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________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ- जैन-साधना एवं आचार - वास्तव में संयम सुख का, आत्मोत्थान का व कल्याण का शाश्वत मार्ग है, जबकि असंयम दःख और पतन का मार्ग है। हो संयम सुखकारी॥१॥ श्रीमद् रामचन्द्र ने तो स्पष्ट कहा है परम औषधि संयम जाणो, तीन लोक का सार पिछाणो। देखकर नव यौवना, लेश न विषय निदान। शुद्ध संयम हिरदे में धारो, अनुपम सुख की खान। गिने काठ की पतली, वह भगवान समान।। हो संयम सुखकारी॥२॥ एक बार एक गृहस्थ ने एक ज्ञानी महात्मा से पूछा, काम-कषाय को तजै हुकमाई, निंदा विकथादि छिटकाई। 'महात्माजी! मैं संसार के विषय-प्रपंचों में इतना अधिक उलझा तप संयम में लीन सदा ही, धन्य तेहनो अवतार। हूँ कि मुझे धर्म सुनने का अवसर ही नहीं मिलता। मुझे कोई हो संयम सुखकारी।।३।। छोटी सी ऐसी बात बतायें कि जिससे दुःख मिट कर सुख संयम के स्वरूप और माहात्म्य को समझ कर यह ध्यान बढ़ता रहे और आत्मा का कल्याण भी हो जाये। तब महात्मा ने में रखना चाहिये कि सम्यग्ज्ञानदर्शन हमारे पथ-प्रदर्शक हैं, जो बहुत सोचने के बाद उसे यह श्लोक बताया संयम हमारे बायाभ्यन्तर शत्रुओं से हमारी रक्षा करने वाला आपदा कथितो पंथा, इंद्रियाणामसंयमः। हमारा अद्वितीय अंगरक्षक है। जिस प्रकार युद्ध में कवच योद्धा तज्जयो सम्पदामार्गः, प्रथितः पुरुषोत्तमैः।। का रक्षक होता है, उसी प्रकार साधक के न सिर्फ बाह्य शत्रुओं अर्थात् इंद्रियों को वश में करना, सुख का मार्ग तथा उन्हें के लिए भी अपितु मिथ्यात्व, अव्रत, कषाय, प्रमाद व अशुभ बिना अंकुश के छोड़ देना दःख का मार्ग है। अंग्रेजी में भी एक योग आदि महाप्रबल आन्तरिक शत्रुओं से आत्मा की रक्षा करने कहावत है कि के लिए संयम उत्तम अमोघ कवच है। जो भी इसे धारण करेगा उसके ज्ञान, दर्शन, चारित्र तपरूपी अनमोल रत्न सुरक्षित रहेंगे। Character is property. A man is known by what he loves friends, places , books, thoughts, good or bad from उसकी आत्मा कर्म रूपी प्रबल शत्रओं को पराजित कर निकट these his character is told. भविष्य में ही मोक्षलक्ष्मी प्राप्त करेगी। अर्थात् संयम ही धन है। मनुष्य कैसे मित्र रखता है? कैसे अनन्त पुण्योदय से तन, मन, वचन और धन रूपी चार स्थानों पर जाता है? कैसी पुस्तकें पढ़ता है? कैसे विचार रखता उपलब्धियाँ प्राप्त होती हैं, पर इन चारों के पीछे चार चोर लगे है, अच्छे या बुरे? इन्हीं से उसका चरित्र जाना जा सकता है। हुए हैं। तन के पीछे व्याधि, रसना के पीछे स्वाद, धन के पीछे संयम पर एक अनुपम पर याद आ रहा है। उसके कुछ अंश प्रस्तत हैं- उपाधि और मन के पीछे तृष्णा। इन चारों से बचने का एक मात्र संयम सुखकारी, हो जिन आज्ञानुसार संयम सुखकारी। उपाय है समाधि। यह समाधि संयम से प्राप्त होती है। सचमुच, सुखकारी, मंगलकारी, धन्य पाले जो नर-नारी। संयय ही जीवन का सौंदर्य है, मन का माधुर्य है और धर्म का मंगल प्रवेश-द्वार है, जो इसका पालन करेंगे वे यहाँ भी और हो संयम सुखकारी। परभव में भी सुख प्राप्त करेंगे। कर्म-मैल को शीघ्र हटावे, आत्मा के गुण सब प्रगटावे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211475
Book TitleBramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendravijay
PublisherZ_Yatindrasuri_Diksha_Shatabdi_Smarak_Granth_012036.pdf
Publication Year1999
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & Five Geat Vows
File Size798 KB
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