सारी अन्नराशि थी। काफी क्षति हुई।' महात्मा ने कुछ देर तक सोचा फिर बोले, 'व्यक्तिगत द्वेष के कारण उसने केवल तुम्हारा ही नुकसान नहीं किया, उसने कीड़े-मकोड़े, पशु-पक्षी, साधु-संतों और अन्यान्य के हिस्से में प्राप्त अन्नराशि को नष्ट किया है। यह व्यक्तिगत नुकसान, हानि नहीं है यह है सामूहिक क्षति / नुकसान और जो सामाजिक क्षति करता है उसकी दशा शास्त्रों में बड़ी कठोर वर्णित है। खैर, ईश्वर साक्षी है कर्मफल अवश्य प्राप्त होगा। तात्पर्य यह है कि व्यक्तिगत द्वेष आदि को सामाजिक संस्थानों पर न थोपें और न ही उसके चलते उसे नष्ट करें। अपने बल, पौरूष और शक्ति के अनुसार उसे पुष्पित और पल्लवित करें, यही होगी सच्ची सेवा प्राणिमात्र की और यही होगा भगवत्प्राप्ति का सच्चा साधन कामये दु:खतप्तानां प्राणिनामार्ति नाशनम् सह शिक्षक, श्री जैन विद्यालय, कलकत्ता हीरक जयन्ती स्मारिका अध्यापक खण्ड / 14 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211486
Book TitleBhagwat Prapti ka Sarvottam Sadhan Janseva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRadheshyam Mishr
PublisherZ_Jain_Vidyalay_Hirak_Jayanti_Granth_012029.pdf
Publication Year1994
Total Pages3
LanguageHindi
ClassificationArticle & Worship
File Size445 KB
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